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वास्तविक घटनाओं पर समाज और व्यवस्था से सवाल करती हैं ये बॉलीवुड फिल्में

समाज और जीवन की वास्तविक घटनाओं पर बनी कुछ फिल्में वास्तविक घटनाओं के अनसुलझे पहलुओं की तलाश करती हैं और हमारे समाज और व्यवस्था को आईना दिखाती हैं।

रानी मुखर्जी और विद्या बालन अभिनीत 'नो वन किल्ड जेसिका' एक अभूतपूर्व फिल्म है। Image : social media

बॉलीवुड या फिल्मों की गाड़ी आमतौर पर दो पहियों पर चलती है। रील में रियल यानी वास्तविकता अथवा कल्पना। दोनों ही तरह की फिल्में अपनी कथा, कथानक और अभिनय व निर्देशन के दम पर दर्शकों के दिल में जगह बनाती हैं। लेकिन इसके साथ ही समाज और जीवन की वास्तविक घटनाओं पर बनी कुछ फिल्में वास्तविक घटनाओं के अनसुलझे पहलुओं की तलाश करती हैं और हमारे समाज और व्यवस्था को आईना दिखाती हैं।

UT 69 सवाल छोड़ती है कि क्या मीडिया ने राज को गलत फंसाया था। Image : social media

परदे पर ऐसी कई फिल्में उतरी हैं जिन्होंने हमारी व्यवस्था और सामाजिक सोच को आईना दिखाया और साथ ही लोकतंत्र के सभी स्तंभों से उनकी भूमिका पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। भले ही इन फिल्मों का दर्शक वर्ग उतना बड़ा न हो लेकिन सामाजिक दृष्टि और अपने दायित्व के नजरिये से ये फिल्में खासी महत्वपूर्ण हैं। ऐसी भी कई फिल्में हैं जिन्होंने मीडिया को कठघरे में खड़ा किया है।

हमारी व्यवस्था की नाकामी की एक और कहानी है 'तलवार'। Image : social media

ऐसी ही एक फिल्म उद्योगपति और अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा ने बनाई जो उनपर लगे अश्लील फिल्में बनाने के आरोपों, वास्तविक अदालत के अलावा मीडिया ट्रायल और इस पूरे प्रकरण के दौरान उनके परिवार की पीड़ा को उजागर करती है। जाहिर तौर पर UT 69 (यानी अंडर ट्रायल 69) के केंद्र में राज कुंद्रा थे और उन्होंने खुद ही एक अंडर ट्रायल की भूमिका भी निभाई। अपने ऊपर लगे आरोपों और मीडिया ट्रायल का जवाब उन्होंने यह फिल्म बनाकर दिया। फिल्म यह सवाल छोड़ती है कि क्या मीडिया ने राज को गलत फंसाया था।

रानी मुखर्जी और विद्या बालन अभिनीत 'नो वन किल्ड जेसिका' एक अभूतपूर्व फिल्म है। मॉडल जेसिका लाल की हत्या और उसके आरोपी मनु शर्मा पर बनी यह फिल्म मीडिया सहित हमारी पूरी व्यवस्था के लिए एक कठोर और क्रूर सच्चाई से सामना करने जैसा है। फिल्म का शीर्षक अपने आप में सारी कहानी कह देता है। यानी हत्या तो सबके सामने हुई मगर हत्यारा कोई साबित नहीं हुआ। राजकुमार गुप्ता की बनाई यह फिल्म हमारे समाज के हर इनसान के लिए एक सवाल छोड़ती है और सबको बतलाती है कि आखिर हम एक किस तरह के समाज और व्यवस्था में रह रहे हैं। सबूतों के अभाव में आरोपी मनु शर्मा की रिहाई सवालों का समुद्र खड़ा करती है।

विशाल भारद्वाज और मेघना गुलजार ने आरुषि हत्याकांड पर फिल्म 'तलवार' बनाई। बेटी आरुषि की हत्या का आरोप तलवार दंपती पर लगा। फिल्म ऑनर किलिंग के बहाने सबसे बड़ा सवाल यही करती है कि क्या तलवार दंपती ने ही अपनी बेटी को अपने ही घर में क्रूरता के साथ मार डाला। सवाल इसलिए क्योंकि आरुषि की हत्या तो हुई पर आज तक यह पता नहीं चल पाया कि उसे मारा किसने। फिल्म उन माता-पिता की यंत्रणा को भी दर्शाती है जिनपर अपनी ही बेटी की हत्या का आरोप लगा है और वे समाज से तिरस्कृत हैं। हमारी व्यवस्था की नाकामी की एक और कहानी है 'तलवार' जो परदे पर उतरी।

संजय दत्त के जीवन के अतीत पर राजकुमार हिरानी ने संजू फिल्म बनाई। फिल्म इस मायने में कामयाब और सार्थक रही कि इसने दिग्गज अभिनेता सुनील दत्त और नरगिस के बेटे तथा बॉलीवुड के लाडले संजू बाबा को लेकर लोगों की सोच को बदल दिया। यह फिल्म की ताकत ही रही कि संजय दत्त एक बार फिर अपने पांव पर खड़े हो सके और दूसरी फिल्मी पारी शुरू कर सके।

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