सर्वधर्म समभाव की संस्कृति को वर्षों से अपने में समेटे भारत आज भी इसी परपंरा को निभा रहा है। सभी धर्मों की आत्मा में गर्भनाल से जुड़ा अपनापन इस परंपरा को टूटने नहीं देता। यही कारण है कि आज भी देश में पर्व त्योहार सा झी विरासत को अपनाते हुए मनाए जाते हैं। भारत तो वैसे भी तीज-त्योहारों का देश है, जहां आज भी लाख बाधाओं के बावजूद उन्हें मिल-जुलकर मनाया जा रहा है। हर त्योहार का एक रंग है और अलग ही आत्मा। यह रंग सावन के महीने में कुछ ज्यादा ही निखर आता है।

सावन माह में अनेक तीर्थों की वार्षिक यात्राएं आयोजित की जाती हैं, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्राएं निकाली जाती हैं तो महिलाओं का तीज का त्योहार भी इसी माह में आता है। इस बात तो मोहर्रम भी सावन माह में ही आया। इस माह का सबसे बड़ा त्योहार रक्षा बंधन है, जो एक अलग ही श्रद्धा, उमंग और अपनेपन से मनाया जाता है। भाई-बहन के इस निश्छल पर्व के कई पौराणिक व ऐतिहासिक तथ्य हैं। गंगा-जमुनी संस्कृति को भी अपने में समेटे है यह पर्व।
भारत में 11 अगस्त को यह त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। विदेश में रहने वाले भारतीय प्रवासी भी इस पर्व को उमंग से मनाते हैं। इस पर्व को मनाने को लेकर बदलाव हुए हों, लेकिन उमंग व अपनापन आज भी जारी है। भाई द्वारा बहन की रक्षा के संकल्प का यह पर्व हजारों सालों से मनाया जा रहा है। पौराणिक काल में ऐसे कुछ वृत्तांत हैं, जिसे पता चलता है कि रक्षा बंधन मनाने की परंपरा काफी प्राचीन है। भविष्य पुराण में एक प्रसंग है कि जब सुरों का असुरों का युद्ध शुरू हुआ और असुर उन पर भारी पड़ने लगे तब घबराए देव इन्द्र गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। तब वहां बैठी बृहस्पति की पत्नी ने रेशम के एक धागे को मन्त्रों की शक्ति से पवित्र कर इंद्र को बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। विश्वास किया जाता है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है।

एक प्रसंग यह भी है कि महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण की उंगली में चोट लग गई, तब पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा उस घाव पर बांध दिया था, जिसके बाद कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे उसकी सहायता का वचन दिया था। इस प्रसंग के अलावा स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में रक्षा बंधन को लेकर भी प्रसंग आते हैं। इनमें एक प्रसंग है कि एक बार राजा बलि रसातल में चले गए लेकिन उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर भगवान विष्णु को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। विष्णु जी के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारदजी ने एक उपाय बताया। तब लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें राखी बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
एक ऐतिहासिक प्रसंग यह भी माना जाता है कि मध्यकाल में चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजी थी। बादशाह ने उनकी राखी स्वीकार कर संकट के समय उनकी रक्षा का वचन दिया। इसी वचन के तहत उन्होंने गुजरात के बादशाह से युद्ध कर उसे हराया था। ये प्रसंग बताते हैं कि रक्षा बंधन का भारतीय समाज में कितना अधिक महत्व है। वैसे तो बदलते वक्त के साथ इस पर्व को मनाने का तरीका भी कुछ बदल गया है, लेकिन कभी वह दौर था, जब शादीशुदा बहन-बेटियां भाइयों को राखी बांधने अपने पीहर आती थीं तो वातावरण ही बदल जाता था। बात चाहे गांवों की हो या शहरों, कस्बों की हों या महानगरों की, हर कोई इन महिलाओं पर अपनापन उड़ेंलता दिखाई देता। बचपन की सहेलियों को सावन का महीना मिलन करवा देता। इनके बीच खूब गपशप होती और दुख-सुख की बातें। कभी किसी घर में पकवान बनाकर खिलाए जा रहे हैं तो दूसरे दिन किसी और घर में पकवान बन रहे हैं। इस त्योहारा के अवसर पर गांवों, कटरों, और कूंचों में खासी रौनक नजर आतीं। बहनें अपने भाइयों की राखी बांधतीं। तब लोकगीत का भी रिवाज था। गीत गाए जाते और इस दौरान भाई अपनी बहनों पर ढेर सा प्यार उडेंलते दिखाई देते।
विशेष बात यह है कि बढ़ती आधुनिकता, भौतिक वातावरण, भागदौड़ और बदलते वक्त में भी भारतीयों में अपने पर्व, संस्कार व नीतियों को सहेजने का चलन बढ़ चला है। रक्षा बंधन सहित किसी भी पर्व की बात करें, देशवासियों के अलावा प्रवासी भारतीय भी त्योहारों को उमंग, उल्लास से मना रहे हैं। भारत के बाहर जो प्रवासी रह रहे हैं, वे ऐसे पर्वों को लेकर और जीवटता दिखाने लगे हैं। उन्हें लगता है कि अपने धर्म व संस्कृति को बनाए रखना और उस पर अडिग रहना उन्हें मानसिक संतोष तो प्रदान करता ही है, साथ ही भारतीयता से जुड़ने का भी संबल प्रदान करता है। ऐसे त्योहार जो कभी सामान्य रूप से मनाए जाते रहे हैं, अब विदेशों में भारतीय उन्हें उत्साह और जोर-शोर से मना रहे हैं।