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सांसों में जो समाया है वह प्राण है, ब्रह्मांड भी है, इस प्राण को साधें

प्राणायाम की यौगिक प्रक्रिया चेतना को पारलौकिक क्षेत्र और आत्मज्ञान की अवस्था की ओर ले जाता है। प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से प्राण नामक सूक्ष्म जीवनदायी ऊर्जा और चेतना की मानसिक ऊर्जा, शरीर में समाहित हो जाती है। सांस को ब्रह्मांडीय ऊर्जा के वाहन के रूप में भी जाना जाता है।

Photo by Omid Armin / Unsplash

कई दार्शनिक और वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि सांस लेने की प्रक्रिया में ब्रह्मांड की ऊर्जा शरीर में खींची जाती है। इस प्रकार सांस मनुष्य और ब्रह्मांड के बीच कड़ी बन जाती है। योग हमें सिखाता है कि पिंड में जो कुछ भी मौजूद है, वही ब्रह्मांड में है। इस तरह से हमारे शरीर और ब्रह्मांड को जो जोड़ता है, वह सांस ही है।

शास्त्र कहते हैं कि प्राणायाम की यौगिक प्रक्रिया चेतना को पारलौकिक क्षेत्र और आत्मज्ञान की अवस्था की ओर ले जाता है। उपनिषदों में कहा गया है कि प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से प्राण नामक सूक्ष्म जीवनदायी ऊर्जा और चेतना की मानसिक ऊर्जा, शरीर में समाहित हो जाती है। सांस को ब्रह्मांडीय ऊर्जा के वाहन के रूप में भी जाना जाता है जिसे तैत्तिरीय, ब्राह्मण और मैत्री उपनिषदों के अनुसार शिव या ब्रह्म के रूप में जाना जाता है।

प्रश्नोपनिषद में कहा गया है कि प्राण हमसे से उतना ही अलग है जितना कि व्यक्ति से उसकी परछाई। इसका तात्पर्य यह है कि भौतिक शरीर सांस के माध्यम से चेतना और ऊर्जा को ग्रहण करता है। अगर इसे सही प्रक्रिया यानी प्राणायाम के द्वारा सही तरीके से अभ्यास किया जाए तो सांस के माध्यम से हम उस परम चेतना को हासिल कर सकते हैं जो इस ब्रह्मांड में व्याप्त है।

प्राणायाम के अभ्यास के दौरान हम अपनी सांस पर ध्यान देते हैं, इससे ब्रह्मांडीय ऊर्जा को शरीर के अंदर प्रकट देखा जा सकता है। सांस पर खुद को बनाए रखने से व्यक्ति को शुद्ध और मजबूत किया जा सकता है। इस प्रकार चेतना परम ऊर्जा को पाने में सक्षम होती है जहां शरीर और आत्मा द्वारा अनंत जीवन का अनुभव किया जाता है।

हमारे मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि ये प्राण क्या है। केवल प्राण के कारण ही पूरे ब्रह्मांड का अस्तित्व है और इसकी उपस्थिति के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता है। लेकिन प्राण सांस नहीं है, बल्कि यह सांस के भीतर निहित है। प्राण सभी जैविक जीवन को बनाए रखता है। जिस तरह एक बैटरी विद्युत ऊर्जा को संग्रहीत करती है, उसी तरह गतिविधि और गतिशीलता को सक्षम करने के लिए प्रत्येक जीव के लिए प्राण का संग्रह करना आवश्यक है। योग का अभ्यास करने से प्राण के भंडार को बढ़ाया जा सकता है, जिससे मस्तिष्क के अव्यक्त क्षेत्रों को सक्रिय किया जा सकता है।

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