Skip to content

ध्यान में आप खुद ही सबसे बड़ी बाधा हैं, आपके हटते ही परम का जन्म होता है

दरअसल, लोग एकाग्रता को ही ध्यान समझ लेते हैं। लेकिन एकाग्रता ध्यान नहीं है। जब आप समस्त चेष्टाओं को छोड़ देते हैं तो ध्यान वहां से शुरू होता है। आपके हटने से ही उस विराट का आगमन होगा जो परम चैतन्य है। जिसे परमात्मा कहते हैं।

Photo by Daniel Mingook Kim / Unsplash

ध्यान (MEDITATION) क्या है। इसके बारे में आपने बहुत कुछ सुना होगा। इसके फायदे के बारे में आपने बहुत कुछ जाना होगा। लेकिन क्या आप ध्यान के बारे में वास्तव में जानते हैं, अगर ये सवाल आपसे पूछा जाए तो आप निश्चित तौर पर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाएंगे। तो वास्तव में ध्यान होता क्या है। और सबसे अहम सवाल इसे करते कैसे हैं? आइए इन सवालों का समाधान ढूंढने का प्रयास करते हैं।

सबसे पहले यहां एक बात साफ कर दूं कि ध्यान कोई क्रिया नहीं है, यह एक अवस्था है। कहने का मतलब है कि ध्यान कुछ करना नहीं है। जैसे आप कह सकते हैं कि मैं योगासन कर रहा हूं, प्राणायाम कर रहा हूं। लेकिन आप ये नहीं कह सकते कि मैं ध्यान कर रहा हूं। क्यों जहां कुछ भी करना या क्रिया है, वह ध्यान नहीं है।

A morning yoga session peering into the jungle in Ubud, Bali.
चेतना के प्रति अगर आप होशपूर्वक हैं तो आप ध्यान में हैं Photo by Jared Rice / Unsplash

दरअसल, लोग एकाग्रता को ही ध्यान समझ लेते हैं। लेकिन एकाग्रता ध्यान नहीं है। अगर आप सोच रहे हैं कि किसी मंत्र का जाप, किसी प्रतीक को बंद आंखों से निहारना ध्यान है तो वास्तव में आप ध्यान की अवस्था में नहीं हैं। ये तमाम चीजें एकाग्रता हैं, ध्यान नहीं। जब आप समस्त चेष्टाओं को छोड़ देते हैं तो ध्यान वहां से शुरू होता है। इसके लिए जागरूकता, होश, साक्ष‍ी भाव और दृष्टा भाव ये जरूरी है।

इसे शिवसूत्र से समझने का प्रयास करते हैं। शिवसूत्र में भगवान शिव कहते हैं कि चैतन्य ही आत्मा है। इसका मतलब है कि चेतना की जागी हुई या होशपूर्वक अवस्था ही अपना है। आप ऐसे समझें कि चेतना की जागी हुई अवस्था के प्रति अगर आप होशपूर्वक हैं तो आप ध्यान में हैं। मतलब कोई भी काम बेहोशी में न हो। इसे ऐसे समझें, अगर आप ऑफिस का काम कर रहे हैं, या मैदान में टहल रहे हैं, या खेल रहे हैं तो कोई भी काम बेहोशी में नहीं करते हैं, इस दौरान आप पूरी तरह से जागे हुए हैं, होशपूर्वक हैं तो इसका मतलब आप ध्यान में हैं।

होश की ये सतत अवस्था जब आपका स्वभाव बन जाती है। मतलब आप हर चीज के प्रति होशपूर्वक हैं तो हर पल, हर क्षण ध्यान में ही हैं। तो ध्यान का मतलब पालथी मारकर कुछ करना नहीं होता है। इसका अर्थ है जागरूकता के साथ, होश के साथ जीना। अब आप कहेंगे कि इसकी शुरुआत कैसे करें। आप किसी भी सूखपूर्वक स्थिति में बैठ या लेट सकते हैं। इसके बाद होशपूर्वक चेतना के प्रति जागरूक हो जाएं।

अपनी सांसों को अनुभव करें, अपने शरीर में होने वाली सूक्ष्म से सूक्ष्म हलचल को अनुभव करें, अपने मन और विचारों के प्रति जागरूक रहें। धीरे-धीरे ये जागरूकता गहरी होने लगेगी। ध्यान की इस अवस्था में आप ही सबसे बड़ी बाधा हैं। आप खुद को पीछे कर दें, बस जागरूकता बनी रहे, होश बना रहे। आपके हटने से ही उस विराट का आगमन होगा जो परम चैतन्य है। जिसे परमात्मा कहते हैं। कबीर के दोहे से इसे समझ सकते हैं। कबीर कहते हैं, 'जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही'।

Comments

Latest