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परिवार, जॉब में व्यस्त लोगों के लिए भी जरूरी है योग साधना, कैसे करें अभ्यास

योग साधना में पहला कदम जागरूकता है। और सभी जानते हैं कि सांसारिक जीवन में सफल होने के लिए इसकी सबसे अधिक जरूरत है। अगर आप पूरे ध्यान और जागरूकता के साथ अपना काम करते हैं तो यह अपने आप में सहज ध्यान बन जाता है।

Photo by Luemen Rutkowski / Unsplash

आम तौर पर अगर आप किसी व्यक्ति से योग साधना के बारे में बात करें तो उनका सवाल होता है कि आप मेरे जैसे बड़े परिवार और व्यस्त जीवन वाले व्यक्ति से योग के लिए समय निकालने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? तो क्या जो लोग परिवार चलाते हैं, नौकरी में व्यस्त रहते हैं, कोई कारोबार करते हैं, उनके लिए योग साधना की कोई जरूरत नहीं है? क्या योग साधाना सिर्फ संन्यासियों और योगियों का ही काम है?

दरअसल, योग साधना (शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए अभ्यास) और जीवन जीने के लिए, परिवार चलाने के लिए हम जो भी काम करते हैं, उनके बीच संबंधों के बारे में बहुत गलतफहमी है। ज्यादातर लोगों को लगता है कि साधना का अभ्यास करने के लिए, उन्हें अपने कर्म को त्यागना होगा।

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योग साधना में पहला कदम जागरूकता है। Photo by Carl Barcelo / Unsplash

लेकिन सच्चाई इसके ठीक उलट है। वास्तव में कर्म और योग में कोई बैर नहीं हैं, वे एक साथ जुड़ने पर आम आदमी के लिए आध्यात्मिक साधना का मार्ग बनाते हैं, इसे कर्म योग कहते हैं। किसी भी प्राणी के लिए कर्म से बचने का कोई रास्ता नहीं है। योग का उद्देश्य यह नहीं है कि कोई व्यक्ति दैनिक कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से भाग जाए, या अपने परिवार या सामाजिक जीवन की उपेक्षा करे।

दरअसल, सामाजिक और पारिवारिक जीवन जीने वालों के लिए तो योग और भी जरूरी है। योग साधना में पहला कदम जागरूकता है। और सभी जानते हैं कि सांसारिक जीवन में सफल होने के लिए इसकी सबसे अधिक जरूरत है। अगर आप पूरे ध्यान और जागरूकता के साथ अपना काम करते हैं तो यह अपने आप में सहज ध्यान बन जाता है।

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योग से कर्मों में कुशलता आती है। Photo by Campaign Creators / Unsplash

भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं ‘योगः कर्मसु कौशलम’। भगवान श्रीकृष्ण यही कर रहे हैं कि कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं हमेशा सतर्क और पूरी तरह से जागरूक होकर करें। तभी आप कुशलतापूर्वक काम कर पाएंगे। मतलब ये ऐसी स्थिति है जब अन्य सभी मानसिक ‘शोर’ बंद हो जाए और केवल उस कर्म के बारे में जागरूकता बनी रहे जो इस समय हो रहा है। और अगर कर्मों के दौरान आपकी मानसिक स्थिति ऐसी ही बनी रहती है तो आप योगी ही कहे जाने योग्य हैं।

दरअसल, जब हम जागरूकता के साथ कोई काम करते हैं तो इससे दक्षता विकसित होती है। इससे किसी भी काम की गुणवत्ता में सुधार होता है। इसके अलावा जागरूकता से एकाग्रता आती है, और फिर ये एकाग्रता आपको ध्यान की तरफ ले जाती है। यह एक ऐसी अवस्था होती है जो आपके सांसारिक जीवन की सभी गतिविधियों, कठिनाइयों के साथ-साथ सहज रूप से चल सकता है।

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