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विशेष लेख: जस्टिन ट्रूडो पहले कुछ सवालों के जवाब तो दें...

अमेरिका के लिहाज से यह कितनी अजीब और बुरी बात है कि वह हजारों मील दूर जाकर आतंकियों को ठिकाने लगा रहा है और बगल में उसका मित्र देश चरमपंथियों की पनागगाह बना हुआ है। अब इस बात का खुलासा भी जरूरी हो गया है कि आखिरकार निज्जर को कनाडा की नागरिकता कैसे दी गई।

अब खुद सवालों के घेरे में हैं कनाडा के प्रधानमंत्री। Image : twitter@Justin Trudeau

अमेरिकी सत्ता से बस एक चीज नहीं हो पाती और वह यह कि मामला कहीं का भी और किसी का भी हो वह उसमें लिप्त हुए बगैर नहीं रह पाता। भले ही उससे उसका कोई लेना-देना न हो। इसी फितरत का शानदार उदाहरण है भारत-कनाडा विवाद। यह अलग बात है कि भारतीय अधिकारियों की शिकायत का रोना लेकर ट्रूडो ही बाइडेन के कंधे तक पहुंचे थे। मगर वह रोना या कहें कि आरोप अब तक तो निराधार ही पड़े हैं। दूसरी ओर बाइडेन ने वही किया जिसकी उम्मीद थी। वह खुद तो खामोश रहे मगर सुरक्षा और न्याय विभाग के अधिकारियों के कान में कुछ फूंक दिया। जो कुछ कान में कहा गया उसे सुनते ही अधिकारी जांच में सहयोग करने और अंतरराज्यीय संबंधों में अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अहमियत का पाठ पढ़ाने लगे।

मगर इन सभी व्याख्यानों के बीच यह जानकारी आती है कि ओटावा का शुरुआती गुस्सा अमेरिकी खुफिया एजेंसियों द्वारा स्वतंत्र रूप से या फाइव आईज़ इंटेलिजेंस एलायंस के माध्यम से साझा की गई सूचनाओं पर आधारित था। तथ्य यह है कि फाइव आईज़ में ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे अन्य गठबंधन सदस्यों ने बहुत कम या कुछ भी नहीं कहा। यह बात भू-राजनीति की वास्तविकताओं के बारे में बहुत कुछ खोलकर रख देती है। अगर राष्ट्रपति बाइडेन वास्तव में भारत के सच्चे मित्र हैं तो उन्होंने प्रधानमंत्री ट्रूडो को दंगा अधिनियम पढ़ाया होता कि पिछले 40 वर्षों से भारत चुप है। उसने  खालिस्तानियों को कनाडा में अनियंत्रित रूप से चलने पर कुछ नहीं किया। हाल के महीनों में भारत की संपत्ति और उस देश में तैनात भारतीय राजनयिकों की जान को खतरा बने खालिस्तानियों पर कार्रवाई के नाम पर लंबे समय से तो भारत मौन ही रहा है।

वास्तव में राष्ट्रपति बाइडेन को ट्रूडो को घेरना चाहिए था कि एक नामित आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर के प्रत्यर्पण के बार-बार प्रयासों पर ओटावा क्यों कुंडली मारकर बैठा रहा। जब निज्जर की सच्चाई सबके सामने थी तो आखिर किस आधार पर उसे कनाडा की नागरिकता दी गई। निज्जर की 'कनाडाई' नागरिकता अब खुद ही सवालों के घेरे में है और पूछा जा रहा है कि आखिर कैसे रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) या सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) नई दिल्ली की ओर से इस मामले में दी गई चेतावनियों के बाद भी चूक गई। खासकर 9/11 के बाद तो ओसामा बिन लादेन जैसों को पश्चिमी खुफिया विभाग बड़े उत्साह से खोज रहा था। इसकी गंभीरता से जांच करने की जरूरत है। अब भारत की इस बात में सच्चाई दिखने लगी है कि निज्जर को कनाडा की नागरिकता तमाम फर्जी आधारों पर दी गई। खालिस्तान टाइगर फोर्स को भारत ने आतंकी गिरोह घोषित किया है। ऐसे में निज्जर को कनाडा की नागरिकता देने के लिए 'शरण' और 'शादी' जैसे झूठे आधार बनाए गए।

अब इस बात का खुलासा भी जरूरी हो गया है कि आखिरकार निज्जर को कनाडा की नागरिकता कैसे दी गई। जस्टिन ट्रूडो इस मामले में किस्मत वाले हैं कि इस समय ओवल कार्यालय में जॉर्ज बुश या बराक ओबामा नहीं हैं। अगर उनमें से कोई होता ऐसे शख्स का फोन ही नहीं उठाता और न ही उस तिरस्कृत व्यक्ति को किसी तरह का दिलासा देता। अच्छा तो यही है कि भारत को लेक्चर देने से पहले जस्टिन ट्रूडो उनको लेकर उठे तमाम सवालों के जवाब दें। यह बात बाइडेन और उनके अधिकारियों की फौज को ट्रूडो को समझानी चाहिए। अमेरिका के लिहाज से यह कितनी अजीब और बुरी बात है कि वह हजारों मील दूर जाकर आतंकियों को ठिकाने लगा रहा है और बगल में उसका मित्र देश चरमपंथियों की पनागगाह बना हुआ है।

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