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विशेष लेख: G-20 नेताओं के सामने चुनौतियां

भारत ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में हमेशा एक सार्थक और नपी-तुली भूमिका निभाने का प्रयास किया है। इस समय मानवता के सामने जो चुनौतियां हैं उन्हे लेकर भी भारत यही रुख अख्तियार करेगा ऐसी उम्मीद है। सम्मेलन के दौरान मंच पर होने वाली चर्चाओं के अलावाइसके समानांतर भी अनेक अहम मसलों पर संवाद होगा।

इस समय दुनियाभर की निगाहें भारत पर हैं। Image : social media 

भारत की राजधानी दिल्ली में कुछ ही दिनों बाद एक बड़ा सम्मेलन होने जा रहा है। भारत इस प्रमुख राजनयिक कार्यक्रम की मेजबानी कर रहा है। G-20 शिखर सम्मेलन पर दुनिया की निगाहें हैं। दुनिया और मानवता जिन चुनौतियों का आज सामना कर रही है उन पर चर्चा करने के लिए 50 देशों के नेता और विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष जैसे प्रमुख संगठनों के नुमाइंदे इस सम्मेलन में शिरकत करेंगे। कूटनीतिक दृष्टि से भारत के हाथों में वास्तव में यह एक बड़ा काम है। सभी की निगाहें इस बात पर होंगी कि भारत इस सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले उन राष्ट्रों को जो न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि वैचारिक रूप से भी विभाजित हैं, विवादास्पद मुद्दों पर किस चतुराई से संवाद के लिए राजी करता है ताकि समस्याओं का निदान संभव हो।

अमेरिका के राष्ट्रपति शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली में होंगे। पहले चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के भी दिल्ली पहुंचने की खबर थी मगर उनके जाने पर संदेह है। अलबत्ता रूस के राष्ट्रपति पुतिन इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए ऐलानिया तौर पर दिल्ली नहीं जा रहे। उनकी ना-मौजूदगी का अहसास होता रहेगा। लेकिन सम्मेलन में रूस-यूक्रेन युद्ध पर अपरिहार्य रूप से चर्चा होगी। अब देखना यह होगा कि इस मसले पर चर्चा में शामिल मुल्क किसी औचित्यपूर्ण सहमति तक पहुंचते हैं या नहीं। इस संदर्भ में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो पहले ही अपना रुख यह कहकर साफ कर चुके हैं कि यह युद्ध का समय नहीं है, टकरावों के बिंदुओं को शांतिपूर्ण तरीके से संवाद के माध्यम से खत्म किया जाना चाहिए।

सम्मेलन के दौरान मंच पर होने वाली चर्चाओं को तो दुनिया देखेगी मगर इसके समानांतर भी अनेक अहम मसलों पर संवाद होगा। पारिस्थितिकी, पर्यावरण, स्वास्थ्य, वृद्धि और विकास की विशाल असमानताओं से मानव जाति को मिलने वाली चुनौतियों पर किस हद तक सार्थक संवाद हो पाएगा यह भी देखने वाली बात होगी। बेशक चुनौतियां बहुत हैं लेकिन यूक्रेन में युद्ध के परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक बार फिर अनाज आंदोलन पर नाकाबंदी का सामना करना पड़ रहा है। यह उन सभी गरीब देशों के लिए एक दंडात्मक झटका है जो पहले से ही सभ्य जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शिखर सम्मेलन के बहाने दिल्ली में जुटने वाले विश्व नेता केवल चुनौतियों पर चर्चा के लिए भारत में जमा नहीं हो रहे। इसके पीछे एक उद्देश्य अपनी मौजूदगी से अवसर का लाभ लेना भी है।

बेशक, दुनिया चाहती है कि यूक्रेन संकट का समाधान जल्द से जल्द हो लेकिन इसे लेकर सबका ध्यान रूस पर ही है। यूक्रेन के साथ ही पश्चिमी देशों की नजर इस बात पर है कि संकट के समाधान के लिए ठोक कदम क्या उठाये जाते हैं। भारत ने अंतरराष्ट्रीयय व्यवस्था में हमेशा एक सार्थक और नपी-तुली भूमिका निभाने का प्रयास किया है। इस समय मानवता के सामने जो चुनौतियां हैं उन्हे लेकर भी भारत यही रुख अख्तियार करेगा ऐसी उम्मीद है। लेकिन किसी भी मसले के किसी भी तार्किक समाधान के लिए संवाद में शामिल हरेक देश को पाने के साथ ही खोने की व्यावहारिकता भी समझनी होगी। एकालाप के दिन अब अतीत में समा चुके हैं।

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