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हेनरी अल्फ्रेड किसिंजर ...वह शख्स जिससे बहुत लोग नफरत करना पसंद करते हैं!

किसिंजर का हाल ही में 100 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हे अक्सर एक ही समय में अलग-अलग चीजों के लिए याद किया जाता है।

किसिंजर के आलोचक बहुत हैं... Image : social media

यह अच्छा तो नहीं लगता कि जो लोग इस दुनिया से कूच कर गये हैं उनके बारे में कोई बुरी बात कही जाए लेकिन एक शख्स जो इस सामाजिक व्यवहार पर खरा नहीं उतरेगा वह है हेंज अल्फ्रेड किसिंजर। उन्हे बाद में हेनरी किसिंजर के रूप में जाना जाने लगा। हेनरी यानी शक्तिशाली राजनयिक जिसने 1969 से 1977 के बीच अमेरिकी विदेश नीति पर एक तरह से 'राज' किया। उन्हें राज्य सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होने का दुर्लभ गौरव प्राप्त था। फोर्ड प्रशासन के दौरान उन्होंने एक ही समय में दोनों पदों पर कार्य किया।

किसिंजर का हाल ही में 100 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हे अक्सर एक ही समय में अलग-अलग चीजों के लिए याद किया जाता है। किसिंजर को संयुक्त राज्य अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच तनाव पैदा करने और इस प्रक्रिया में पहली सामरिक हथियार सीमा संधि (SALT) को संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। किसिंजर को अमेरिका और चीन को एक-दूसरे के लिए मुखर करने, मिस्र और इजराइल के बीच शांति की पहली आधारशिला रखने और शायद एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर देखा जाता है जिसने यह सुनिश्चित किया कि विदेश नीति में नैतिकता के विपरीत वास्तविक राजनीति के सिद्धांत प्रमुख थे।

किसिंजर के आलोचक बहुत हैं। कइयों को लगता है कि वह अमेरिकी विदेश नीति में विश्वासघात और दोहरेपन के कारण एशिया और लैटिन अमेरिका में हजारों लोगों की मौत के कारण हुए दुख के लिए नर्क का वास कर रहे हैं। मुख्य रूप से वियतनाम युद्ध और क्रूर तानाशाहों को समर्थन के दौरान निक्सन प्रशासन ने दक्षिणपंथी और वामपंथी शासन के बीच कोई अंतर नहीं किया।

कई लोगों के हिसाब से किसिंजर को हेग में कुख्यात सामूहिक हत्यारों और पोल पॉट तथा स्लोबोदान मिलोसेविक जैसे युद्ध अपराधियों के साथ रहना चाहिए था। इस गुस्से का अधिकांश हिस्सा दुश्मन की आपूर्ति लाइनों को बंद करने के बहाने कंबोडिया और लाओस को वियतनाम युद्ध में घसीटने के फैसले से उपजा है। कहा जाता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इंडोचीन राज्यों पर अधिक बम गिराए थे, जिनमें से कुछ गैर-विस्फोटित आयुध अभी भी उन असहाय देशों में निर्दोष लोगों की हत्या कर रहे हैं। चीन तक पहुंचने के नाम पर और अपने राजनयिक दौरों के लिए पाकिस्तान की मदद की जरूरत के नाम पर किसिंजर को 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हो रहे नरसंहार की अनदेखी करने से कोई परहेज नहीं था।

विद्वानों का मत है कि कंबोडिया में किसिंजर के गुप्त युद्ध ने नोम पेन्ह में पोल ​​पॉट-इएंग सैरी-ता मोक गुट के सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त किया जिसके परिणामस्वरूप लगभग 30 लाख लोग मारे गए और अंततः कंबोडिया पर वियतनामी आक्रमण का मार्ग प्रशस्त हुआ। फिर भी अंत तक न तो रिचर्ड निक्सन और न ही किसिंजर ने स्वीकार किया कि 'डोमिनोज थ्योरी' जिसपर वियतनाम युद्ध हुआ था वह वास्तव में कभी साकार नहीं हुई और 1975 में एक विद्वेषपूर्ण नाटक के बजाय 1969 में निक्सन युग की शुरुआत में युद्ध को समाप्त किया जा सकता था।

किसिंजर अपने आप में एक मशहूर हस्ती थे। उनके अंदर ऐसा अहंकार था जिसकी कोई सीमा न थी। उनका गुस्सा भी ऐसा था जो उनके बॉस की तरह केवल व्याकुलता जैसा लगता था। कार्यस्थल पर उनका मानक कथन स्पष्ट था कि- लीक बिल्कुल नहीं होनी चाहिए और यदि ऐसा कुछ होता है तो मुझे ही लीक करने वाला एकमात्र व्यक्ति होना चाहिए। शब्दों में शायद ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है। माना जाता है कि एक समय में उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा था कि निक्सन एक 'शराबी पागल' था। जिसका अर्थ था कि वह चीजों को एक साथ रखने वाला व्यक्ति था। कुछ लोगों का कहना है कि किसिंजर ने 1973 में योम किप्पुर युद्ध के समय मास्को से आने वाले शोर और संकेतों को गलत तरीके से पढ़कर और अमेरिकी रणनीतिक परमाणु कमान को हाई अलर्ट पर रखकर परमाणु हथियारबंद युद्ध लगभग करा ही दिया था।

किसिंजर के इस दुनिया से कूच कर जाने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में चिली के राजदूत ने ट्वीट किया- एक ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो गई है जिसकी ऐतिहासिक प्रतिभा कभी भी उसके गहरे नैतिक दुख को छुपाने में कामयाब नहीं हुई। इतिहासकार रॉबर्ट डैलेक ने एक बार कहा था कि किसिंजर की असफलताएं यह थीं कि वह 'बहुत अहंकारी था और अपनी प्रतिभा के प्रति बहुत आश्वस्त था।' लेकिन किसिंजर के लिए, जो सोचता था कि न तो बुद्धिमान और न ही मूर्ख उसे समझ पाए कि वह क्या कह रहा है, ये सब शायद ही कोई मायने रखेगा।

(लेखक वर्तमान में न्यू इंडिया अब्रॉड के प्रधान संपादक हैं और वाशिंगटन डीसी में उत्तरी अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र को कवर करने वाले द हिंदू के विशेष संवाददाता रहे हैं)

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