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मेवाड़ उत्सव 24 मार्च से, राजस्थानी संस्कृति से रूबरू होने का मौका

इस उत्सव में कई रूपों में रंगों का संगम देखने को मिलता है। रंग-बिरंगे राजस्थानी परिधानों, रंगोलियों और सजावट में रंग निखर कर आता है। अगर आप मरु प्रदेश घूमने की योजना बना रहे हैं तो मार्च में इस खास अ‌वसर को न भूलें।

राजस्थानी संस्कृति की झलक पेश करने वाला कालबेलिया नृत्य महोत्सव में खास रहेगा (साभार सोशल मीजिया)

भारत में राजस्थान सांस्कृतिक रूप से संपन्न राज्य है। यहां की रग रग में रीति-रिवाज, खानपान और पर्व-त्योहार बसे हैं। इसी कड़ी में हर साल गर्मी के आगमन से पहले यानी वसंत के मौसम में मेवाड़ उत्सव मनाया जाता है। इस साल यह उत्सव 24 से 26 मार्च तक उदयपुर में मनाया जाएगा।

उदयपुर में मेवाड़ महोत्सव की तैयारी शुरू हो गई है (साभार सोशल मीडिया)

आसपास के इलाकों और पड़ोसी राज्यों में रहने वालों को बेसब्री से इस उत्सव का इंतजार तो रहता ही है, दूर-दराज से आगंतुक भी पलक-पांवड़े बिछाकर इस अवसर का इंतजार करते हैं। कारण कि इस उत्सव में राजस्थान की संस्कृति, इतिहास और धार्मिक परंपरा की झलक देखने को मिलता है।

यह उत्सव वसंत ऋतु की गवाही देता है। आमतौर पर हर साल मार्च या अप्रैल महीने में यह उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव में कई रूपों में रंगों का संगम देखने को मिलता है। रंग-बिरंगे राजस्थानी परिधानों, रंगोलियों और सजावट में रंग निखर कर आता है। अगर आप इन दिनों मरु प्रदेश घूमने की योजना बना रहे हैं तो मार्च महीने में मनाए जाने वो इस खास अ‌वसर को न भूलें।

इस उत्सव में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं रंग-बिरंगे पोशाकों में तैयार होकर आती हैं और विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों को सजाती हैं। उन्हें इन दिनों का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। इस उत्सव की शुरुआत होलिका दहन के बाद से शुरू हो जाती है।

दुनिया भर से पर्यटक इस रंगीले उत्सव का गवाह बनने के लिए आते हैं। कलाकार पारंपरिक राजस्थानी गीतों पर लोक नृत्य, जैसे कालबेलिया और घूमर  प्रस्तुत करते हैं। इन दिनों मेले जैसा माहौल रहता है। तरह-तरह की दुकानें सज जाती हैं। पर्यटन विभाग ने महोत्सव की तैयारियां कर ली है।

24 मार्च को पारंपरिक तौर पर गणगौर की सजी सवारियां निकाली जाएंगी। बंसीघाट से पिछोला झील के गणगौर घाट तक यह जुलूस जाएगी। 25 मार्च को विदेशी जोड़ों की पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में प्रतियोगिता होगी। मेले के साथ सांस्कृतिक संध्या और ग्रामीण हाट का भी आयोजन होगा।

मेवाड़ी परंपरा की गवाही देने वाला यह उत्सव वर्ष 1979 में शुरू हुआ था। तब मेवाड़ राजघराने के सदस्य, विदेशी मेहमान और आम लोगों ने बड़े धूमधाम से इस त्योहार को मनाया था। यह उत्सव संस्कृतियों को संवारने का बेहतर उदाहरण पेश करता है।

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