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पढ़िए भारत के कर्नाटक में उस तैरते हुए चर्च की कहानी जिसमें कोई घंटी नहीं बजती

इसका निर्माण एक फ्रांसीसी मिशनरी अब्बे जे ए डुबोइस ने 1860 में करवाया था। चर्च के निर्माण में साधारण ईंटों और मोर्टार के साथ बेल्जियम के कांच, मिस्र के जिप्सम, गुड़ और अंडे के छिलकों का इस्तेमाल किया गया था। यह चर्च गांव के अतीत का गवाह और गॉथिक आर्किटेक्चर का शानदार उदाहरण है।

पुराने आर्किटेक्चर और खंडहर अपने निर्माण में बेहद पुरानी और रोचक कहानियां समेटे होते हैं। इसीलिए इन्हें खासा रोचक भी माना जाता है। इनकी हर ईंट में एक कहानी होती है। निर्जन कस्बे हों या भुला दी गई इमारतें, इन्हें अतीत की यादें माना जाता है। ऐसा ही छिपा हुआ स्थान भारत के कर्नाटक राज्य में है। इसे तैरता हुआ चर्च भी कहा जाता है। किसी जमाने में ये आबाद था लेकिन अब वीरान हो चुका है लेकिन अब भी उत्सुकता का केंद्र है।

कर्नाटक के शेत्तिहल्ली में स्थित इस चर्च को जलमग्न चर्च के नाम से भी जाना जाता है।

इसका नाम रोजरी चर्च है। यह कर्नाटक के शेत्तिहल्ली में स्थित है। इसे जलमग्न चर्च भी कहा जाता है। इस चर्च को बाकियों से अलग बनाने वाली बात यह है कि यहां कोई घंटी नहीं बजती है। यहां इंटीरियर को सजाने के लिए कांच की खिड़कियां नहीं हैं। बिना छत के इस खंडहर में गर्मियों के दौरान धूप सीधे आती है और मानसून में पानी। इसकी दीवारों पर काई जमी हुई है।

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