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बुजुर्गों का बचपन लौट आता है यात्रा से, मौज-मस्ती ही नहीं यह एक थेरेपी भी

जीवन में व्यस्त रहने का सबसे शानदार तरीका है यात्रा। चाहे सप्ताहंत की एक-दो दिनों की यात्रा हो या विदेश की लंबी यात्रा, जीवन में गतिशीलता जरूरी लाती है। सुबह बिस्तर छोड़ने से रात की नींद लेने तक जड़ता वाले जीवन की उबन को दूर करने के लिए यात्रा बहुत मायने रखती है।

जिंदगी हंसने-गाने के लिए है पल दो पल (सांकेतिक तस्वीर साभार सोशल मीडिया)

जीवन में व्यस्त रहने का सबसे शानदार तरीका है यात्रा। चाहे सप्ताहांत की एक-दो दिनों की यात्रा हो या विदेश की लंबी यात्रा, जीवन में गतिशीलता जरूरी लाती है। सुबह बिस्तर छोड़ने से रात की नींद लेने तक जड़ता वाले जीवन की उबन को दूर करने के लिए यात्रा बहुत मायने रखती है। विदेश या किसी लंबी यात्रा पर जाना हो, तो कई बार कुछ लोग इसे रिटायरमेंट पर भी टाल देते हैं। आज हम बता रहे हैं बुजुर्गों की यात्रा के मायने, महत्व और जरूरत के बारे में।

सीनियर सिटीजन के एक समूह की खुशियां भरी यात्रा (सांकेतिक तस्वीर साभार सोशल मीडिया)

वास्तव में बुजुर्गों के लिए यात्रा करना कई मायनों में अच्छा है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार से लेकर सामाजिक समरसता स्थापित करने का यह बेहतर विकल्प है यात्रा। यात्रा का मतलब दूर-दराज निकलना ही नहीं होता है। रिश्तेदोरों से मिलना, मंदिर या तीर्थ स्थलों का भ्रमण करना भी बुजुर्गों के लिए हितकर होता है।

अकेलेपन के कारण तनाव में आना 60 साल की उम्र के बाद आम बात हो जाती है। बुजुर्गों को इसका सबसे ज्यादा सामना करना पड़ता है, जब उनका चलना-फिरना सीमित हो जाता है। शायद इसीलिए भारत में बुजुर्गों को तीर्थयात्रा कराना जरूरी बताया गया है। तनाव दूर करने और जीवन के प्रति अपने सामान्य दृष्टिकोण को बनाए रख सकें, इसलिए बुजुर्गों को यात्रा कराने के लिए कहा गया है।

हंटर-जोन्स पी और ब्लैकबर्न ए ने सुझाव दिया है कि बुजुर्गों में विश्राम, शारीरिक और मानसिक हित के लिए जरूरी है। लेकिन ऐसे में बैठे-बैठे अस्थमा, गठिया जैसी कई बीमारियां घेरने लगती हैं। पता ही नहीं चल पाता है कि कब हाथ-पैरों ने काम करना बंद कर दिया। लिहाजा यात्रा करने या बाहर घूमना फिरना बुजुर्गों के लिए जरूरी हो जाता है।

घूमना-फिरना एक ऐसी चीज है तो आपको तरोताजा बनाए रखती है। जब आप बाहर के लिए निकलते हैं तो कितनी तैयारी करते हैं। कई दिनों से उसकी तैयारी शुरू हो जाती है। बच्चों और बुजुर्गों में भी इस बात का उमंग होता है कि कहीं जाना है। जब किसी जाने-पहचाने ठिकाने पर पहुंचते हैं तो लगता है कि बचपन लौट आया है।

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