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पुस्तक : देशभक्ति और सामाजिकता का गतिशील दस्तावेज 'सर्विस बिफोर सेल्फ'

अपने प्रभावशाली संस्मरण 'सर्विस बिफोर सेल्फ' में प्रकाश ने प्राचीन भारत और अपने मूल स्थान की ऐसी जीवंत यादें साझा की हैं जिनकी आज की पीढ़ी केवल कल्पना ही कर सकती है।

संस्मरणात्मक पुस्तक का कवर। Image : NIA

मानवी पंत

डॉ. विनोद प्रकाश के लिए उनके जीवन का अधिकांश महत्वपूर्ण पाठ मेरठ में उनके 'देहाती' घर में ही हासिल हुआ। अपने प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने जिन संघर्षों का अनुभव किया उसी ने उनके चरित्र और आदर्शों को आकार दिया। नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे के रूप में जन्मे और व्यवसाय में लगे पारंपरिक निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार में पले-बढ़े प्रकाश के पास देशभक्ति, सशक्तिकरण, लचीलापन, तपस्या और अनुशासन का एक समृद्ध व्यक्तिगत इतिहास है।

अपने जीवन के उत्तरकाल में डॉ. विनोद प्रकाश। Image : NIA

अपने प्रभावशाली संस्मरण 'सर्विस बिफोर सेल्फ' में प्रकाश ने प्राचीन भारत और अपने मूल स्थान की ऐसी जीवंत यादें साझा की हैं जिनकी आज की पीढ़ी केवल कल्पना ही कर सकती है। चाहे वह याद सर्वव्यापी खुली नालियों से ढकी अपने पड़ोस की तंग गलियों में 'गुल्ली-डंडा' खेलने की ही क्यों न हो। या फिर घोड़ागाड़ी से लंबी यात्रा करना क्योंकि उस वक्त परिवहन का यांत्रिक साधन तो सहज उपलब्ध था ही नहीं। या घर के बरामदे के पत्थर के फर्श पर चॉक से गणित की समस्याओं को लिखकर हल करना।

थोड़े उपदेशात्मक तरीके से लिखा गया यह संस्मरण प्रकाश के पिता के शिक्षा और नैतिक मूल्यों पर असाधारण जोर को उजागर करता है। उस समय जब एक महिला की भूमिका रसोई की चारदीवारी तक ही सीमित थी उनके घर में न केवल पुरुष बल्कि परिवार की महिलाएं भी अच्छी तरह से शिक्षित थीं। यह एक दुर्लभ दृश्य था। प्रकाश अपने संस्मरण में लिखते हैं -शिक्षा के प्रति उनके गहरे रुझान के कारण ही 1934 में प्रकाश एजुकेशनल स्टोर की स्थापना हुई। किताबों की दुकान परिवार के लिए पहला व्यावसायिक उद्यम था।

पुस्तक का एक अविश्वसनीय रूप से आकर्षक पहलू वह गहन अंतरंगता है जिसके साथ प्रकाश ने अपने शुरुआती मूल्यों और नींव का वर्णन किया है। उदाहरण के लिए परिवार दृढ़ता से हिंदू सुधारवादी आंदोलन, आर्य समाज के सिद्धांतों का पालन करता था और इससे जुड़ी सभी प्रथाओं का धार्मिक रूप से पालन किया करता था। अपनी संस्कृति के प्रति झुकाव ने उन पर काफी प्रभाव डाला।

छोटी उम्र से ही प्रकाश और उनके सभी भाई-बहनों में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। प्रकाश के जन्म से पहले ही उनके भाई महेश और सत्या ने ब्रिटिश राज के खिलाफ 1930 के नमक मार्च के दौरान सत्याग्रह में भाग लिया था और उन्हें जेल में डाल दिया गया था। स्वयं प्रकाश ने भी बिना दोबारा सोचे सत्याग्रह में शामिल होकर अपना भविष्य खतरे में डाल दिया और 16 वर्ष की अल्पायु में गिरफ्तार हो गये।

