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स्वप्न और दुस्वप्न के बीच त्रासदी से मुक्ति की कामना

लग रहा था कि खौफ की लहरों को आतंक के तूफान में बदलने के लिए यह काफी नहीं था। मीडिया पर पुरानी घटनाओं को याद दिलाने का आक्रामक सिलसिला चल पड़ा। बताया जाने लगा कि आग उगलने वाले हथियार ही बच्चों की जान के सबसे बड़े दुश्मन हैं।

नैशविले जैसे हत्याकांडों से भयाक्रांत है अमेरिका समाज। (फाइल फोटो)

बच्चा स्कूल जाए और सुरक्षित घर लौट आए...अमेरिका में माता-पिता के लिए अब यह किसी दुस्वप्न से कम नहीं रह गया है। दुर्भाग्य से उस दिन नैशविले, टेनेसी में सिर्फ यही नहीं हुआ। एक सिरफिरे ने तीन स्कूली बच्चों और इतने ही अन्य लोगों को गोलियों की बौछार कर मौत की नींद सुला दिया। लग रहा था कि खौफ की लहरों को आतंक के तूफान में बदलने के लिए यह काफी नहीं था। मीडिया पर पुरानी घटनाओं को याद दिलाने का आक्रामक सिलसिला चल पड़ा। बताया जाने लगा कि आग उगलने वाले हथियार ही बच्चों की जान के सबसे बड़े दुश्मन हैं।

इस त्रासदी की खबर से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ही असहज और आक्रांत नहीं थे, दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला और कानून का पालन करने वाला हर नागरिक स्तब्ध था। सबके जेहन में बस एक ही सवाल था कि आखिर यह हो क्या रहा है और कब तक? लेकिन जो चीज पूरे वातावरण को और भी घृणित और जहरीला बना देती है, वह इस तरह के पागलपन के बाद उठे तर्कों और एक उस अजीब सी सोच में निहित है कि इस सबके लिए लोग ही दोषी हैं, हथियार नहीं। एक ऐसे देश में जहां अनुमानित 400 मिलियन (400 करोड़) बंदूकें हैं, किसी भी तरह एक धारणा बनाने की कोशिश की जाती है कि यह सब इस कारण हो रहा है कि एक व्यक्ति के हाथ में गन है या इसके लिए केवल और केवल हाई पावर राइफल ही जिम्मेदार है। मगर दोषारोपण का खेल शूटर के साथ खत्म नहीं होता।

एक ऐसे देश में जहां फोबिया (भय) सर्वत्र व्याप्त है नैशविले हत्याकांड में एक नया मोड़ आता है कि शायद यह सब इसलिए हुआ क्योंकि अपराधी के रूप में पहचानी गई 28 वर्षीय ऑड्रे हेल एक ट्रांसजेंडर थी और ट्रांसजेंडर कथित तौर पर हिंसक वृत्ति के होते हैं। फिर इस मामले में पुलिस ने घालमेल करते हुए पहले हेल को एक महिला बताया, फिर कहा कि वह ट्रांस है और अब सब अनिश्चित है। पर सामान्य ज्ञान से पता चलता है कि वस्तुतः स्कूलों और अन्य जगहों पर सभी गोलीबारी पुरुषों की करतूत रही है मगर ट्रांसजेंडर आमतौर पर हिंसक अपराधों में निशाने पर आ जाते हैं। अमेरिका ही नहीं, हर जगह। लेकिन धुर दक्षिणपंथियों द्वारा बंदूकों के अलावा अन्य बहाने तलाशने का प्रयास हताशा के एक तत्व को उजागर करता है। वह तत्व है ट्रांस लोगों के खिलाफ कानून को और कड़ा करने की बहस को एक अवसर में बदलने का प्रयास। विशेष रूप से रूढ़िवादी राज्यों में।

राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति बाइडेन और डेमोक्रेट्स बंदूकों पर प्रतिबंधों को कड़ा करने के तमाम प्रयास कर सकते हैं। विशेष रूप से हमला करने वाले हथियारों पर। लेकिन वे इस बात से भी बखूबी वाकिफ हैं कि दूसरे पक्ष को भी किसी सार्थक समाधान का हिस्सा बनने की जरूरत है, पर दुखद यह है कि राजनीतिक कारणों के चलते वह जल्द होने वाला नहीं है। ऐसे में यह दुखद है कि बंदूक लॉबी त्रासदी के खतरनाक परिणामों से सहजता के साथ किनारा करते हुए नैशविले जैसी घटनाओं से शायद कुछ और हासिल करने की उम्मीद कर रही है। उदार-रूढ़िवादी विभाजन के नाम पर बच्चों की आंखें खोलने के लिए शिक्षकों को दोष देने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। चारों तरफ बंदूकधारी पहरेदार तैनात कर देना, शिक्षण संस्थानों को छावनी में तब्दील कर देना अथवा एयरपोर्ट जैसा मेटल-डिटेक्टर वाला सुरक्षा कवच अख्तियार करने से तालीम और शिक्षा-प्रक्रिया को आगे बढ़ाना असंभव है। ध्रुवीकृत राजनीतिक माहौल में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स को अमेरिका की भावी पीढ़ियों के लिए एक साथ आने की जरूरत है या फिर वे चुपचाप इस तरह की त्रासदियों को होने देने की अनुमति देंगे?

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