भारत और जापान आजकल तकनीक को साझा करने के अलावा हर मामले में मदद करने में अग्रणी माने जा रहे हैं। जापान के बारे में यह माना जाता था कि आधुनिक तकनीक में वह पूरी दुनिया में नंबर वन है, लेकिन इस तकनीक को साझा करने के मसले पर वह कंजूसी बरतता है। लेकिन जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने इस मिथक को तोड़ा और भारत का खूब साथ दिया, यहां तक कि भारत की महत्वपूर्ण योजनाओं में भी मदद की। शिंजो आबे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मित्रता के चर्चे पूरे विश्व में रहे हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री आबे की जापान में एक चुनावी रैली के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई। पूरा विश्व सकते और दुख में डूब रहा है। भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने शिंजो आबे के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि मैं अपने सबसे प्यारे दोस्तों में से एक शिंजो आबे के दुखद निधन पर स्तब्ध और दुखी हूं। वह एक महान वैश्विक राजनेता, एक उत्कृष्ट नेता और एक उल्लेखनीय प्रशासक थे। उन्होंने जापान और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। पीएम मोदी ने कहा कि अर्थव्यवस्था और वैश्विक मामलों पर उनके दृष्टिकोण ने हमेशा मुझ पर गहरी छाप छोड़ी। शिंजो आबे ने भारत-जापान संबंधों को एक विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी के स्तर तक बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान दिया। उनके सम्मान में भारत 9 जुलाई को राष्ट्रीय शोक मना रहा है।
शिंजो आबे की मृत्यु को लेकर भारत की यह मार्मिक व अपनत्व की प्रतिक्रिया बेहद जायज है। उसका कारण यह है कि राजनीति में प्रिंस कहे जाने वाले शिंजो ने भारत के सामरिक, तकनीकी व आर्थिक विकास को लेकर हमेशा सराहनीय भूमिका निभाई। वह मानते थे कि एशिया में शांति के लिए दोनों ही देश क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए 'कानून के सम्मान' और 'समुद्री यातायात' की स्वतंत्रता के लिए पहली शर्त है। जापान की भूमिका का आलम यह है कि भारत के लगभग हर हिस्से में जापानी कंपनियां काम कर रही हैं और ये कंपनियां वाहनों, दूरसंचार, ऊर्जा उपकरणों और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के लिए भारत में एक विश्वसनीय ब्रांड हैं। बड़ी बात यह है कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने देश को लेकर जितनी भी विकास योजनाएं और अभियान शुरू किए हैं, उनमें जापान ने पूरी मदद की है। इनमें मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्मार्ट इंडिया आदि शामिल हैं।

जापान आज भी कई महत्वपूर्ण मसलों व योजनाओं पर भारत को सहयोग कर रहा है, इसे सहयोग के लिए शिंजों आबे ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में बड़ी भूमिका बना ली थी और उसे फलीभूत करना शुरू कर दिया था। इस मसले को थोड़ा समझते हैं कि ऐसा क्यों कर हुआ। वह जापान के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने भारत के सबसे अधिक दौरे किए। वह प्रधानमंत्री रहते चार बार और कुल पांच बार भारत आए। पहली बार 2006 में, जब वह जापान के चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी हुआ करते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद 2007 में भारत आए। इसके बाद वह 2012 से 2020 तक जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, तब भी उन्होंने तीन बार भारत का दौरा किया। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा। शिजों आबे गणतंत्र दिवस की परेड में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होने वाले पहले जापानी प्रधानमंत्री थे। भारत से उनका इतना अधिक जुड़ाव व अपनापन था कि उन्होंने वाराणसी में गंगा आरती की और साबरमती आश्रम में बापू के आगे शीश नवाया।

इस दौरान उन्होंने भारत से रिश्तों को खूब मजबूत किया और हरसंभव मदद करने में कमी नहीं छोड़ी। वर्ष 2006-07 में अपने पहले कार्यकाल में शिंजे आबे ने भारत का दौरा किया था और संसद को संबोधित भी किया। इस दौरान उन्होंने अब मशहूर ‘दो समुद्रों का संगम’ से जुड़ा भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने हिंद-प्रशांत अवधारणा की नींव रखी। उनकी यही सोच बाद में भारत-जापान संबंधों के लिए एक मजबूत और अहम कड़ी के रूप में ढल गई। आपको बता दें कि इन संबंधों को और मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल (वर्ष 2014) के शुरुआती विदेशी दौरे में पहली द्विपक्षीय यात्रा के लिए जापान को चुना। मोदी और आबे द्विपक्षीय संबंधों को ‘विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी’ में आगे बढ़ाने पर सहमत हुए। इसी दौर में जापान ने भारत के साथ नागरिक परमाणु ऊर्जा, समुद्री सुरक्षा, एक्ट ईस्ट नीति से लेकर इंडो-पैसिफिक रणनीति जैसे महत्वपूर्ण मसलों को जोड़ा।
पूरे भारत में आज जो मेट्रो ट्रेन का संजाल बिछा है, वह जापान के सहयोग से ही फलीभूत हुआ है। इसके अलावा बुलेट ट्रेन परियोजना में उनका सहयोग काबिले-तारीफ है। शिंजे का महत्वपूर्ण योगदान यह भी है कि उन्होंने क्वॉड समूह का गठन में निजी रुचि दिखाई जिसके बाद अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत इस समूह पर एक साथ आए। वर्ष 2017 में जब दोबारा से इसे आगे बढ़ाया गया उसमें भी शिंज़ो आबे की भूमिका अहम रही। यूं तो भारत और जापान के बीच सामरिक सहयोग सबसे ज़्यादा है, लेकिन क्वॉड समूह के ज़रिए जब ये चार देश साथ आए हैं उस वजह से वैक्सीन से लेकर सुरक्षा तक हर स्तर पर सहयोग बढ़ा है।
शिंजे आबे के भारत के सहयोग को लेकर अगर हम कहें कि ‘क्या भूलें, क्या याद करें’ तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। जापान जब उनकी लीडरशिप में था तो भारत के साथ जापान के संबंध पूरी तरह से नए कलेवर में उतर आए थे। मानवीय स्तर पर भी वह भारत को सम्मान की नजरों से देखते थे। भारत को लेकर उनका अपनत्व इतना प्रगाढ़ था कि देश के नेताओं और आम लोगों को उनकी कमी लगातार खलती रहेगी। उनकी कमी देश के सियासतदानों को तो खलेगी ही भारत का जनमानस भी उन्हें याद करेगा। भारत के लिए शिंजे का महत्व इसलिए भी माना जाता है कि उनकी मौत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत में एक दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। असल में जापान की राजनीति में प्रिंस कहे जाने वाले आबे भारत के लोकतंत्र से बेहद प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने सदा भारत का हित चाहा।