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1984 के सिख विरोधी दंगों को जैसा मैंने देखा: हत्याएं नहीं नरसंहार था

कहा जाता है कि इन दंगों में देश भर में 3500 व दिल्ली में करीब 2700 सिखों की हत्याएं की गईं। दूसरी ओर सिख संगठन दावा करते हैं कि मृतकों की संख्या इससे अधिक थी, क्योंकि न तो उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, पोस्टमॉर्टम हुआ और न ही हत्याओं की पुलिस रिपोर्ट लिखी गई। मैंने इन दंगों को अपनी आंखों से देखा।

आज ही के दिन ठीक 29 साल पहले भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी। यह हत्या उनके दो सिख सुरक्षा कर्मियों ने की थी। इस हत्या के बाद पूरे देश भर में सिखों के खिलाफ रोष पैदा हो गया था और सिखों के अलावा उनके परिवार की महिलाओं व बच्चों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। यह हत्याएं हैवानियत से भरी हुई थी, क्योंकि अधिकतर सिखों को पेट्रोल से जलाया गया था, इसलिए इन दंगों को सिखों का ‘नरसंहार’ भी कहा जाता है।  

तीन दिन तक दिल्ली में सिखों का कत्ल होता रहा

ऐसा कहा जाता है कि इन दंगों में पूरे देश भर में 3500 और दिल्ली में ही करीब 2700 सिखों को मौत के घाट उतारा गया था। दूसरी ओर सिख संगठन दावा करते हैं कि मृतकों की संख्या इससे बहुत अधिक है, क्योंकि न तो उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, पोस्टमॉर्टम हुआ और न ही अधिकतर हत्याओं की पुलिस रिपोर्ट लिखी गई। मैंने इन दंगों को अपनी आंखों से देखा और जाना कि प्रधानमंत्री की हत्या के बाद किस तरह सिखों को निशाना बनाया गया है। याद दिला दें कि 31 अक्टूबर 1984 की सुबह इंदिरा गांधी की उनके निवास पर ही सिख गार्डों ने गोली मारी थी, उसके बाद उन्हें एम्स (अस्पताल) ले जाया गया था, उन्हें बचाने का प्रयास किया गया था, लेकिन वह बच नहीं पाई। उनकी हत्या के बाद ही लोगों में सिखों के खिलाफ रोष पैदा हो गया। उस दिन कुछ स्थलों पर सिखों को मारा-पीटा गया, लेकिन अगले तीन दिनों तक पूरी दिल्ली में सिखों की खुलेआम हत्या होती रहीं, उनके घरों को जलाया गया, महिलाओं के साथ शोषण किया गया। लेकिन दुख की बात यह है कि इन दंगों को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया। ऐसे आरोप हैं कि राजनैतिक कारणों के चलते ऐसा नहीं किया गया। इन तीन दिनों में सिखों के साथ नरसंहार हुआ और उनके घरों, दुकानों, प्रतिष्ठानों को बेशर्मी से लूटा गया।

 टायर डालकर सिखों को जलाया गया

 इन तीन दिनों में मैने इन दंगों, सिखों की हत्याओं और लूट को देखा। दिल्ली में हुई इन घटनाओं से आपको रूबरू कराता हूं। मैं पुरानी दिल्ली रहता था और कुछ कारण से मैंने उस दौरान साइकिल से साउथ दिल्ली स्थित होली फैमिली अस्पताल का दौरा किया। रास्ते में दरिया गंज, दिल्ली गेट, आईटीओ, प्रगति मैदान, निजामुद्दीन तक मुझे सड़कें सूनी दिखीं और वहां पर सिर्फ पुलिस की गाड़ियां दौड़ती नजर आ रही थीं। उसके बाद भोगल से आश्रम चौक तक नजारा इतना भयावह था कि मेरी रूह आज भी कांप उठती है। दंगाई सड़कों पर सिखों को मारकर उन्हें टायरों से जला रहे थे। सड़कों पर जगह-जगह शव दिख रहे थे और आकाश में काला और बदबूदार धुआं उड़ता दिखाई दे रहा था। एक जगह जब एक अचेत पीड़ित को टायर डालकर जलाया था तो वह दर्द के मारे चीखकर उठने की कोशिश करने लगा, लेकिन दंगाइयों ने उसे ईंट मार-मारकर फिर ढेर कर दिया।

सिखों की सबसे अधिक हत्याएं त्रिलोकपुरी पुनर्वास कॉलोनी में हुई थी। फोटो: सोशल मीडियाफा