वह लिखते हैं- मुझे उन पुरुषों के समूह याद हैं जो घटनाओं और रणनीति पर चर्चा करने के लिए हमारे घर आते थे। सभी सफेद खादी के कपड़े पहनते थे। स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्रयासों के लिए हमारे परिवार का बहुत सम्मान किया गया था। यह संपूर्ण कथा दूसरों की सेवा के प्रति अटूट ईमानदारी और समर्पण को गहराई से दर्शाती है जो प्रकाश के जीवन की विशेषता है। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में शामिल होने वाले परिवार के पहले व्यक्ति थे। शिविर में रहते हुए उन्होंने देखा कि भारत (ब्रिटिश राज के तहत) सबसे अंधकारमय समय से गुजर रहा है- बढ़ते राष्ट्रवाद, सीमाओं पर बाड़बंदी, जबरन धर्मांतरण, बड़े पैमाने पर रक्तपात और समुदायों का विस्थापन के रूप में।

यह संस्मरण प्रकाश की शैक्षणिक यात्रा और करियर आकांक्षाओं का एक विवरण भी प्रस्तुत करता है। गणित के प्रति उनका प्रेम स्पष्ट झलकता है और इस दूरदर्शिता से समृद्ध है कि यह उन्हें उनकी महत्वाकांक्षाओं में कहां तक ले जाएगा। वह लिखते हैं- मैं जानता था कि शुद्ध गणित से अध्यापन के अलावा कोई और करियर बनने की संभावना नहीं है लेकिन मेरी आकांक्षाएं अध्यापन से कहीं अधिक थीं। और फिर जब एक दोस्त ने प्रतिष्ठित भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) का उल्लेख किया तो आवेदन के बाद चयन हो गया। अकादमिक रूप से मेधावी प्रकाश के लिए यह उस चीज की शुरुआत थी जिसे कोई 'आशाजनक भविष्य' कह सकता है। जिस तरह एक अवसर दूसरे अवसर की ओर ले जाता है कुछ ही समय में प्रकाश ISI की एक विशेष इकाई पर्सपेक्टिव प्लानिंग डिवीजन (PPD) में शामिल हो जाते हैं और लगातार मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में फेलोशिप स्वीकार करते हैं।

प्रकाश की किस्सागोई की खूबी यह है कि वह मर्मस्पर्शी और चिंतन से भरपूर है। विशेष रूप से स्पष्टवादिता। खासकर जब वह सरला (अपनी पत्नी) के पति होने पर गर्व व्यक्त करते हैं। पत्नी की सराहना करते समय वह अपने शब्दों में कोई कमी नहीं रखते। परिवार के बारे में भी साफ बताते हैं। उदाहरण के लिए भारत लौटने के बाद प्रकाश ने अमेरिका में कठिन प्रारंभिक वर्षों के बारे में बताया और बताया कि कैसे उन्होंने अपने पहले बच्चे में सेरेब्रल पाल्सी का इलाज कराया। वह उन बाधाओं को याद करते हैं जिनका उन्होंने तब सामना किया था और सरला की स्थायी ऊर्जा और दृढ़ता को श्रेय देते हैं जिसने उन्हें अमेरिका में इन कठिन प्रारंभिक वर्षों में पांव जमाने में मदद की।

पत्नी सरला के साथ डॉ. विनोद प्रकाश। Image : NIA

प्रकाश और सरला ने कई साल अमेरिका में बिताए मगर भारत और भारतीय पहचान से अपना संबंध बनाए रखना उनकी प्राथमिकता बनी रही। वे सभी त्योहार उत्साहपूर्वक मनाते थे। यह सुनिश्चित करते हुए कि उनके हिंदू पालन-पोषण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से कोई समझौता न हो।

संस्मरण में प्रकाश ने इस बात पर जोर दिया है कि भारत की तद्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने से उन पर काफी प्रभाव पड़ा और स्वीकार किया कि राजनीतिक अशांति ने उनके जैसे कई अप्रवासियों को उनकी मातृभूमि के करीब ला दिया।

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