हम अक्सर अपनी दुखद भावनाओं को दबा देते हैं। परिवार के बीच, कार्यस्थल पर, समाज के बीच ऐसी कई बातें होती हैं जो हमें पसंद नहीं होती है। क्या आप जानते हैं कि इस दौरान भीतर भावनाओं की जो ज्वालामुखी फुटती है, वो जाती कहां है।
दरअसल, रोजमर्रा की जिंदगी में जो मानसिक और भावनात्मक तनाव लेते रहते हैं वे हमारे अनुभव हमारे शरीर में जमा होते रहते हैं। ये हमें मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रुप से कमजोर कर देती हैं। ये दबी हुई दुखद भावनाएं आखिरकार शारीरिक लक्षणों और बीमारियों के रूप में प्रकट होती हैं। अब सवाल उठता है कि इससे बचने का उपाय क्या है? क्या भारतीय जीवन दर्शन में हमें कोई रास्ता दिखाता है।
इसका उत्तर हां है। योग दर्शन, ईश्वर का भजन ऐसे कई उपाय बताते हैं जो हमें इन दबी हुई भावनाओं से उबरने का रास्ता दिखाता है। योगासन की बात करें तो जैसा कि जब हम अपनी सांस को अत्यंत ही धीमी गति से लेते और छोड़ते हैं या योगासन करते हैं और इस अभ्यास की लय में थोड़ी देर के लिए लीन हो जाते हैं, तो हम सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम (भावनाओं को दबाने, स्वयं से युद्ध की स्थिति) से पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम (शांति, आराम, आनंद) में स्थानांतरित हो जाते हैं।
इस अवस्था में हमारे भीतर दबी भावनाएं, तनाव, दुख मिटने लगता है और हम शांति, स्थिरता और आनंद का अनुभव करते हैं। सांस हमारी भावनाओं को समझने में एक अभिन्न भूमिका निभाती है। आपने गौर किया है कि जब आप प्रसन्न होते हैं, शांत होते हैं तो आपके सांसों की गति सहज और शांत होती है। जब आप उत्तेजित होते हैं, तनाव में होते हैं, किसी व्यर्थ के या अनिच्छुक विचारों के साथ होते हैं तो सांसों की गति तेज हो जाती है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब सांसों की गति तेज होती है तो आप दुख की स्थिति में हैं। सांसें अगर शांत हैं तो आप आनंद की अवस्था में हैं।
योगासन, प्राणायाम या ईश्वर का भजन, कीर्तन करना हमारे सांसों को नियंत्रित करता है। इस दौरान हमारी सांसें शांत और सहज होती हैं। इनका अभ्यास करते हुए अपनी दबी हुई भावनाओं, आकांक्षाओं से मुक्त हो सकते हैं। दरअसल, योगमय जीवन हमारे लिए एक कवच का काम करता है जो हमें दमित भावनाओं के ज्वालामुखी से बचाती है। कवच हम सुरक्षा के लिए पहनते हैं। यह भावनात्मक उपचार के लिए सर्वोत्कृष्ट उपकरण है।
हम जानते हैं कि तंत्रिका तंत्र शरीर के हर हिस्से में है, और यह वह जगह है जहां हम अपनी भावनाओं का अनुभव करते हैं। प्राणायाम का अभ्यास पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम को संलग्न करके शरीर को शांत करती है। जब हम लयबद्ध, धीरे-धीरे सांस लेते हैं, जो योग हमें सिखाता है, तो हम उस अवस्था में पहुंच जाते हैं जहां दमित ईच्छाओं, दमित भावनाओं को कोई ज्वार नहीं होता है।