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अमेरिका में ज्योतिर्लिंग! कहां बना है महाकालेश्वर मंदिर का यह पहला धाम

भगवान महाकालेश्वर का मुख्य मंदिर उज्जैन में है जो मध्य प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर है। यहां भारत में मौजूद 12 ज्योतिर्लिगों में से एक का घर है। भगवान शिव के अन्य मंदिरों के विपरीत श्री महाकालेश्वर भारत और अमेरिका दोनों जगह दक्षिण दिशा की ओर हैं।

समय, प्रकृति, मानवता, दिव्यता और आध्यात्मिकता इस संसार के सर्वव्यापी बल हैं। ये पांचों शाश्वत शक्तियां हैं और इन पर न तो किसी बाधा का असर होता है और न ही मन की सीमाओं का। असल में ये भौगोलिक क्षेत्रों को एकजुट करते हैं और ब्रह्मांडीय दूरियां तक करते हैं। इन अविनाशी शक्तियों में से एक मंदिर हैं। श्री महाकालेश्वर मंदिर के बारे में यह सच है जिसने सैंटा क्लारा को भारतीयों के लिए कैलिफोर्निया में घर से दूर एक घर बना दिया है।

सैंटा क्लारा में स्थित श्री महाकालेश्वर मंदिर अमेरिका में पहला ज्योतिर्लिंग शिव मंदिर है। 

सैंटा क्लारा में स्थित श्री महाकालेश्वर मंदिर अमेरिका में पहला ज्योतिर्लिंग शिव मंदिर है। भगवान शिव के रुद्र अवतार को समर्पित यह मंदिर कैलिफोर्निया में यात्रा करते समय जाने वाली सबसे शानदार जगहों में से एक है। मंदिर स्थापित शिवलिंग दो टन ठोस ग्रेनाइट से बना हुआ है जिसकी पूजा पीठासीन देवता के रूप में की जाती है।

मंदिर के पीठासीन देवता की पूजा दो टन ठोस ग्रेनाइट से बने शिवलिंग के रूप में की जाती है। 1008 छोटे शिवलिंगों के बीच स्थित बने बड़े शिवलिंग को सहस्त्रलिंगम कहा जाता है। कहा जाता है कि यह भगवान की शक्ति को 1000 गुना बढ़ा देता है। इस मंदिर का भारत के साथ न केवल धार्मिक नजरिए से बल्कि निर्माण के नजरिए से भी गहरा संबंध है।

बता दें कि भगवान महाकालेश्वर का मुख्य मंदिर उज्जैन में है जो मध्य प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर है। यहां भारत में मौजूद 12 ज्योतिर्लिगों में से एक का घर है। भगवान शिव के अन्य मंदिरों के विपरीत श्री महाकालेश्वर भारत और अमेरिका दोनों जगह दक्षिण दिशा की ओर हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार दक्षिण को मृत्यु और विनाश की दिशा माना जाता है।

सैंटा क्लारा में श्री महाकालेश्वर मंदिर की स्थापना स्वामी सथाशिवम ने इसी शाश्वत विश्वास के आधार पर की थी। मंदिर का औपचारिक उद्घाटन साल 2010 में हुआ था। स्वामी सथाशिवम चेन्नई के प्रख्यात उपदेशक और पुजारी सांबामूर्ति शिवचारी के बड़े बेटे हैं जो कलिकंबल मंदिर के मुख्य पुजारी थे। स्वामी सथाशिवम की आध्यात्मिक यात्रा महज नौ साल की आयु में शुरू हो गई थी। 12 साल की आयु में वह अकेले ही भारत के तीर्थों की यात्रा पर निकल पड़े थे।

1008 छोटे शिवलिंगों के बीच स्थित बने बड़े शिवलिंग को सहस्त्रलिंगम कहा जाता है। 

इस दौरान वह कई साधु-संतों के संपर्क में आए और इससे आध्यात्मिकता से उनका जुड़ाव और मजबूत हुआ। उन्होंने अपना आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य अनुभव उन सब लोगों के साथ साझा किया जो उनके संपर्क में आए। इसके साथ ही वह हर तरह के भौतिकवाद और बंधनों से आजाद रहे।

साल 1989 में उन्हें 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों को अमेरिका लाने की और भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लिए भगवान शिव के सम्मान में मंदिरों का निर्माण करने की आवश्यकता महसूस हुई। साल 2010 में उन्होंने इस अभियान की सफलता की कामना के साथ 1008 चंडी यज्ञ किए थे। इसके परिणामस्वरूप सैंटा क्लैरा वैली और कैलिफोर्निया के पैसिफिक तट के बीच सैंटा क्रूज पर्वतों में ला होंडा पर श्री महाकालेश्वर का आगमन हुआ।

उल्लेखनीय है कि यह मंदिर दक्षिण दिशा की ओर है जो मृत्यु और विनाश का प्रतीक है। इसलिए इसे शिव के रुद्र रूप का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना इस बात को ध्यान में रख कर की गई है कि शिव के तांडव से सभी जीवों को बचाने के लिए दक्षिण में भी उनके रुद्र रूप की आराधना का केंद्र होना आवश्यक है। इसके अलावा बचे हुए 11 ज्योतिर्लिंगों में से दो को टेक्सास और बॉस्टन लाने की योजना है। बॉस्टन में भगवान शिव के जिस मंदिर का निर्माण होना है वह श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को समर्पित होगा।

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