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विशेष लेख: पीएम मोदी के इंतजार में अमेरिका...

दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्रों के दो नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों में एक नए युग के लिए रूपरेखा तैयार की है। बेशक, इसका प्रभाव वैश्विक होगा।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी Image : twitter@Narendra Modi

आज से करीब दो सप्ताह बाद मीडिया जगत के दिग्गज ही नहीं, राजनीतिक पंडितों के साथ ही 'आरामकुर्सी' वाले विश्लेषक भी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा पर अपनी राय व्यक्त कर रहे होंगे। पेशेवर लोग पीएम मोदी की यात्रा को बड़े परिदृश्य में देख रहे होंगे तो राजनीतिक जमात यात्रा को अपने पूर्वकल्पित विचारों और आग्रह-पूर्वाग्रह के आईने से देखेगी। कुछ लोग कमियां तलाशेंगे। वह भी अपने हिसाब से। यात्रा का गुणा-भाग कुछ वास्तविक होगा और कुछ आधारहीन। लेकिन भारत और अमेरिका के लिए यह यात्रा वास्तव में संबंधों को भविष्य के परिप्रेक्ष्य में और द्विपक्षीय रूप से तथा हिंद-प्रशांत व विश्व स्तर पर उभरती चुनौतियों के संदर्भ में रखने का एक अवसर है।

नई दिल्ली और वाशिंगटन इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि रिश्तों का आधार क्या है और इसे समग्र रूप से किस दिशा में ले जाना चाहिए। इस विकसित हो रहे सामरिक संबंध को एक या दो मतभेदों अथवा अस्थायी गलतफहमियों में बांधना असल बिंदु से चूकना होगा। आखिर दोस्ती के मजबूत बंधन में असहमति और असहमति एक मूलभूत सिद्धांत के रूप में काम करती है। जहां तक भारत का संबंध है तो रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर उसका रवैया अमेरिका में निराशा का एक अहम पहलू है। लेकिन बाइडेन प्रशासन को इस बात का भ्रम कभी नहीं रहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र या अन्य मंचों पर कब किस ओर खड़ा होगा। अलबत्ता भारत के प्रधानमंत्री का रुख सबके सामने शुरुआत से ही स्पष्ट रहा। रूस के सामने भी। जब प्रधानमंत्री मोदी पूरी दुनिया के सामने और पुतिन से अपनी मुलाकात में यह कहते हैं कि-यह युद्धों का युग नहीं है और राष्ट्रीय संप्रभुता और अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.... तो सब कुछ साफ हो जाता है। तब पूरी दुनिया जान जाती है कि भारत कहां खड़ा है।

राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक रूप से मोदी का एजेंडा वास्तव में भरा-पूरा होगा क्योंकि इन मोर्चों पर बहुत कुछ ठीक किया जाना है। चाहे वह व्यापार का क्षेत्र हो अथवा उच्च तकनीकी रक्षा सहयोग जहां प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से संबंधित पेचीदा मुद्दे संवाद का हिस्सा बनने वाले हैं। भारत के लोगों के लिए वीजा का मुद्दा भी कम महत्व का नहीं है और अमेरिका में बसा 40 लाख लोगों का भारतीय समुदाय भी इस यात्रा में मायने रखता है। लेकिन इसके साथ ही यह भी ध्यान में रखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करने वाले हैं। ऐसा आमतौर पर नहीं होता। कुछ खास 'दोस्तों' के लिए ही होता है।

कुल मिलाकर अनेक मसलों के हिसाब से मंच तैयार है। न्यूयॉर्क और वाशिंगटन डीसी में प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों को दोनों पक्षों के वरिष्ठ अधिकारियों और भारतीय अमेरिकी समुदाय के नेताओं द्वारा अंतिम रूप दिया जा रहा है। 'आप मेरे लिए क्या लाए हैं' और 'मैं क्या लेकर घर वापसी करूंगा' इसका समय चला गया है। अब तो बस यही है कि दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्रों के दो नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों में एक नए युग के लिए रूपरेखा तैयार की है। बेशक, इसका प्रभाव वैश्विक होगा।

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