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राष्ट्रपति चुनाव: भारतीय-अमेरिकियों की क्या है सोच, क्या बोल रहे विशेषज्ञ?

हेली और रामास्वामी बुधवार को तीसरी प्रेसिडेंशियल डिबेट के लिए एक बार फिर से मिलने के लिए तैयार हैं, जो अगले साल जीओपी प्राइमरी में मतदान शुरू होने से पहले बड़ी संख्या में दर्शकों के सामने अपनी बात रखने के उनके अंतिम अवसरों में से एक है। हालांकि वे डोनाल्ड ट्रंप से बहुत पीछे हैं।

अमेरिका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल निक्की हेली और विवेक रामास्वामी। फोटो : @MessengerPol

अमेरिका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल भारतीय मूल के निक्की हेली और विवेक रामास्वामी जब एक बहस मंच पर मिले तो उनके बीच तनाव को भूलना मुश्किल था। हेली ने रामास्वामी से कहा, 'हर बार जब मैं आपको सुनती हूं, तो आप जो कहते हैं, उससे मुझे थोड़ी घबराहट होती है।'

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए रामास्वामी ने कहा कि अगर हम यहां निजी अपमान नहीं कर रहे हैं तो रिपब्लिकन पार्टी के तौर पर हमारी बेहतर सेवा होगी। उन्होंने बाद में संवाददाताओं से कहा कि वह हेली के लिए इसे आसान बनाने के लिए अगली बार छोटे शब्दों का इस्तेमाल करेंगे।

भारतीय मूल के दोनों उम्मीदवार बुधवार को तीसरी प्रेसिडेंशियल डिबेट के लिए एक बार फिर से मिलने के लिए तैयार हैं, जो अगले साल जीओपी प्राइमरी में मतदान शुरू होने से पहले बड़ी संख्या में दर्शकों के सामने अपनी बात रखने के उनके अंतिम अवसरों में से एक है। हालांकि वे 2024 के नामांकन की दौड़ में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से बहुत पीछे हैं।

हेली और रामास्वामी भारतीय मूल के अमेरिकियों के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं और भारतीय प्रवासियों के भीतर बारीक विचारों की याद दिलाते हैं। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में दक्षिण एशिया कार्यक्रम के निदेशक मिलन वैष्णव का कहना है कि यह एक बढ़ता हुआ, विषम और विविधता से भरा समुदाय है। बता दें कि मिलन ने इस बारे में एक अध्ययन प्रस्तुत किया है कि भारतीय अमेरिकी कैसे मतदान करते हैं। उनका कहना है कि हेली और रामास्वामी भारतीय अमेरिकियों के बीच विचारों की विविधता का उदाहरण हैं।

दक्षिण कैरोलिना की पूर्व गवर्नर और बाद में ट्रंप के लिए संयुक्त राष्ट्र की राजदूत रहीं हेली आम तौर पर पार्टी के पारंपरिक विचारों के साथ सामने आती हैं, खासकर जब विदेश नीति की बात आती है। 51 साल की हेली ने रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन के लिए समर्थन जारी रखने का आह्वान किया है और 38 वर्षीय रामास्वामी को विश्व मामलों में अप्रमाणिक के रूप में चित्रित किया है। वहीं, बायोटेक उद्यमी रामास्वामी ने यूक्रेन का समर्थन जारी रखने की आवश्यकता पर सवाल उठाए हैं।

मिलन का कहना है कि वे दोनों भारतीय मूल के उम्मीदवार उन अमेरिकियों के व्यापक समुदाय के साथ मेल नहीं खाते हैं, जो डेमोक्रेट्स का समर्थन करते हैं। प्यू रिसर्च सेंटर के एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि 68% भारतीय अमेरिकी पंजीकृत मतदाताओं की पहचान डेमोक्रेट के रूप में की गई और 29% की पहचान रिपब्लिकन के रूप में की गई है।

मिलन वैष्णव का कहना है कि हम रिपब्लिकन पार्टी के साथ जो देख रहे हैं, वह इस बात का प्रतिनिधित्व नहीं करता कि भारतीय-अमेरिकी आबादी पूरी तरह कहां है। रिपब्लिकन शायद अमेरिका में भारतीय प्रवासियों पर जीत हासिल करने की कगार पर नहीं हैं। लेकिन करीबी मुकाबले वाले राज्यों में मामूली लाभ भी उल्लेखनीय हो सकता है।

