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धार्मिक आयोजनों से जगमगा रहा है भारत देश और राजधानी दिल्ली

धार्मिक व ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि दिल्ली में महाभारत काल से ही रामलीलाओं का मंचन होता आ रहा है। कुछ वर्ष पहले तक ये रामलीलाएं पूरे धार्मिक मनोयोग से मनाई जाती थी और लोग दर्शकों के बजाय श्रद्धालु बनकर इन लीलाओं को देखने जाते थे।

फोटो साभार: लवकुश रामलीला कमेटी

भारत में चौमासा (बारिश के चार माह) खत्म हो चुके हैं और अब धार्मिक व सामाजिक पर्व व उत्सव शुरू हो चुके हैं। पूरे देश में नवरात्र के व्रत चल रहे हैं, रामलीलाएं आयाजित की जा रही हैं तो दुर्गापूजा के भी आयोजन हो रहे हैं। और तो और अब पूरे देश में विवाह आयोजन भी शुरू होने जा रहे हैं। अब इस वर्ष के अंत तक पूरा देश ‘व्यस्त’ रहेगा, क्योंकि क्योंकि कहीं न कहीं कोई आयोजन हो रहे होंगे। इसी कड़ी में आज हम आपको देश की राजधानी दिल्ली में होने वाली रामलीलाओं के मंचन की जानकारी देने जा रहे हैं, जिनमें दिल्ली के लोगों की जर्बदस्त भागीदारी हो रही है।

धार्मिक व ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि दिल्ली में महाभारत काल से ही रामलीलाओं का मंचन होता आ रहा है। कुछ वर्ष पहले तक ये रामलीलाएं पूरे धार्मिक मनोयोग से मनाई जाती थी और लोग दर्शकों के बजाय श्रद्धालु बनकर इन लीलाओं को देखने जाते थे। अब इन लीलाओं में धर्म व तड़क-भड़क भी शामिल हो चुकी हैं, लेकिन देखने वालों का तांता आज भी लगा रहता है। कुछ लीलाओं का तो इतना अधिक आकर्षक है कि आज भी दिल्ली देहात और एनसीआर से भी लोग इनका मंचन देखने के लिए आते हैं। आजकल पूरी दिल्ली में सैकड़ों लीलाओं का आयोजन हो रहा है, वरना कुछ साल पहले तक पूरी दिल्ली में दो-तीन लीलाएं ही होती थी और उनमें हजारों लोग जुटते थे।

मंचन में भगवान राम के प्रति श्रद्धा दिखाते हुए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह।

अगर हम कुछ वर्ष पहले की बात करें तो नवरात्र के दौरान दिल्ली में भक्तिभाव से जुड़े लोगों की दिनचर्या ही बदल जाती थी। उस वक्त लोग सुबह के वक्त यमुना नदी के घाट पर पहुंच जाते थे। वहां स्वच्छ यमुना में स्नान-आचमन के बाद वे रास्ते भर के मंदिरों में माथा टेकते हुए आते। घरों में पूजा-पाठ पर खूब ध्यान दिया जाता। घर के मंदिर में 24 घंटे दीया जलाने का रिवाज हो जाता था। घर में जिसकी श्रद्धा होती, वह पूजा-अर्चना करने लगता। उस वक्त व्रत रखने का रिवाज भी बहुत सख्त हुआ करता। व्रतधारी पूरे दिन कुछ खाते-पीते नहीं थे। शाम होने पर ही व्रत खत्म किया जाता था। ज्यादातर लोग फलाहार और दूध पर ही सारे व्रत निकाल देते थे। लोगों में रामलीलाओं को लेकर अलग भी अलग तरह का भक्तिभाव और जोश दिखाई देता। असल में दोपहर होते ही वहां लीला का रंग देखने लायक होता। कारण यह था कि दोपहर को चांदनी चौक से सवारी लीला शुरू होती। ये लीला पुरानी दिल्ली के अधिकतर बड़े इलाकों को कवर करते हुए रामलीला मैदान पहुंच जाती। इस लीला के देखने के लिए हजारों लोग जुटते। परिवार समेत लोग इस सवारी लीला को देखने जाते थे। लीला के डोलों में बैठे हुए ‘भगवान के चरित्रों’ का जगह जगह पूजन होता था और लोग जगह-जगह उनका स्वागत करते।

इस सवारी लीला के रामलीला मैदान पहुंचते ही दोनों बड़ी रामलीलाओं के मंचन की तैयारी शुरू हो जाती। दिन ढलते ही इन दोनों लीलाओं में श्रद्धालु पहुंचना शुरू हो जाते। मेले के आसपास जबर्दस्त रौनक हुआ करती। पुरानी दिल्ली के लोग साज-श्रृंगार कर इन लीलाओं में पहुंचते। कुछ बुजुर्ग औरतें तो साथ में पूजादानी भी ले जाती थीं और वहां भगवान श्रीराम की पूजा करने लग जाती। दिल्ली देहात के लोग रामलीला मैदान की लीला देखने के लिए बैलगाड़ी से आते थे। कई गांव वाले तो दिन में ही परिवार के साथ आ जाते। दिनभर दिल्ली में खरीदारी करते और रात को लीला देखकर गांवों की ओर रवाना हो जाते। रात को जब ये दोनों लीलाएं समाप्त हो जाती तो रामलीला मैदान से दोबारा सवारी लीला चलती थी। पेट्रोमैक्स लैंप से सजी पूरी सवारी लीला अलग ही समां बनाती थी।

इसी तरह दिल्ली में नवदुर्गा पर्व भी बेहद श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। दिल्ली में बंगाली बहुल इलाकों में तो अलग ही रौनक दिखाई देती है। इसके अलावा दिल्ली के विभिन्न इलाकों में विशेष पंडाल भी लगाए जाते हैं, जहां रोज सुबह से लेकर रात तक पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। ऐसा लगता है कि बंगाल का कल्चर इन पंडालों में उतर आया हो। नवरात्र के आखिरी दिन तो पूरी दिल्ली में जाम जैसी स्थिति हो जाती है। एक तरफ रामलीला मंचन का आखिरी दौर चल रहा होता तो दूसरी ओर दुर्गा पूजा भी अपने पीक पर होती थी। इन पर्व के खत्म होते ही पूरे देश में विवाह उत्सव शुरू हो जाते हैं। उसके बाद दीपावली, भैया दूज के अलावा क्रिसमस पर्व की भी तैयारी शुरू हो जाती। सीधी सी बात यह है कि इस वर्ष के अंत तक भारत जगमगाता रहेगा।

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