Skip to content

सिंघानिया और रामास्वामी से समझें तलाक समाज को कहां लेकर जाएगा

धर्म, संस्कृति और सभ्यता एक समाज का निर्माण करती है। समाज परिवार बनाता है। परिवार बच्चों का निर्माण करता है। और ये बच्चे फिर से संस्कृति, धर्म और सभ्यता का निर्माण करते हैं। इसलिए परिवार में तनाव और कलह भविष्य में एक ऐसे समाज का निर्माण करेगा, जिसकी आप सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं।

Photo by Jordan Whitt / Unsplash

रेमंड ग्रुप के चेयरमैन गौतम सिंघानिया और अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी से उम्मीदवारी की रेस में शामिल भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी इन दिनों सुर्खियों में बने हुए हैं। जहां सिंघानिया अपनी पत्नी को तलाक देने को लेकर चर्चा में हैं। वहीं रामास्वामी तलाक पर अपने विचार को लेकर।

man in gray crew neck long sleeve shirt standing beside woman in black crew neck shirt
तलाक किसी समस्या का समाधान नहीं है। Photo by Afif Ramdhasuma / Unsplash

कुछ दिनों पहले विवेक रामास्वामी ने एक इंटरव्यू में कहा कि मैं एक हिंदू हूं। और शादी बहुत ही पवित्र रिश्ता है। इसका अपमान करना बेहद गलत है। हम कभी भी तलाक को अपनी प्राथमिकता बनाकर नहीं चुन सकते। हम भगवान के सामने शादी करते हैं। उनके और अपने परिवार को शपथ देते हैं। सवाल उठता है कि क्या तलाक किसी समस्या का हल है या एक नई समस्या की शुरुआत है। पारिवारिक कलह से आखिरकार हम कैसा समाज का निर्माण कर रहे हैं?

हालांकि आधुनिक भारतीय समाज में भी तलाक का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, लेकिन पश्चिमी देशों की तरह यह अपने चरम अवस्था में नहीं पहुंचा है। भारतीय समाज गहरे अर्थों में ये मानता है कि तलाक की मौजूदा प्रणाली एक अनावश्यक प्रयास है। यह केवल एक ऐसे समाज में आवश्यक है जहां लोग भावनात्मक रूप से अनुशासनहीन हैं। एक संस्कृति या एक समुदाय जिसमें भावनात्मक अनुशासन है, समझ सकता है कि तलाक किसी समस्या का समाधान नहीं है। यह एक और समस्या की शुरुआत है।

सनातन भारतीय समाज में तलाक की कोई अवधारणा नहीं है। इसकी वजह ये है कि शादी कोई समझौता नहीं है, बल्कि जनम-जनम का रिश्ता है। एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज के निर्माण की दिशा में उठाया गया एक कदम है। इसलिए भारतीय चिंतन कहता है कि पुरुष एक महिला से संबंधित है, और महिला एक पुरुष से। यह न केवल सेक्स और कामवासना की संतुष्टि के दृष्टिकोण से, बल्कि समग्रता के साथ जुड़े हुए हैं। जब कोई अनुशासनहीन होता है तो वह मूल्य को नहीं समझता है।

संबंधों में अगर सेक्स केंद्र में है तो, तो वहां तलाक अपरिहार्य हो जाता है। दरअसल, आधुनिक समाज में प्यार को बहुत गलत अर्थ में समझा जाता है। इसे सिर्फ शारीरिक संबंधों तक सीमित कर दिया गया है। लेकिन प्रेम इन मायनों से अलग है। भारतीय जीवन दर्शन में प्रेम को समर्पण का एक रूप माना गया है। कर्तव्य प्रेम का एक रूप है। समझ प्यार का एक रूप है। गड़बड़ी वहां शुरू हो जाती है जब हम प्यार को सेक्स केंद्रित कर देते हैं।

लेकिन सेक्स को प्यार के रूप में व्याख्या नहीं किया जाना चाहिए। कोई भी किसी को बिना किसी यौन संबंध के जीवन भर के लिए प्यार कर सकता है। दूसरी तरफ कोई प्यार किए बिना भी किसी व्यक्ति के साथ यौन संबंध भी बना सकता है। इसलिए समाज, परिवार और बच्चों के हित में माता-पिता को पहले प्यार को बढ़ाना और विकसित करना चाहिए, न कि केवल चुंबन, गले लगाने को ही सब कुछ समझना चाहिए। उन्हें एक सामान्य तत्व खोजना होगा जिसे लेकर वे एक साथ बैठ सकें और किसी ऐसी चीज के बारे में बात कर सकें जो सभी के लिए सामान्य हो। यह साहित्य, पेंटिंग, योग, यात्रा, मनोरंजन, खेल, राजनीति कुछ भी हो सकता है। 

जब पत्नी किचन और बच्चों के बारे में बात करती है और पति ऑफिस और बिजनेस की बात करते हैं तो वे एक-दूसरे को समझ नहीं पाते हैं। पति को अपनी पत्नी की क्षमता की खोज करनी चाहिए और पत्नी को अपने पति की क्षमता की खोज करनी चाहिए। इन बातों से संबंध प्रगाढ़ होता है। पारिवारिक जीवन में कई गलतियां होती हैं। पत्नी, पति से लड़ती है और बच्चों को अपनी तरफ करने की कोशिश करती है। उसी तरह पिता भी यही कोशिश करता है। बच्चों को माता और पिता द्वारा झगड़ों में घसीटा जाता है। इससे तय मानें कि आगे चलकर यह बच्चा अपने जीवनसाथी के साथ संबंध बेहतर नहीं बना पाएगा, और इसकी परिणति तलाक में हो सकती है।

धर्म, संस्कृति और सभ्यता एक समाज का निर्माण करती है। समाज परिवार बनाता है। परिवार बच्चों का निर्माण करता है। और ये बच्चे फिर से संस्कृति, धर्म और सभ्यता का निर्माण करते हैं। इसलिए परिवार में आपसी संबंधों पर फिर से विचार कीजिए। आपके परिवार में तनाव और कलह भविष्य में एक ऐसे समाज का निर्माण करेगा, जिसकी आप सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं।

Comments

Latest