दिवंगत नर्तक चित्रेश दास को अमेरिका में कथक का जनक माना जाता है। प्रशंसित कलाकार ने 2015 में अपनी अप्रत्याशित मृत्यु तक मंच पर प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने कई शिष्यों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली सिखाने के लिए उत्तरी कैलिफोर्निया में छंदम स्कूल ऑफ कथक और चित्रेश दास डांस कंपनी की स्थापना की।
दास के निधन के बाद चार्लोट मोरागा ने 20 से अधिक वर्षों तक कंपनी के साथ काम किया। मोरागा ने प्रसिद्ध नर्तक की विरासत को जीवित रखने के लिए उनकी पत्नी सेलीन शीन दास के साथ मिलकर चित्रेश दास संस्थान की स्थापना की।
मोरागा अब संस्थान की कलात्मक निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। उनके नवीनतम कार्य, 'इनवोकिंग द रिवर' का प्रीमियर सितंबर के अंत में सैन फ्रांसिस्को खाड़ी क्षेत्र में हुआ था। संस्थान अगले साल फरवरी में भारत के चार शहरों में इसका प्रदर्शन करेगा। न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ एक इंटरव्यू में मोरागा ने इस नृत्य नाटिका से जुड़ी अपनी दृष्टि साझा की।
इनवोकिंग द रिवर के पीछे किसकी प्रेरणा है इस सवाल पर मोरागा कहती हैं कि भारत की नदियां हमेशा से ही मेरे दिमाग, शरीर और कल्पनाओं में एक प्रमुख स्थान रखती हैं। नदियों का खयाल आते ही हमारे जेहन में खिलते हुए कमल, तितलियों, पक्षियों और पानी की कलकल कौंधने लगती है मगर असल में नदियों का क्या हाल हो गया है हम वह नहीं देखते।
भारत की एक प्रमुख नदी यमुना कई जगहों पर सूख चुकी है। यह दुनिया की एक बड़ी प्रदूषित नदी है। भारत में नदियों को मां और देवी का दर्जा दिया गया है। मगर यमुना को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम अपनी देवियों का क्या खयाल रखते हैं। हम नदियों से अपने लिए सब कुछ मांगते हैं। जीवन को चलाने के लिए पीने के पानी से लेकर अपने अपराधों को धोने की कामना भी नदियों से करते हैं लेकिन हम उनके लिए क्या करते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि नदी किसी देवी से कम नहीं है। उसमें जिंदगी देने की शक्ति है और कुपित होने पर नष्ट करने का साहस भी। हम पूरी तरह से नदियों पर ही निर्भर हैं।
पियानिस्ट उत्सव लाल ने इनवोकिंग द रिवर के लिए मनोरंजक और गीतात्मक संगीत तैयार किया है। मोरागा बताती हैं कि मैं उत्सव से 2019 में मिली थी। केवल 10 मिनट की बात के बाद ही मुझे लगा कि मैं उनके साथ काम करना चाहती हूं क्योंकि उनके पास एक दृष्टि है और साथ ही अनुभव का खजाना भी। वह पियानो वैसे ही बजाते हैं जैसे राग बजाये जाते हैं और वह उसे पियानो से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं।
मोरागा का कहना है कि इस धरती पर हम बहुत सी चीजों को हल्के में लेते हैं। बहुत कुछ अपने हिसाब से मानकर चलते हैं। हम सिर्फ लेने के बार में सोचते हैं, देने के बारे में नहीं। हम यह नहीं सोचते कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियो के लिए क्या देकर जाएंगे या इस धरती का भविष्य क्या होगा। धरती से सब कुछ लेने वालों को यह सोचना होगा कि हम उसे वापस कैसे दे सकते हैं।