अमेरिकन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल सर्विस की स्कॉलर मैना चावला सिंह का कहना है कि ज्यादातर भारतीय-अमेरिकियों के लिए राज्य के मुद्दे अधिक मायने रखते हैं। उनका कहना है कि भारतीय-अमेरिकियों के लिए राजनीतिक स्थिति इस बात से तय होगी कि वह अमेरिका के संदर्भ में क्या मायने रखता है। चाहे वह प्रजनन स्वतंत्रता, आप्रवासी विरोधी नीतियां, मंदी या घृणा अपराध हो। यही वह चीज है जो अंततः उनके लिए स्विंग करती है क्योंकि यह उनका भविष्य है।

न्यूजर्सी की ड्रू यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर सांगेय मिश्रा का कहना है कि भारतीय अमेरिकी अब रूढ़िवादी विचारक और राजनीतिक महत्वाकांक्षा तैयार करने के लिए अच्छी स्थिति में हैं, क्योंकि वे मुक्त बाजार, कम टैक्स और योग्यता जैसे विचारों को आसानी से पीछे छोड़ सकते हैं।

मिश्रा का कहना है कि अगर हम कहें कि 10 में से तीन भारतीय-अमेरिकी रिपब्लिकन हैं तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि ये उम्मीदवार कोई अपवाद नहीं हैं, लेकिन वे समुदाय में प्रभावशाली सोच का भी प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। मिश्रा ने कहा कि 1960 और 1980 के दशक के बीच जब पहली लहर आई थी, तब की तुलना में भारतीय अमेरिकी अब अमेरिकी समाज का हिस्सा बन गए हैं।

मिश्रा के मुताबिक, मैंने ऐसे लोगों के उदाहरण देखे हैं जिन्होंने महसूस किया कि उन्हें उस माहौल को चुनौती देने की आवश्यकता है जहां आप्रवासियों, महिलाओं को हाशिए पर रखा जा रहा है। 2008 में बराक ओबामा के अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति के रूप में और कमला हैरिस के 2020 में उपराष्ट्रपति के रूप में चुनाव ने भी भूमिका निभाई।

मिश्रा और अन्य विशेषज्ञों को युवा मतदाताओं के बीच पार्टी निष्ठा में कोई संभावित बदलाव नहीं दिखता है। लेकिन रटगर्स विश्वविद्यालय में सार्वजनिक नीति के स्नातक छात्र 26 वर्षीय रोहन पाकियानाथन का कहना है कि वह किसी दिन खुद को रूढ़िवादी थिंक टैंक में काम करने की कल्पना कर सकते हैं। पाकियानाथन रामास्वामी का समर्थन कर रहे हैं।

रोहन का कहना है कि मैं विवेक से इसलिए जुड़ा महसूस करता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि राजनीति का भविष्य और रिपब्लिकन पार्टी का भविष्य यही होना चाहिए। रामास्वामी की तरह रोहन के माता-पिता दक्षिण भारत से संयुक्त राज्य अमेरिका में आकर बस गए थे। उन्होंने कहा कि भले ही उनके माता-पिता डेमोक्रेट और प्रगतिशील हैं, लेकिन वे रामास्वामी की उम्मीदवारी का सम्मान करते हैं।

पाकियानाथन ईसाई हैं। वह कहते हैं कि रामास्वामी का हिंदू धर्म उनके लिए कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि वह अमेरिका को एक ईसाई देश के रूप में देखते हैं। पाकियानाथन ने कहा कि वह कभी-कभी अपने ही समुदाय में अकेला महसूस करते हैं, उनकी बहन और उनके अधिकांश दोस्त डेमोक्रेट की ओर झुकाव रखते हैं, लेकिन उन्हें नागरिक बहस में शामिल होने में कभी कोई समस्या नहीं हुई।

वाशिंगटन में एथिक्स एंड पब्लिक पॉलिसी सेंटर के वरिष्ठ फेलो हेनरी ओल्सन का कहना है कि भारतीय अमेरिकी उम्मीदवारों की उम्मीदवारी उस 'वास्तविक खुलेपन' का विस्तार है जो रिपब्लिकन पार्टी ने अश्वेत लोगों के सामने दिखाया है। उन्होंने कहा, जब प्रतिभा खुद को दिखाती है तो प्रतिभा के उदय में कोई बाधा नहीं होती है।

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