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जिंदादिली की मिसाल हैं अमेरिकी सेना के कर्नल कमल कलसी

अफगानिस्तान में तैनात रहकर अमेरिकी सेना में सेवाएं दे चुके डॉक्टर कमल कलसी ने तमाम सिखों को पगड़ी और दाढ़ी के साथ सेना में सेवा करने का अधिकार दिलाया है। तमाम मुद्दों पर न्यू इंडिया अब्रॉड ने उनसे विशेष बातचीत है।

कर्नल डॉ. कमल सिंह कलसी

अमेरिकी सेना के कर्नल डॉ. कमल सिंह कलसी पहले सिख अमेरिकी हैं, जिन्होंने अपनी पगड़ी और दाढ़ी को बनाए रखते हुए सेना में सेवा करने का अपना संवैधानिक अधिकार पाने के लिए न सिर्फ अमेरिकी सेना पर मुकदमा दायर किया बल्कि उसमें जीत भी हासिल की। अफगानिस्तान में तैनात रहे डॉक्टर कलसी ने अपने साथ ही अन्य सिख सैनिकों के लिए भी सेना में सेवा के दौरान अपने धार्मिक विश्वास के चिह्न धारण करने का अधिकार हासिल किया है।

कलसी फिलहाल एएपीआई मामलों पर राष्ट्रपति बाइडेन के सलाहकार आयोग के आयुक्त हैं।

डॉ. कलसी पर एक वृत्तचित्र भी बना है- कर्नल कलसी: बियॉन्ड द कॉल। करीब 40 मिनट की इस फिल्म को कई सम्मान मिल चुके हैं। इनमें शिकागो दक्षिण एशियाई फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र फिल्म और सिनसिनाटी के भारतीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र निर्देशक जैसे पुरस्कार शामिल हैं। इसे न्यूयॉर्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र के लिए भी नामांकित किया जा चुका है।

कलसी फिलहाल एशियाई अमेरिकियों, मूल हवाईवासियों और प्रशांत द्वीपवासियों (एएपीआई) पर राष्ट्रपति जो बाइडेन के सलाहकार आयोग में आयुक्त के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ साक्षात्कार में कलसी ने धार्मिक अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई, अफगानिस्तान में सर्विस करने और ड्यूटी के दौरे से लौटने के बाद व्यक्तिगत संघर्षों की कहानी साझा की। पेश है बातचीत के कुछ अंश-

वर्ष 2009 में, जब आपने धार्मिक अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई शुरू की थी, तब आप पहले से ही पगड़ी और दाढ़ी के साथ सेना में सेवाएं दे रहे थे, क्या ये सही है?

डॉ. कलसीः जी हां। साल 2001 में जब मैं मेडिकल स्कूल के पहले वर्ष में था, तब मैंने सेना जॉइन की था। जब तक मैं मेडिकल स्कूल में था, तब तक कोई समस्या नहीं आई थी। लेकिन उसके बाद दिक्कत खड़ी हो गई। एक्टिव ड्यूटी शुरू करने के साथ ही मैं लोगों की नजरों में आ गया। तब मुझे अपने धार्मिक चिह्नों को लेकर अधिकारियों से इजाजत लेने के लिए जाना पड़ा। 2009 में अमेरिकी सेना में पगड़ी, दाढ़ी, हिजाब और अन्य धार्मिक वस्तुओं को धारण करने की अनुमति नहीं थी।

आपको बताया गया था कि आपकी पगड़ी और दाढ़ी सेना में इस्तेमाल होने वाले गैस हेलमेट के नीचे फिट नहीं होगी, क्या यह सही है?

डॉ. कलसीः इस तरह के दावे किए गए थे इसीलिए हमने दिखाया कि हम पगड़ी और दाढ़ी के साथ आसानी से हेलमेट पहन सकते हैं, आसानी से गैस मास्क पहन सकते हैं। इनकी वजह से काम करने में कोई समस्या नहीं आती थी। मेरे लिए सेना में सेवाएं देना बहुत मायने रखता था। मेरा परिवार चार पीढ़ियों से सेवाएं दे रहा था और मैं उस परंपरा को जारी रखना चाहता था। सेना में सेवा करने में सक्षम होना सिखों के रूप में हमारी पहचान का हिस्सा है। मैं उस परंपरा को तोड़ना नहीं चाहता था।

आपने हेलमंद प्रांत में सेवा की, जो अफगानिस्तान के सबसे खतरनाक क्षेत्रों में से एक है। क्या आप वहां अपने काम के बारे में बता सकते हैं?

डॉ. कलसीः हम वहां रेगिस्तान के बीच में रहते थे। हम सैकड़ों-हजारों लड़ाकू जवानों की देखभाल करते थे। कभी कभी तो बहुत बुरी स्थिति में बंदूक की गोलियों के घाव, विस्फोट की चोटें, जलन के मरीज इलाज के लिए आते थे। कुछ चोटें विनाशकारी होती थीं। लेकिन मुझे लगता है कि हमने वहां बहुत अच्छा काम किया। बहुत से लोगों की जान बचाई। सैनिकों की मदद की।

वृत्तचित्र के आखिर में आप अपने बारे में कई व्यक्तिगत बाते बताते हैं, इस बारे में कुछ बताइए।

डॉ. कलसीः मुझे लगभग दो साल पहले मेटास्टैटिक कैंसर का पता चला था। इसके लिए मैंने आक्रामक कीमोथेरेपी शुरू की। यह एक तरह की दिनचर्या बन गई थी। अब मैं हर हफ्ते अपनी कीमो के लिए जाता हूं। यह सच है कि पिछले कुछ वर्ष बेहद कठिन रहे हैं।

क्या यह आपके अफगानिस्तान में सेवाएं देने की वजह से था?

डॉ. कलसीः शायद हां। क्योंकि जब मैं वहां पर तैनात था तो हमारे सामने रेडिएशन का काफी जोखिम था। कई और तरह के भी जोखिम थे। मुझे विशेष प्रकार का कैंसर है। आमतौर पर युवा लोगों में इसे नहीं देखा जाता है। मैं ठीक हो जाऊंगा, बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा।

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