ऋचाएँ अखिल ब्रह्मांड में व्याप्त हैं
अमेरिकी यात्रा की तैयारी - 2
विश्व की पहली पुस्तक, ब्रह्माण्डीय ध्वनि-ध्वज, सौरमंडल-संतुलन विधि, प्राकृतिक परिधान, दिव्यभूमि के रज कण तथा प्रथम पीढ़ी के पावन चिह्न शिखा-सूत्र की प्राकृत छवि को अपनाते हुए मैं देशाटन की तैयारी कर रहा था। तब इन सात चिह्नों एवं पदार्थों को साथ रखा। मैं इन्हें भारतीय परम्परा के सात रत्न मानता हूँ ।
पहला रत्न - विश्व की पहली पुस्तक
संपूर्ण विश्व के मानवों को उनकी प्रथम पीढ़ी के पूर्वजों के ग्रंथ से परिचित कराने हेतु ऋग्वेद व यजुर्वेदादि चारों वेदों को रख लिया था ।
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥
यह वेद-शब्दराशि मनुष्य की सापेक्षता से 019608 53222 वर्ष पूर्व प्रकट हुई थी। यह वो ज्ञाननिधि है जो सदैव अखिल ब्रह्माण्ड में व्याप्त रहती है ।
ऋचो अक्षरे परमे व्योमन् - ऋग्वेद 1.164.39
इन वेदों का अध्ययन कर हम लोक-परलोक से संबंधित सभी रहस्यों को समझ सकते हैं। वेद के अनुसार ब्रह्माण्ड में अनेक पृथ्वियाँ हैं, उन सभी पर सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाली मानव पीढ़ी को वेद का ज्ञान ईश्वर से ही मिलता है।
प्राचीनकाल में इन वैदिक ग्रंथों की शिक्षा लेने के लिए विश्व के कोने-कोने से हज़ारों लोग भारत आते थे। एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः । स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः । इसलिए महर्षि मनु के इस गौरवमयी प्राचीन उद्घोष को साकार रूप देने के लिए भी मैंने पहली पीढ़ी के ग्रंथ अर्थात् वेद की पुस्तकें रखीं।