Skip to content

मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे: बच्चों की खातिर सरकार से लड़ती मां की कहानी

फिल्म की पटकथा सागरिका चक्रवर्ती की आत्मकथा ‘दि जर्नी ऑफ ए मदर' से प्रेरित है और कलकत्ता के एक बंगाली दंपती की सच्ची कहानी पर आधारित है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक मां अपने बच्चे के लिए नॉर्वे की सरकार से लड़ जाती है।

हिंदी फिल्म ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे’ का एक दृश्य @HerZindagi.com

बॉलीवुड एक्ट्रेस रानी मुखर्जी की चर्चित फिल्म ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे’ रिलीज हो चुकी है। यह फिल्म कलकत्ता के एक बंगाली दंपती की सच्ची कहानी पर आधारित है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे एक मां अपने बच्चे के लिए संघर्ष करती है और नॉर्वे की सरकार से लड़ जाती है। इस फिल्म का निर्देशन आशिमा छिबर ने किया है।

twitter/@variety

फिल्म की पटकथा सागरिका चक्रवर्ती की आत्मकथा ‘दि जर्नी ऑफ ए मदर' से प्रेरित है। यह पुस्तक 2022 में प्रकाशित हुई थी। कहानी की शुरुआत सागरिका की शादी से शुरू होती है। वर्ष 2007 में सागरिका की शादी हो जाती है। उसके बाद पति पत्नी नॉर्वे चले जाते हैं और वहीं बसने का फैसला कर लेते हैं।

नॉर्वे में दंपती की एक बेटी और फिर एक बेटा होता है। इसके बाद कहानी में एक मोड़ आता है। नॉर्वे की सरकार आरोप लगाती है कि वे अच्छे माता-पिता नहीं हैं। सागरिका अपने बच्चों को खिलाते समय गुस्से में थप्पड़ मार देती हैं।

नॉर्वे में बच्चों की देखभाल के लिए कड़े नियम हैं। यदि माता-पिता बच्चों की देखभाल ठीक से नहीं कर पाते, तो बच्चे को चाइल्ड वेलफेयर सर्विस को सौंप दिया जाता है। टीम तब तक बच्चे को अपने पास रखती है जब तक बच्चा 18 वर्ष का नहीं हो जाता।

जब मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे फिल्म की स्क्रीनिंग चल रही थी, सागरिका भट्टाचार्य की आंखें डबडबा गईं। एक वीडियो में सागरिका कह रही हैं, मैं नहीं जातनी कि मैं अच्छी मां हूं या बुरी लेकिन मैं एक मां हूं। एक मां अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर सकती है। वह रानी मुखर्जी से कहती हैं, रानी मैम शुक्रिया! आपने तो मेरा दिल जीत लिया। मैं बहुत खुश हूं।

सागरिका के अनुसार, चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज टीम की एक महिला अधिकारी उनके घर आती थी। जब मैं बच्चों को खाना खिलाती थी, तब भी आ जाती थी। मैं उनकी भाषा अच्छी तरह नहीं समझ पाती थी इसलिए उससे ज्यादा बात नहीं कर पाती थी। मैंने कभी सोचा नहीं था कि मेरे बच्चे मुझसे छिन जाएंगे। मेरे लिए सबसे दुखद था कि साल में तीन बार एक-एक घंटे के लिए मैं अपने बच्चों से मिल सकती थी।

धीरे-धीरे यह पूरा मामला मीडिया की नजर में आया। भारत में लोगों ने सागरिका के पक्ष में प्रदर्शन किए। भारतीय विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद नार्वे सरकार ने बच्चों की कस्टडी उनके चाचा अरुनाभास भट्टाचार्य को सौंपने का फैसला किया। 2012 में दोनों बच्चे अपने चाचा के पास चले गए। इस केस की वजह से सागरिका और उनके पति अनुरूप के रिश्ते में दरार पड़ गई। लंबी सुनवाई के बाद, आखिरकार उसी साल सागरिका को अपने बच्चों को पालने की अनुमति मिल गई। इस तरह लंबे संघर्ष के बाद सागरिका की जीत हो गई।

Comments

Latest