दुश्मनों ने सिखों की दुकानों को लुटवाया

इन दंगों की आड़ में कई लोगों ने सिखों के खिलाफ कारोबारी बदला भी लिया। दंगे जारी थे। अगले दिन मैं पुरानी दिल्ली की छोटी-छोटी गलियों को पार करता हुआ चांदनी चौक मेन बाजार पहुंच गया। वहां देखा कि जगह-जगह दुकानें जलाई जा रही थी और दंगाई दुकानों में रखा माल लूट रहे थे। एक जगह मैने देखा कि कुछ लोग सिखों की दुकानों के ताले तुड़वा रहे थे और शटर को थोड़ा सा ऊपर उठाकर दंगाइयों को उन्हें लूटने के लिए उकसा रहे थे। ये लोग असल में पड़ोस के ही दुकानदार थे, जिनकी सिख दुकानदारों से कारोबारी अदावत थी। सड़कों पर लोग सामान लेकर भागे जा रहे थे, किसी के सिर पर सूटकेस था तो किसी के दोनों हाथों में कुछ और भारी सामान। पूरी सड़क पर भगदड़ मची हुई थी। बाजार में ही ऐतिहासिक गुरुद्वारा सीसगंज के अंदर, छतों और खिड़कियों से बचाकर लाए गए सिख नौजवान, बच्चे और महिलाएं खासे डर और दहशत से बाजार को कातर नजरों से देख रहे थे। पूरे बाजार में आग की लपटे और काला धुआं पसरा हुआ था। कुछ दंगाई गुरुद्वारे पर हमला करने की कोशिश में भी थे, लेकिन भारी पुलिस बल देखकर उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी।

1984 anti-Sikh riots - Wikiquote
सिख विरोधी दंगें आज भी दहलाते हैं। फोटो: विकिपीडिया

अफवाहों ने दंगों को और बढ़ाया

पूरे तीन दिन दिल्ली में जो वहशत का दौर चला, उससे यह क्लियर हो जाता है कि वह दंगा नहीं सिखों का कत्लेआम था। न मैंने कहीं भी ऐसा देखा, न सुना कि पूरी दिल्ली में सिखों ने कहीं पर भी कोई विरोध जताया या दूसरी कौम को मारने की कोशिश की। हां, कुछ इलाकों में शरारती तत्वों ने यह अफवाह जरूर फैलाई गई कि सिखों ने रात को उनके इलाके में हमला करने की तैयारी कर ली है और रात में किसी भी वक्त हमला हो सकता है। उस वक्त ऐसे इलाकों में कई शरारती लोग अपनी लाठियों में छोटा सा चाकू बांधकर ऐसे घूमते नजर आए, जैसे वे बॉर्डर पर देश की रक्षा को आतुर हों। मेरे जामा मस्जिद इलाके में यह अफवाह उड़ाई गई कि सिखों ने पानी की टंकियों में जहर डाल दिया, लेकिन लोगों ने उस पर खास विश्वास नहीं किया। कुछ इलाकों में यह भी अफवाह फैलाई गई कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख बहुल इलाकों में सिखों ने दीए जलाए, आतिशबाजी छोड़ी और जश्न मनाया, जिससे लोगों को गुस्सा आया और वे उनको मारने पर आतुर हो गए। मैं आज भी इस बात पर कायम हूं कि 1984 का हादसा दंगा नहीं बल्कि सिखो का नरसंहार था।

न्याय के लिए पीड़ित सिख आज भी शासन से लगातार गुहार लगा रहे हैं। फोटो- सोशल मीडिया

लोकल नेताओं ने इन दंगों को खूब हवा दी

 सिखों की हत्याएं दिल्ली में एक स्थल पर नहीं, बल्कि पूरी दिल्ली में हुई थी। सबसे अधिक सिखों की हत्याएं यमुनापार स्थित त्रिलोकपुरी पुनर्वास कॉलोनी में हुई थी। वहां स्थानीय नेताओं की शह पर लोगों ने सिखों को मारा और उनके घरों को लूटा। इसके अलावा बाहरी दिल्ली के देहाती इलाकों में सिखों को मारा गया। यहां बसी जेजे कॉलोनियों और झुग्गियों के लोगों ने सिखों के घरों में जमकर लूटपाट की और उनकी हत्याएं भी कीं। लगातार कहा जा रहा था कि इसमें लोकल नेता भी शामिल थे। दुख की बात यह थी कि किसी भी पुलिस अधिकारी या थाने की ओर से सिखों को बचाने की कोशिशें नहीं की गईं। तीसरे दिन जब दिल्ली में सेना की तैनाती की गई तो दंगे समाप्ति की ओर थे। लेकिन हजारों सिखों को निशाना बनाया जा चुका था। आर्मी ने दंगाइयों के घरों से सिखों से लूटे गए सामानो को जब्त किया, लेकिन उन्हें सजा नहीं दी गई। बाद में सिख संगठनों ने कई नेताओं के खिलाफ मुकदमें दर्ज करवाए। दंगों को लेकर कई आयोग गठित किए गए, लेकिन अधिकतर दंगाई आज भी खुले घूम रहे हैं। कुछ पर मुकदमे चल रहे हैं, लेकिन उनकी स्थिति बेहद कमजोर है।

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