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विशेष लेख: एक ऐतिहासिक यात्रा जिसे हमेशा याद रखा जाएगा

करीब 70 प्रतिनिधि यह चाहते थे कि इस यात्रा के दौरान बाइडेन प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष भारत में मानवाधाविकार जैसे कुछ मुद्दों को उठाएं लेकिन व्हाइट हाउस ने पहले ही यह साफ कर दिया था कि बाइडेन इस समय मेहमान को किसी तरह का 'प्रवचन' देने के मूड में नहीं हैं।

प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बाइडेन। Image @twitter@Narendra Modi

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा इतिहास में द्विपक्षीय संबंधों में एक मील के पत्थर के रूप में दर्ज की जाएगी, जो दोनों देशों के लोगों के लिए लाभ से भरी है। वर्षों तक यह परिभाषित करने की कोशिश करने के बाद कि वास्तव में वह क्या था जो दोनों देशों को एक साथ लाया, नेतृत्व काफी हद तक इस तथ्य से राहत महसूस कर सकता है कि आखिरकार शायद नई दिल्ली और वाशिंगटन घिसे-पिटे चरित्र-चित्रण से हटकर एक दायरे में ठोस और वास्तविक सहयोग की ओर बढ़ सकते हैं। रणनीतिक से लेकर लोगों और संस्कृतियों तक के मामले में। ठोस निष्कर्षों को रक्षा-प्रौद्योगिकी, उच्च तकनीक के क्षेत्र में निवेश, चंद्रमा, मंगल और उससे आगे देखने के माध्यम से अंतरिक्ष अन्वेषण, H1B वीजा पर लचीले रुख, सैन्य क्षेत्र में खरीद तथा दोनों देशों में और अधिक वाणिज्य दूतावास खोलने के रूप में रेखांकित किया जा सकता है।

है तो और भी बहुत कुछ पर ये कुछ अहम उदाहरण हैं। इन क्षेत्रों में बनी सहमति पर किसे कितना-क्य मिला यह बाद की बात है। अंततः भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और उत्पादन केंद्रों पर एक आम सहमति पर पहुंचे हैं। जेट इंजन का मामला कुछ ऐसा ही है जिसे कुछ साल पहले एक काल्पनिक विचार के रूप में देखा गया था। अमेरिका जैसे देश के लिए यह सब आसान नहीं था क्योंकि यह न केवल अपने पास मौजूद चीजों को साझा करने में अनिच्छुक रहता है बल्कि मुख्यतः सुरक्षा कारणों से आम तौर पर विदेशी उत्पादन सुविधाओं को लेकर भी मुखर नहीं होता। जब से प्रधानमंत्री मोदी न्यूयॉर्क पहुंचे, बाद में वाशिंगटन डीसी और फिर पास के वर्जीनिया के दौरे पर गए भारतीय नेता का भारतीय-अमेरिकी समुदाय द्वारा भव्य और गर्मजोशी से स्वागत किया गया। योग दिवस समारोह को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज कराने से लेकर राजकीय रात्रिभोज के साथ निजी रात्रिभोज, कांग्रेस में उनका संबोधन, व्हाइट हाउस में राजकीय स्वागत, साउथ लॉन में भोज और चलते-चलते रीगन सेंटर में डायस्पोरा से मुलाकात तक अमेरिका में मोदी और भारत की गूंज रही।

न्यूयॉर्क और अन्य जगहों पर विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिष्ठित हस्तियों के साथ प्रधानमंत्री की बैठक ने दर्शाया कि वह विभिन्न दृष्टिकोणों को सुनने की इच्छा रखते हैं। हालांकि करीब 70 प्रतिनिधि यह चाहते थे कि इस यात्रा के दौरान बाइडेन प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष भारत में मानवाधाविकार जैसे कुछ मुद्दों को उठाएं लेकिन व्हाइट हाउस ने पहले  ही यह साफ कर दिया था कि बाइडेन इस समय मेहमान को किसी तरह का 'प्रवचन' देने के मूड में नहीं हैं। परस्पर रिश्तों के लिए यह एक अच्छा संकेत था। लोकतंत्र और विशेषकर जीवंत मीडिया वाले समाजों में उन मुद्दों पर बात करना आम बात है जो दूसरे को परेशान करते हैं। लेकिन बातचीत का मतलब ही यही है कि एक-दूसरे से बात हो और अनर्गल प्रलाप से बचा जाए। इसलिए कि हंगामे से कुछ हासिल नहीं होता। अभी लंबे समय तक राजनीतिक पंडित इस यात्रा का आकलन करेंगे। कई चीजें बाद में खुलेंगी या समझ आएंगी और निजी संवाद तो शायद ही कब और कैसे सामने आए। लेकिन अगर प्रधानमंत्री की यात्रा ने दोनों देशों के लिए अपने पिछले संदेह और आशंकाओं को दूर करने का मार्ग प्रशस्त किया है तो यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए सही कदम होगा। जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा भी कि जब भारत-अमेरिका संबंधों की बात आती है तो आकाश भी सीमा नहीं है।

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