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भारत की पौराणिक नदी यमुना का प्रदूषण कब होगा कम?

यमुना नदी भी पौराणिक है। इसकी विशेषता यह है कि यह हिमालय से निकलती है, लेकिन समुद्र में मिलने के बजाय प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में गंगा में विलीन हो जाती है। उस क्षेत्र को संगम कहा जाता है।

Photo by Jyotirmoy Gupta / Unsplash

भारत की पौराणिक नदी यमुना (मैया) को एक बार फिर से प्रदूषण रहित बनाने की कवायद शुरू हो गई है। हिमालय से निकली यह नदी देश की राजधानी में सबसे अधिक प्रदूषित रहती है और दिल्ली से बाहर निकलते ही इसका प्रदूषण कम होना शुरू हो जाता है। विशेष बात यह है कि इस नदी को साफ करने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जा चुके हैं, लेकिन प्रदूषण कम होने के बजाय लगातार बढ़ रहा है। एक समय था जब दिल्ली में गुजरते हुए यमुना नदी प्रदूषण रहित रहती थी। इसके घाटों पर उत्सव जैसा माहौल रहता है। मछली और दूसरे प्राणी नदी में नजर आते थे। लेकिन अब यह नदी गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है।

भारत की कुछ अन्य नदियों की तरह यमुना नदी भी पौराणिक है। इसकी विशेषता यह है कि यह हिमालय से निकलती है, लेकिन समुद्र में मिलने के बजाय प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में गंगा में विलीन हो जाती है। उस क्षेत्र को संगम कहा जाता है। कहा जाता है कि यहां पर गंगा-यमुना व विलीन हो चुकी सरस्वती नदी का मिलन होता है। दिल्ली में यह नदी पल्ला गांव से प्रवेश करती है, तब इसमें प्रदूषण कम रहता है, लेकिन दिल्ली का 52 किलोमीटर का सफर पूरा करके जब यह जैतपुर गांव से बाहर निकलती है तो इतनी प्रदूषित हो जाती है कि अंतिम छोर तक पहुंचते-पहुंचते भी पूरी तरह स्वच्छ नहीं हो पाती है। हालत यह है कि बरसात के मौसम में दो माह ही यमुना में पानी का प्रवाह रहता है, बाकी समय यह गंदा नाला ही बनी रहती है। यमुना को दिल्ली में साफ करने के लिए कई योजनाएं बनाई जा चुकी हैं और करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन इसके प्रदूषण में कोई फर्क नहीं पड़ा है।

हिमालय से निकली यमुना का जल बेहद स्वच्छ व प्रदूषण रहित होता है। Photo by Aniket Mandish / Unsplash

आपको हैरानी होगी कि कुछ साल पहले तक यमुना नदी दिल्ली में पूरे साल साफ सुथरी बहती हुई नजर आती थी और दिल्ली के लोगों की दिनचर्या इस नदी से जुड़ी रहती थी। यमुना के अधिकतर प्राचीन घाटों पर हर दिन लोग आते थे। तीज-त्योहरों पर यहां लाखों की भीड़ उमड़ा करती थी। अनेक प्रमुख त्योहारों की शुरुआत यमुना नदी से ही होती थी और लोगों के लिए यह श्रद्धा का केंद्र हुआ करती थी। तब यमुना और उनके किनारों पर अलग ही रंगत दिखती थी। सुबह होने से पहले ही घाट सजकर तैयार हो जाते थे। दिल्ली के लोग इन घाटों पर आते, पूजा अर्चना करते और स्नान वगैरह कर वहां भंडारों में भोजन भी कर लेते थे। उस दौरान यमुना के इन घाटों पर पंडितों की खूब भीड़ दिखाई देती थी। तिलक लगाने, कंघी-शीशा, घिसा हुआ चंदन रखे महिलाएं और बुजुर्ग भी खूब होते थे।

इस नदी के अधिकतर घाटों पर पहले अखाड़े हुए करते थे, जहां सुबह होते ही पहलवान कसरत और कुश्ती करने पहुंच जाते थे। उसके बाद नदी में नहाना इन पहलवानों का प्रमुख शगल होता था। किसी अवकाश या त्योहार के दिनों में जब इन अखाड़ों में आसपास के नामी पहलवान कुश्ती लड़ते थे, तब हजारों की भीड़ उन्हें देखने आती थी। पुराने दौर में जब यमुना मैली नहीं थी, उस वक्त मछली पकड़ने वाले भी नदी किनारे खूब दिखाई देते थे। मछली के शौकीन लोगों को इस बात की जानकारी होती थी कि यमुना के किस छोर, तलहटी या किनारे पर कौन सी मछली मिलती है। ऐसे लोग अपने स्वाद और पसंद के अनुसार यमुना के उन हिस्सों में जाकर मछली पकड़ते थे। ज्यादा मछली होने पर उसे पड़ोसियों को बांट दिया जाता था। जिस दिन मछली पकड़ में नहीं आई तो मान लिया कि यमुना किनारे पूरा दिन बिता लिया।

दिल्ली में यह पौराणिक नदी गंदे नाले में तब्दील हो जाती है। Photo by Jyotirmoy Gupta / Unsplash

पुराने दौर में यमुना के घाटों पर नावों की भरमार रहती थी। पुराने दिल्ली के खास और आम लोग शाम के वक्त इन नावों में सैर के लिए आते थे। तब यमुना का पानी निर्मल और बहता हुआ होता था। कुछ नावें खास होती थीं जिनमें शाम के वक्त पुरानी दिल्ली के धन्नासेठ विहार करने आते थे। बारिश के दौरान जब यमुना में बाढ़ आती थी, तो उसे देखने के लिए लोग विशेष तौर पर आते थे। इन घाटों के आसपास खूब भीड़ होती थी। यमुना का पानी जब उतरता था तो उस वक्त भी लोग यमुना के कछारों पर घूमने के लिए जाते थे। अब सरकार ने इस नदी का पुराना स्वरूप लौटाने का बीड़ा एक बार फिर से उठाया है। सरकार दावा कर रही है कि इसे लंदन की टेम्स नदी जैसा बनाकर रहेंगे। फिलहाल लोगों को इस नदी के स्वच्छ होने का इंतजार है।

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