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परिस्थिति कैसी भी हो, जो हर हाल में शांत रह पाते हैं, वही वास्तव में योगी है

गीता पलायनवाद की शिक्षा नहीं देती। भगवान श्रीकृष्ण निष्काम कर्म करने की बात करते हैं। फलों की चिंता से मुक्त होकर अपने कर्म को करते रहें, यही मुक्ति का मार्ग है। यही योग का दर्शन है। जब प्रतिकूल परिस्थितियां आती हैं, तो क्या आप शांत रह पाते हैं? यदि हां, तो आप एक योगी हैं।

Photo by Stephanie Greene / Unsplash

योगी कौन है, वो जो सब-कुछ छोड़कर हिमालय में साधाना में रत है, या जो संसार की उथलपुथल के बीच भी शांति के साथ अपने कर्म में लीन है? यह सवाल बहुत पुराना है। महाभारत में जब अर्जुन इन सवालों के भंवरजाल में फंसे थे तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सही मार्ग दिखाया था। आज भी भगवान श्रीकृष्ण की वही शिक्षा हमारे लिए उपयोगी है। लेकिन क्या हम योग को उसके वास्तविक रूप में जानते हैं? या हम उन आरोपित धारणाओं को सच मानते हैं जो हम पर थोपी गई हैं।

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योग का मकसद है भीतर की शांति को हासिल करना। Photo by Jared Rice / Unsplash

दरअसल, आम आदमी के पास योग को लेकर पर बहुत स्पष्ट विचार है, ऐसा नहीं कह सकते हैं। लेकिन यहां तक कि जो खुद को खास और विशिष्ट मानते हैं, जो बहुत पढ़े लिखे और सभ्रांत हैं, वे भी योग के दर्शन को समझते हैं, ऐसा नहीं कह सकते हैं। उनके लिए भी योग के नाम पर आरोपित की गई धारणाओं से पार जाना मुश्किल है। अहम सवाल धारणाओं का है जो हमारे मन में डाली गई हैं। अब समय आ गया है कि हम उन धारणाओं से मुक्त हों जो योग के नाम पर हमारे दिलो दिमाग में आरोपित की गई हैं।

योग को लेकर एक धारणा है कि जो सबकुछ छोड़कर रात दिन योगाभ्यास में लीन रहते हैं, हिमालय या किसी पवित्र जगह पर साधना करते हैं, सिर्फ वही योगी हैं। इसलिए पहले इसी धारणा से मुक्त होने की जरूरत है। किसी को भी योग का अभ्यास करने के लिए अपना घर-द्वार छोड़ने और गुमनामी में जाने की आवश्यकता नहीं है।

दूसरी मिथ्या धारणा यह है कि जिन्होंने शादी नहीं की है। अविवाहित हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वही योग के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। लेकिन वैवाहिक संबंध योग के आड़े आते हैं, इस धारणा को भी मिटाने की जरूरत है। इसके अलावा मांस-मछली खाने वालों को सिर्फ इसलिए शाकाहार की तरफ जाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उन्होंने योग को अपना लिया है। हां, योग प्राणायाम का अभ्यास करते हुए अगर किसी के मन में ये भाव उत्पन्न हो जाए कि मेरे लिए शाकाहार सही है, तो फिर ये अलग बात है। लेकिन भीतर खाने की ईच्छा है और बाहर इसे दबाकर बैठे हैं तो फिर ये पाखंड होगा। इससे मुक्त होने की जरूरत है।

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आज की दुनिया में योग की एक विशेष भूमिका है। Photo by Sonu Agvan / Unsplash

दरअसल, योग के वास्तविक उद्देश्य को समझने की आवश्यकता है। और यह उद्देश्य है भीतर की शांति को हासिल करना, जीवन में समत्व यानी समता को हासिल करना, भीतर परम आनंद को अनुभव करना। इसके लिए आपको अपने सामान्य जीवन जीने के किसी भी तरीके को छोड़ने की जरूरत नहीं है। हां, योगाभ्यास, प्रणायाम करते हुए कई आदतें अपने आप छूट जाती हैं, तो ये अलग बात है। इसके लिए अलग से प्रयत्न करना, मन को दबाने की जरूरत नहीं है।

एक बात को गांठ बांध लें कि जीवन से भागना मुक्ति का मार्ग नहीं है। एक क्षण के लिए भी यह मत सोचिए, किसी तरह की कुंठा मत पालिये कि गृहस्थ का जीवन बेकार है, और त्याग का जीवन जीने वाले संन्यासी ही श्रेष्ठ हैं।

आज की दुनिया में योग की एक विशेष भूमिका है। यह हमारे मानसिक और शारीरिक कष्टों को दूर कर सकता है। यह हमारे दिलों और घरों में खुशी ला सकता है। आप जीवन की अच्छी चीजों का आनंद लेना जारी रख सकते हैं और फिर भी एक योगी बन सकते हैं। अपनी सांसारिक महत्वाकांक्षा, अपनी भौतिक आकांक्षाओं को छोड़ने की जरूरत नहीं है।

यदि आप ऐसा करते हैं, तो इससे आपका कोई भला नहीं होगा, यह समाज को नुकसान पहुंचाएगा और हमारे देश को पीछे कर सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है आप अपनी इच्छाओं के गुलाम बन जाएं। आप उस सागर की तरह बनिए जिसमें नदियों का अशांत बहता पानी आता है, लेकिन वह फिर भी अबाधित रहता है, विराट बने रहता है, सबको अपने में समाहित कर लेता है।

आप इंद्रिय संतुष्टि का आनंद लें, लेकिन उन्हें अपने ऊपर हावी न होने दें। जीवन से घृणा मत करिए। वीरता जीवन के उथल-पुथल में दृढ़ रहने में निहित है, योग हमें इन सबके बीच संतुलन सिखाता है। आपका जीवन कर्म योग है। सांसारिक होने के नाते आपके लिए जीवन एक सतत यज्ञ है। एक बार जब आप इस सत्य को समझ जाते हैं, तो आप निरंतर कड़ी मेहनत के बीच जीवन के संतुलन को साध सकते हैं।

लेकिन जीवन का उतार-चढ़ाव अपना असर दिखाती है। चिंताएं, निराशाएं, मन और शरीर की थकावट, ये सभी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को तेज करते हैं। ऐसे में योग इनके खिलाफ एक शक्तिशाली उपाय है। गीता पलायनवाद की शिक्षा नहीं देती। भगवान श्रीकृष्ण निष्काम कर्म करने की बात करते हैं। इसे आप अपने जीवन में अपना सकते हैं। फलों की चिंता से मुक्त होकर अपने कर्म को करते रहें, यही मुक्ति का मार्ग है। यही योग का दर्शन है। क्या आप अपने दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में उत्साह से भरे हुए हैं? जब प्रतिकूल परिस्थितियां आती हैं, तो क्या आप शांत रह पाते हैं? यदि हां, तो आप एक योगी हैं।

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