भारत में अधिकांश जगहों पर 8 मार्च को रंगों का त्योहार होली धूमधाम से मनाया गया, वहीं उत्तराखंड राज्य में पिथौरागढ़ जिले के धारचूला और मुनस्यारी के कई गांवों के लिए यह आम दिनों जैसा ही रहा। दरअसल इन गांवों में होली के दिन रंगों से उत्सव नहीं मनाया जाता। स्थानीय निवासियों के बीच इसके पीछे की चर्चित वजह भी बड़ी दिलचस्प है।
यह क्षेत्र लोकप्रिय तीर्थयात्रा चिपला केदार यात्रा और ट्रेक के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों का मानना है कि होली के रंग उनकी पवित्र भूमि पर दाग लगाने का काम करेंगे। वह मानते हैं कि होली के रंगों से स्थानीय देवता चिपला केदार नाराज हो जाएंगे और वह ऐसा नहीं करना चाहते। गांवों के निवासियों का मानना है कि होली मनाने से कुछ दुखद घटनाएं उनके साथ घट सकती हैं।
हालांकि ये लोग एकदूसरे को होली की शुभकामनाएं देते हैं लेकिन पारंपरिक और लोकप्रिय तरीके यानी रंगों के साथ होली मनाने से बचते हैं। वे बैठकी होली नाम से उत्सव मनाते हैं। इसमें बिना किसी रंग के होली मनाते हैं। बैठकी होली में पारंपरिक भोजन, लोक गीतों और नृत्यों के साथ जश्न होता है।
कुछ इतिहासकारों का भी मानना है कि होली पहाड़ी जनजातियों का त्योहार नहीं है। पहाड़ी समुदाय अपनी अनूठी मान्यताओं, संस्कृति और परंपराओं का पालन करते हैं। खैर, वास्तव में यही विविधता पूरे भारत में यात्रा के अनुभवों को इतना दिलचस्प बनाती है।
बता दें कि उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र छह जिलों से मिलकर बना है। ये जिले हैं अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, नैनीताल, पिथौरागढ़ और उधम सिंह नगर। इस क्षेत्र में कुछ सबसे आकर्षक ट्रेकिंग रूट और मंदिर हैं। जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क कुमाऊं क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक है।