चीनी कंपनियों को देश में व्यापार करने के लिए भारतीय कानूनों को दरकिनार करने से रोकने के लिए भारत सरकार एक अधिसूचना लेकर आ रही है। इससे भूमि सीमा साझा करने वाले देशों के नागरिकों को सुरक्षा मंजूरी लेने की आवश्यकता होगी जिन्हें कंपनियों के बोर्ड में निदेशक के रूप में नियुक्त किया जाता है।
गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना के अनुसार यदि भूमि सीमा साझा करने वाले देशों का कोई व्यक्ति किसी भारतीय कंपनी में नियुक्ति की मांग कर रहा है तो उसे गृह मंत्रालय से आवश्यक सुरक्षा मंजूरी करने के साथ सहमति प्रपत्र की भी आवश्यकता होगी। गृह मंत्रालय इस अधिसूचना से कंपनियों के (अपॉइंटमेंट एंड क्वालिफिकेशन ऑफ डायरेक्टर्स) नियम, 2014 में संशोधन करना चाहती है।
मोदी सरकार के इस ताजा फैसले का असर उन चीनी कंपनियों पर पड़ेगा जो भारत में अपनी सहायक कंपनियों के जरिए काम करती हैं। दरअसल भारत सरकार को यह जानकारी मिली थी कि चीनी और हांगकांग के निवेशक प्रतिबंध को दरकिनार करने में सक्षम थे। अप्रैल 2020 के दिशा-निर्देशों में देश के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों से आने वाले विदेशी निवेश के लिए अनिवार्य सरकारी मंजूरी की आवश्यकता थी। हालांकि पहले केवल पाकिस्तान और बांग्लादेश के निवेश को इस तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता था। उस समय इस उपाय को महामारी के कारण चीनी कंपनियों को भारतीय कंपनियों का अधिग्रहण करने से रोकने के रूप में देखा गया था।
भारत सरकार ने उस वक्त नए नियम के अनुपालन में ऐसे निवेशों से जुड़े प्रत्येक मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया था, जिसमें यह पाया गया था कि चीनी कंपनियां बिना किसी प्रतिबंध के भारत में निवेश करने में कामयाब रहीं क्योंकि वे अपने देश के बाहर एक इकाई बनाकर नियम को दरकिनार करने में सक्षम थीं। निवेश के बाद इन कंपनियों ने बाद में कंपनियों के संचालन के लिए चीनी नागरिकों को वरिष्ठ अधिकारियों के रूप में नियुक्त करना शुरू कर दिया था।
बता दें कि कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के फरवरी के आंकड़ों के अनुसार देश में 490 विदेशी नागरिक हैं, जो विभिन्न कंपनियों में निदेशक के रूप में पंजीकृत हैं। ऐसा माना जाता है कि उनमें से लगभग 30 फीसदी चीनी या हांगकांग के नागरिक हैं। गृह मंत्रालय की नवीनतम अधिसूचना का उद्देश्य ऐसी चीनी कंपनियों या निवेशकों के भारत में पिछले दरवाजे से प्रवेश को प्रतिबंधित करना है।