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क्या भौतिकवाद और आध्यात्मिकता की राहें जुदा हैं, क्या कहता है भारतीय दर्शन

भारत की सनातन परंपराओं में भौतिकवाद और आध्यात्मिकता अलग-अलग नहीं हैं। ये साथ-साथ ही चलते हैं। योग जीवन के एक चरण से दूसरे चरण में सहज, सामंजस्यपूर्ण तरीके से प्रगति करने का एक साधन है।

Photo by Marvin Meyer / Unsplash

इस भौतिकवादी युग में जहां लोग अपनी महत्वाकांक्षाओं के साथ बस भागे जा रहे हैं। धन और सेक्स ही जीवन का लक्ष्य बनकर रह गया है। इसलिए मनुष्य का मन स्थिर नहीं है। वैभव के सिंहासन पर वह जरूर बैठा है, लेकिन उसके पास दो पल के लिए शांति नहीं है। सुख तो उसने हासिल कर लिया है, लेकिन भीतरी आनंद नहीं है। ऐसे में मनुष्य के पास रास्ता क्या है? क्या भारतीय दर्शन के पास इसका समाधान है?

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योग लौकिक और आध्यात्मिक जगत के बीच सेतु का काम करता है। Photo by Patrick Malleret / Unsplash

इस प्रश्न पर विचार करने के लिए हमें सबसे पहले खुद को जानना और समझना होगा। भगवान ने हमें दुनिया के साथ व्यवहार करने के लिए अपनी क्षमताओं के साथ एक शरीर और मन दिया है। परमेश्वर ने हमें जीवन के बारे में, ब्रह्मांड के साथ इसके संबंध के बारे में और हमारी प्रकृति के बारे में कुछ बुनियादी अवधारणाएं भी दी हैं।

योग वह प्रणाली है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन में सद्भाव और शांति और आनंद बनाए रखने के साथ ही इसके स्रोत की खोज कर सकते हैं। यह वह जागरूकता है जो मानव विकास के साथ भौतिकवाद में व्यक्तिगत भागीदारी से विचलित नहीं होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि योग का रास्ता हमें अति से बचाने का रास्ता है। संतुलन का रास्ता है।

भारत की सनातन परंपराओं में भौतिकवाद और आध्यात्मिकता अलग-अलग नहीं हैं। ये साथ-साथ ही चलते हैं। भारतीय परंपराओं में चार पुरुषार्थों को परिभाषित किया गया है। ये हैं अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष। जीवन के चार अलग-अलग चरणों को भी परिभाषित किया गया है, जिसमें ब्रह्मचर्य आश्रम में अनुभव और ज्ञान प्राप्त करना। गृहस्थ आश्रम अनुभव से मिले ज्ञान को समाज में लागू करना। वानप्रस्थ आश्रम में धीरे-धीरे इंद्रियों के आकर्षण से खुद को अलग करना। और संन्यास आश्रम में स्वयं के साथ एकाकार हो जाना शामिल है।

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योग समाधान की तरफ ले जाता है। Photo by Fares Nimri / Unsplash

इसलिए, भारतीय परंपराओं के अनुसार, भौतिकवाद और आध्यात्मिकता साथ-साथ चलते हैं। योग जीवन के एक चरण से दूसरे चरण में सहज, सामंजस्यपूर्ण तरीके से प्रगति करने का एक साधन है।
आज भले ही आश्रम की वह व्यवस्था समाज जीवन से खत्म हो गई है। लेकिन व्यक्तिगत और समाज जीवन को मजबूत करने वाला योग आज भी कायम है।

कई लोग सोचते हैं कि मेरी उम्र अधिक हो गई है। पूरा जीवन धन कमाने और कामसुख की दौड़ में ही बीता है। ऐसे में मैं कैसे योग और आध्यात्मिक जीवन का अभ्यास कर सकता हूं। तो क्या योगाभ्यास के लिए उम्र बाधक है? बिल्कुल नहीं, आप किसी भी उम्र में योग का अभ्यास कर सकते हैं। क्योंकि अभ्यास धीरे-धीरे शुरू होते हैं और पूरे शरीर के विभिन्न हिस्सों का व्यायाम करने के लिए काफी सरल होते हैं।

योग आसन एक ऐसा अभ्यास है जिसके माध्यम से आप शरीर के प्रति जागरूकता प्राप्त करते हैं, विभिन्न जोड़ों और मांसपेशियों से तनाव को मुक्त करते हैं और विश्राम की स्थिति में आते हैं, जिसमें आप जो भी करते हैं उसमें शारीरिक रूप से सहज होते हैं। और विश्राम की यह अवस्था आपको ध्यान की तरफ ले जाती है। जीवन के तमाम प्रश्नों के समाधान की तरफ ले जाती है। योग लौकिक और आध्यात्मिक जगत के बीच सेतु का काम करता है। हम बस इतना कर सकते हैं कि इस सेतु पर चलना शुरू कर दें। फिर मंजिल मिलना तय है।

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