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क्या आपका मन आसक्ति से भरा हुआ है? ऐसे पा सकते हैं भावनात्मक संतुलन

जीवन का उद्देश्य चेतना का विकास है और अगर आपका मन आसक्ति (अटैचमेंट) से भरा है, तो शांति और आनंद को हासिल नहीं कर सकते हैं। इसलिए यह जानना जरूरी है कि आपके जीवन का मकसद क्या है? आप किस तरह का जीवन जी रहे हैं?

Photo by Kenny Eliason / Unsplash

क्या आप भावनात्मक रूप से अच्छा महसूस करते हैं? लेकिन ऐसे कई लोग हैं जो ऐसा महसूस नहीं करते हैं। वे उदास, चिंतित, भयभीत, तनावग्रस्त हैं। जिस तरह से आप इस समय महसूस कर रहे हैं और जिस तरह से वे महसूस करते हैं, उसके बीच क्या अंतर है? अंतर यह हो सकता है कि आप योग साधना कर रहे होंगे, जिसका अर्थ है कि आप आध्यात्मिक पथ का अनुसरण कर रहे हैं।

जीवन का उद्देश्य चेतना का विकास है और अगर आपका मन आसक्ति (अटैचमेंट) से भरा है, तो शांति और आनंद को हासिल नहीं कर सकते हैं। इसलिए यह जानना जरूरी है कि आपके जीवन का मकसद क्या है? आप किस तरह का जीवन जी रहे हैं?

क्योंकि जीवन का उद्देश्य महज बहुत सारी संपत्ति जमा करना नहीं है। हालांकि यदि आप इसे आवश्यकता के अनुसार सही तरीके से कर सकते हैं, तो यह ठीक है। जीवन का उद्देश्य महज एक पत्नी या पति को ढूंढना नहीं है, और उसका मालिक होना नहीं है। लेकिन किसी के साथ एक प्रेमपूर्ण संबंध और साथ आध्यात्मिक मार्ग पर सहायक हो सकती है। जीवन में उद्देश्य अधिकतम धन, शक्ति या आत्मसम्मान हासिल करना नहीं है।

woman performing yoga
योग साधना में अनासक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है। Photo by Dane Wetton / Unsplash

इसलिए योग साधना में अनासक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है। योग में तकनीकों का एक पूर्ण भंडार होता है। कोई भी जो खुद को चिंता, अवसाद, तनाव, क्रोध की प्रतिकूल स्थिति में पाता है, वह योग के अभ्यास से इसे जल्द ही बंद कर सकता है और खुद को संतुलन में वापस ला सकता है। लेकिन हमें इन तकनीकों के साथ-साथ जिस पर काम करने की आवश्यकता है, वह इस भावनात्मक संतुलन को बनाए रखना।

जब हम अनासक्ति का जीवन जीना शुरू करते हैं, तो हम ऑटोमैटिक तरीके से अपनी चेतना को विकसित करना शुरू कर देते हैं। अनासक्ति का मार्ग हमें कर्म करने से नहीं रोकता है, परिवार से दूर नहीं करता है। यह मानसिक संतुलन को बनाए रखने की बात करता है। जिसे गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने समत्व यानी समता कहा है। क्योंकि आसक्ति से भरा मन प्रतिकूल भावनाएं और प्रतिकूल मन की अवस्था को भीतर जन्म देता है। और यह अवस्था हमें अपनी चेतना विकसित करने से रोकती हैं। आसक्ति या लगाव भावनात्मक असंतुलन पैदा करने वाला मुख्य तत्व है।

योग के अभ्यास आप इस स्थिति को दूर कर सकते हैं और भावनात्मक संतुलन प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप गुस्से में हैं, तो आप शांत हो सकते हैं। यदि आप तनाव में हैं, तो आप शांत हो सकते हैं। इसका फायदा यह है कि जब आप भावनात्मक संतुलन की स्थिति में रहते हैं, अनासक्त रहते हैं, तो जीवन को सही नजरिये के साथ जी सकते हैं। अपने कर्मों को भी सही तरीके से कर सकते हैं।

यहां गौर करने वाली बात है कि अनासक्त होने का मतलब चीजों से दूरी नहीं है। परिवार, बीवी-बच्चों से दूरी नहीं है। असल में यह एक मानसिक और भावनात्मक स्थिति है। आज की दुनिया में हमें कार, बाइक जैसे वाहन की आवश्यकता है, क्योंकि ये हमारे जीवन को असाना बनाती हैं। हमें घरों की जरूरत है क्योंकि हमें परिवार के साथ जीना है। हमें इन सभी भौतिक वस्तुओं की जरूरत है, लेकिन हमें इनके प्रति आसक्त नहीं होना है।

संबंधों में आसक्ति की अवस्था तब होती है जब रिश्तों में भरोसा नहीं होता है। आसक्ति अक्सर भौतिक अर्थों में अलगाव की ओर जाता है। अनासक्ति में इसका बिल्कुल विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस स्थिति में आप अपनी पत्नी या पति को स्वतंत्रता और लचीलेपन की अनुमति दे सकते हैं, यह जानते हुए कि दोनों के बीच गहरा प्यार बना हुआ है।

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