जहां मन को आपके द्वारा निरंतर व्यापक विचार और क्रिया में आगे ले जाया जाता है, आज़ादी के उस स्वर्ग में, मेरे पिता, मेरे देश को जागने दो...। महान भारतीय कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता-रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा अमर किए गए ये शब्द उस भावना को दर्शाते हैं जिसने अविश्वसनीय भारतीय गणराज्य को आकार दिया है। लेकिन इतनी विशाल विविधता और अथाह इतिहास वाले देश के लिए इसकी कल्पना करना कठिन यात्रा रही है। अब तक।
जब स्वर्गीय सुकुमार चौधरी का निधन हुआ तो वह अपने पीछे भारत के डाक टिकटों का एक अद्भुत संग्रह छोड़ गए। उनकी बहन डॉ. सुलेखा चौधरी ने अपने शुभचिंतकों के प्रोत्साहन से इसे एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया। ये टिकट न केवल एक राष्ट्र की आजादी के बाद से वयस्क होने की कहानी कहते हैं बल्कि एक संग्रहकर्ता के अपनी जड़ों के प्रति आजीवन जुनून और उसकी बहन के काम और स्मृति का जश्न मनाने के दृढ़ संकल्प की दास्तां भी बयां करते है। पुस्तक का नाम है-इंजियाज़ स्पेशल एडिशन (1948-1980).
पुस्तक में 600 से अधिक डाक टिकटों का संग्रह है। इनके माध्यम से 100 से अधिक पृष्ठों की यह किताब पाठक को भारत की आजादी के बाद के 32 वर्षों की सैर कराती है। टिकटों के साथ एक संक्षिप्त विवरण कई दिलचस्प बातों का खुलासा करता है।
शुरुआती पन्नों में एक युवा भारत की झलक है जिसे अपनी विरासत पर गर्व है। टिकट बताते हैं कि भारत ने एक लंबे संघर्ष के बाद आंग्रेजी राज से मुक्ति पाई। इस मुक्ति अभियान में अनगिनत बुद्धिजीवियों, स्वतंत्रता सेनानियों और बलिदानियों ने अपने कर्तव्य से आहुति दी। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरोजिनी नायडू और मौलाना आजाद के रूप में विविधता में एकता के दर्शन होते हैं। महात्मा गांधी समेत ऐतिहासिक हस्तियों को श्रद्धांजलि के साक्षी भी कुछ डाक टिकट बने हैं।
पूरे संग्रह में भारत की परंपरा और संस्कृति की विशालता का पता चलता है। भारत के आधिकारिक प्रतीक अशोक स्तंभ से शुरू करके महान प्रसिद्धि के प्रतीकों और स्थलों की कोई कमी नहीं है। भुवनेश्वर के मंदिर से लेकर नई दिल्ली के संसद भवन तक देश की लंबाई और चौड़ाई को मिलाकर भारत की वास्तुकला अपने स्थायी मूल्यों को प्रदर्शित करती है।
कला और बौद्धिकता में भारत की गहरी विरासत रही है। कई महान कवि, विचारक और वैज्ञानिक इसे अपना घर कहने में गर्व महसूस करते थे। लोकप्रिय कवि संत कबीर, देश के सर्वोच्च कानून को आकार देने वाले डॉ. अम्बेडकर और असाधारण गणितज्ञ रामानुजन भी किताब के पन्नों की शोभा बढ़ाते हैं। भारत ने कभी भी अपनी बैद्धिक संपदा को अपनी सीमाओं तक सीमित नहीं रखा लिहाजा संग्रह में अन्य लोगों के अलावा मैडम क्यूरी, डॉ. मार्टिन लूथर किंग और प्रसिद्ध चार्ली चैपलिन के योगदान को भी समान रूप से सम्मानित किया गया है।
इसके बाद पुस्तक टिकटों के माध्यम से प्रगति की राह पकड़ती है। आधुनिकता झलकने लगती है। एक सक्षम राष्ट्र का निर्माण होने लगता है। आर्थिक उभार शुरू होता है। इस गौरव में खेल भी स्थान पाते हैं। लेकिन प्रगति के बाद भी भारतीय संस्कृति अपनी जड़ों से जुड़ी रही है। इस पुस्तक की समीक्षा करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है जो अब अमेज़न पर उपलब्ध है। इसमें हर किसी के लिए कुछ न कुछ है लिहाजा उम्मीद है कि यह आपका ध्यान आकर्षित करने लायक है।
-अनिरुद्ध सकलानी