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दो अतियों के बीच झूलना ही सभी दुखों का कारण है, श्रीकृष्ण बताते हैं समाधान

योग के अभ्यास से हमारे आहार विहार में भी संतुलन आता है। हम जरूरत के हिसाब से ही भोजन करते हैं। शरीर की जरूरत के हिसाब से नींद लेते हैं। इससे हमारा शारीरिक स्वास्थ्य बना रहता है। क्योंकि लाइफस्टाइल से जुड़ी ज्यादातर बीमारियों का मुख्य कारण बिगड़ा हुआ आहार-विहार है।

Photo by Anshuman Abhishek / Unsplash

अपने जीवन में आपने जरूर अनुभव किया होगा कि या तो आप सुखी अनुभव करते हैं, या आप दुखी होते हैं। आप या तो अतीत में होते हैं, या भविष्य की उलझनों में। जीवन के अनुभवों पर गौर करें तो आप एक न एक अति पर होते हैं। कभी आपने सोचा है कि ये क्या है? क्या ये आपकी सही अवस्था है? अगर नहीं तो इससे बचने का उपाय क्या है?

जीवन में समत्व यानी समता को हासिल करना ही योग है। Photo by kike vega / Unsplash

इस सवाल का जवाब हमें भारतीय चिंतन दर्शन में मिलता है। और इसका जो उत्तर मिलता है उसी में समस्त समाधान छिपा है। दरअसल, इसका जवाब है दो अतियों के बीच में होना। दो अतियों के बीच झूलते रहना ही जीवन के सभी दुखों का कारण है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण समत्व की बात करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन का रहस्य समझाने के लिए कहते हैं कि जीवन में समत्व यानी समता को हासिल करना ही योग है।

अर्जुन युद्ध की अति पर पहुंच चुके थे। लेकिन कुरुक्षेत्र के मैदान में जब उन्होंने विशाल सेना को देखा तो उनके भीतर श्मशान वैराग्य जाग गया। वे सबकुछ छोड़कर संन्यासी होने की बात करने लगे। यह उनकी दूसरी अति थी। दरअसल, जीवन के इस कुरुक्षेत्र में हम आम लोग भी इन्हीं दो अतियों के बीच भटकते रहते हैं। लेकिन जब हम श्रीकृष्ण रूपी योग साधना, प्राणायाम साधना, ध्यान की तरफ मुखर होते हैं तो हमें बीच कर रास्ता मिलता है। जिसे श्रीकृष्ण समता कहते हैं।

संतुलन को साधना ही योग है। Photo by Wesley Tingey / Unsplash

योग साधना के अभ्यास दरअसल बीच में ठहरने का अभ्यास है। इसमें हम वर्तमान में होते हैं। और यही से हम संसार की दो अतियों के बीच में होने की साधना करते हैं। और इसका असर हमारे लाइफस्टाइल में दिखने लगता है। योग साधक न तो अधिक खाने वाला होता है, न भूखा रहने वाला। ने तो वह सोता रहता है, न ही बिल्कुल जगा ही रहने वाला है। ने तो भविष्य की चिंताओं में डूबा रहता है, न ही अतीत की यादों में।

योगाभ्यास से ऐसी दृष्टि तैयार होती है तो साधक को समता में जीना सिखाती है। इस तरह से योग का अभ्यास हमें कई तरह की समस्याओं से बचा लेता है। अगर हम व्यर्थ की भविष्य की चिंताओं को लेकर भयभीत नहीं होंगे, अतीत की यादों को याद कर कुंठित नहीं होंगे तो मानसिक तौर पर स्वस्थ रहेंगे। मानसिक बीमारी का यह सबसे बड़ा कारण है। तनाव का यही बड़ा कारण है। हाई ब्लड प्रेसर, लो ब्लड प्रेसर का मुख्य कारण यही है। इससे कई तरह की बीमारियों का जन्म होता है।

समस्त दुखों से पार ले जाता है योग। Photo by Kaylee Garrett / Unsplash

वहीं, योग के अभ्यास से हमारे आहार विहार में भी संतुलन आता है। हम जरूरत के हिसाब से ही भोजन करते हैं। शरीर की जरूरत के हिसाब से नींद लेते हैं। इससे हमारा शारीरिक स्वास्थ्य बना रहता है। क्योंकि लाइफस्टाइल से जुड़ी ज्यादातर बीमारियों का मुख्य कारण बिगड़ा हुआ आहार-विहार है। यदि हम सामान्य भोजन लेंगे तो स्वस्थ रहेंगे, मोटापा नहीं होगा, शरीर का केलोस्ट्रोल नहीं बिगड़ेगा।

योग का अभ्यास हमें महत्वाकांक्षा की भट्टी में भी जलने से बचाता है। क्योंकि यह भी एक अति है। यह हमें आलसी होने से भी बचाता है, क्योंकि यह दूसरी अति है। इस तरह से योग के अभ्यास से हम उस अवस्था को हासिल कर सकते हैं जिसकी चर्चा भगवान श्रीकृष्ण कर रहे हैं। और वह है समता का मार्ग। जीवन को संतुलन बनाने का मार्ग। जिसपर चलकर साधक अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है।

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