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वहीदा रहमान: यूं ही कोई सबके ‘दिलों’ पर राज नहीं करता

अपने जमाने की दिग्गज अभिनेत्री वहीदा रहमान को भारत की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी बेहतरीन एक्टिंग के लिए दादा साहेब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। आइए जानते हैं कि उनके बारे में किसी युवा के सोचे गए विचार।

फोटो साभार सोशल मीडिया

कॉलेज के दिनों की बात है। तब भारत की राजधानी नई दिल्ली के प्रगति मैदान (वह क्षेत्र जहां G20 शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था) शाकुंतलम थियेटर, हंसध्वनि थियेटर, लाल चौक थियेटर में रोजाना शाम ढले हिंदी क्लासिक फिल्में चला करती थीं। यहीं पर ही मैंने अपने वक्त की टॉप नेत्री वहीदा रहमान की गाइड, चौहदवीं का चांद, रेशमा और शेरा, साहेब, बीबी और गुलाम जैसी क्लासिक फिल्में देखीं थी। भारत के बड़े बड़े हीरो के साथ आई इन फिल्मों ने यह दिखा दिया कि वहीदा रहमान इनसे कम नहीं है। उसके एक्टिंग का जो समां बांधा, उसने मुझे बार इन फिल्मों को देखने के लिए प्रेरित किया, क्यों? आगे बताते हैं।

दिल्ली का कोई भी मौसम हो, सांझ ढले प्रगति मैदान की रंगत देखते ही बन जाती थी। पूरे ओपन एरिया में हलके साउंड में शास्त्रीय व फिल्मी संगीत सुनाई देता था। बीच में बना आर्टिफिशियल तालाब और अलग अलग तरीके की लगी लाइटें मुझ जैसे कॉलेज में पढ़ने वाले युवा को आकर्षित करती थीं। सोने पर सुहागा यह कि यहां शाकुंतलम थियेटर को छोड़कर बाकी थियेटरों पर फ्री फिल्में देखी जा सकती थीं। ये फिल्में वे हुआ करती थीं जो दिल्ली के सिनेमाघरों में कम ही दिखाई जाती थी, उसका कारण यह था कि ये फिल्में एक खास वर्ग की फिल्में थीं और पढ़ाई और साहित्य में डूबा युवा इन फिल्मो को देखने के लिए लालायित करता था। मैं सरकार का शुक्रगुजार हूं कि अपने युवा दौर में मैंने प्रगति मैदान में भारत की एक से एक शानदार व क्लासिकल फिल्में देखीं। अब बात करते हैं नायिका वहीदा रहमान की।

साहब, बीबी और गुलाम फिल्म ने वहीदा को क्लासिकल नेत्री बना दिया था। 

यूं तो वहीदा रहमान की कई फिल्मों ने मुझे बेहद भावुक और सोचने पर मजबूर किया और यह भी बताया कि उस दौर में जब तड़क-भड़क वाली फिल्मों का दौर चल रहा था, तब वहीदा रहमान अपनी फिल्मों से महिला सशक्तिकरण की बात कर रही थी, विवाहेतर संबंधों पर सोचने पर मजबूर कर रही थी, साथ ही अपनी ऐंद्रिक अदाकारी से युवाओं को लुभा रही थीं। गाइड फिल्म की बात करें तो इस पुरानी फिल्म में वहीदा ने विवाहेतर संबंधों को बारीकी से उकेंरा और बताया कि अगर उसे पति का प्रेम नहीं मिलेगा तो वह कैसे अन्य युवा की ओर आकर्षित हो सकती है। इस फिल्म के गानों ने पुराने वक्त में जो धूम मचाई थी, वह आज भी जारी है। वहीदा की साहेब, बीबी और गुलाम ऐसी फिल्म थी, जिसमें अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान रियासत दौर का बारीकी से चित्रण किया गया था।

वहींदा की की ऐसी फिल्में लगातार आती रहीं जो भारतीय सिनेमा के बने लीके से हटकर थीं। इनमें 'प्यासा', 'कागज के फूल', 'चौदहवी का चांद', 'खामोशी' जैसी फिल्में शामिल हैं। उनकी एक फिल्म रेशमा और शेरा तो गजब फिल्म थी, जिसमें राजस्थानी राजपूतों की आपसी लड़ाई को बारीकी दे प्रदर्शित किया गया था। वर्ष 1971 में आई इस फिल्म का गाना ‘तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं शाख, तू बादल में बिजली’ वहीदा व सुनील दत्त पर रेगिस्तान में फिल्माया गया था और आप हैरान होंगे कि उस वक्त इस एक गाने पर ही करीब 5 लाख रुपये खर्च किए गए थे। इस फिल्म को नेशनल अवार्ड मिला था। वहीदा ने फिल्मों से कभी नाता नहीं तोड़ा, छह दशक लंबे करियर में 90 से ज्यादा फिल्में कीं। उनके द्वारा अभिनीत आखिरी फिल्म स्पो‌र्ट्स ड्रामा स्केटर गर्ल थी। लेकिन कुछ साल पहले आई लम्हें फिल्म में उन्होंने अपने अभिनय का लोहा मनवा दिया था। उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। अब उन्हें भारतीय फिल्मों का सर्वोच्च सरकारी सम्मान दादा साहब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित करने की घोषणा की गई है।

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