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विशेष लेख: जुबानी खर्च और घड़ियाली आंसुओं से आगे...

7 अक्टूबर की घटना के बाद इजराइल को सद्भावनाएं तो हासिल हुई हैं लेकिन साथ ही प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार को एक चेतावनी भी मिली है कि बदला लेने के नाम पर वह अति न करे और इस प्रक्रिया में रणनीतिक समीकरण भी ध्यान रखे।

demo Photo by Ehimetalor Akhere Unuabona / Unsplash

आतंकवादी संगठन हमास द्वारा इजराइल पर भयानक हमला किए हुए पूरे दो सप्ताह बीत चुके हैं। इसके बाद उसे गाजा पट्टी पर प्रत्याशित क्रूर प्रतिशोध का सामना करना पड़ा। नतीजा यह हुआ कि बड़े पैमाने पर मानवीय तबाही हुई है और अब भी इसके थमने के कोई संकेत नहीं दिख रहे। चूंकि यह क्षेत्र और पूरी दुनिया यहूदी राज्य के अगले कदमों की प्रतीक्षा में है इसलिए एक धुंधली सी आशा भी है कि भूमि के उस छोटे से टुकड़े पर बड़े पैमाने पर आक्रमण नहीं होगा क्योंकि सभी पक्षों को इसके परिणामों का अहसास है।

इजराइल के प्रतिशोध का रोष कुछ ऐसा है जो कई वर्षों में नहीं देखा गया और उकसावे की प्रकृति भी कुछ ऐसी ही थी कि मानसिक रूप से बीमार आतंकवादियों ने बिना सोचे-समझे छोटे बच्चों सहित निर्दोष लोगों की हत्या कर दी और लगभग 200 लोगों को बंधक बना लिया। इनमें से कई विदेशी थे। हालांकि अभी दो बंधकों को रिहा किया गया है मगर यह आगे की लंबी और यातनापूर्ण राह का संकेत है। इजरायल के साथ भी प्रतिशोध कम क्रूर नहीं रहा। उसे 'खत्म' करने की कसम के बीच गाजा पर हमला जारी है और लगभग 23 लाख की आबादी वाले शहर में भोजन, ईंधन और बिजली की भारी किल्लत है। यह तब है जब वह क्षेत्र पहले से ही बुनियादी जरूरतों की कमी से जूझ रहा है। 7 अक्टूबर की घटना के बाद इजराइल को सद्भावनाएं तो हासिल हुई हैं लेकिन साथ ही प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार को एक चेतावनी भी मिली है कि बदला लेने के नाम पर वह अति न करे और इस प्रक्रिया में रणनीतिक समीकरण भी ध्यान रखे।

ऐसा प्रतीत होता है कि इजराइल जाने की योजना बना चुके अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने नेतन्याहू से कहा है कि वह उस गलती को न दोहराएं जो 11 सितंबर 2001 के आतंकवादी हमलों के बाद वाशिंगटन ने की थी। उस आतंकी हमले को 9/11 के रूप में भी जाना जाता है। जाहिर तौर पर बाइडन आतंकवाद के नाम पर अफगानिस्तान और इराक में घुसपैठ का जिक्र कर रहे थे जिसकी कीमत अमेरिका लगभग दो दशक बाद भी चुका रहा है। यह वास्तव में एक दुखद स्थिति है कि हमास, हिज़्बुल्लाह और मध्य पूर्व या उससे आगे उनके समर्थकों के बारे में शोर के बीच शांति और सभ्य आजीविका के लिए तरस रहे आम फिलिस्तीनियों की दुर्दशा को भुला दिया गया है। और यहां प्रलोभन हमेशा यहूदी राज्य और उसके पश्चिमी समर्थकों पर दोष मढ़ने का रहा है। कहा जा रहा है कि फिलिस्तीनियों के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाये जा रहे हैं।

बहरहाल, अभी तो ध्यान भविष्य के रक्तपात और एक बड़ी मानवीय आपदा से बचने के तौर-तरीकों पर होना चाहिए। यह समय अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून और मानवता के खिलाफ अपराधों के बारे में बात करने का नहीं है। इन्हे लेकर अपनाये जाने वाले दोहरे मानकों से दुनिया भली-भांति परिचित है। यहां इजराइल रुक सकता है और सोच सकता है कि गाजा को तबाह करने से हमास का हर आतंकी खत्म नहीं हो जाएगा। बल्कि अगर उसका प्रतिशोध जारी रहा तो उन हजारों बच्चों में नफरत की आग भड़कने का खतरा है जो तारों की आस में नहीं बल्कि मिसाइलों की तलाश में आसमान की ओर देख रहे हैं। और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए यह समय ज्ञान की खोखली बातों को छोड़कर वास्तविकता में झांकने का है।

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