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राज कपूरः कामुकता को प्यार से पेश कर दिलों पर राज करने वाला कारीगर

धर्म-कर्म और आदर्शवाद में जीते उस दौर के भारतीय दर्शकों के सामने महिलाओं की सेंसुअल छवि (Sensual Image) और कामुक प्रेम (Erotic Love) को पर्दे पर उभारने का श्रेय राज कपूर को ही जाता है।

भारतीय विशेषकर हिंदी सिनेमा आज भी फिल्म निर्माता, निर्देशक और नायक राजकपूर को याद करता है। वह एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने फिल्म में बेहतरीन प्रयोग किए और अधिकतर में वह सफल भी रहे। धर्म-कर्म और आदर्शवाद में जीते उस वक्त के भारत के दर्शकों को महिलाओं की सेंसुअल छवि (Sensual Image) और (Erotic Love) कामुक प्रेम को पर्दे पर उभारने का श्रेय उन्हें ही जाता है। ऐसी छवियों को सिनेमा तक पहुंचाने के लिए उन्हें कई परेशानियों और झंझटों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन अपने ‘प्रेम भरे रिश्तों’ के कारण उन्होंने इस बाधा को पार कर लिया।

राजकपूर और उनकी फिल्मों में अजीब सा विरोधाभास (Contrast) था। 

भारत का सिनेमा अब पूरी तरह बदल चुका है लेकिन राजकपूर की फिल्मों को आज भी पसंद किया जाता है। उनकी इमेज और फिल्मों में ऐसी कशिश थी जो लोगों को अब तक अपनी ओर खींचती है। राजकपूर और उनकी फिल्मों में अजीब सा विरोधाभास (Contrast) था। वह भारत खासकर युवाओं की आदर्श छवि दिखाने के लिए हमेशा तत्पर रहे। अनाड़ी, जिस देश में गंगा बहती है.. जैसी फिल्में इसका प्रमाण हैं, तो उस ‘प्राचीन युग’ में उन्होंने फिल्मी हीरोइनों की वह छवि पेश की जिसने दर्शकों, विशेषकर युवाओं के मन-मस्तिष्क को झकझोर दिया। उन्होंने अपनी नायिकाओं की सेंसुअल छवि पेश की, चाहे उसका रोल गरीब मजदूर का हो या अमीर औरत का। फिल्म में कोई न कोई गाना या कुछ देर का ऐसा सीन जरूर आता, जिसमें हीरोइन के चेहरे और शरीर के भाव दर्शकों में अजब सी उत्तेजना पैदा कर देते। कई बार हाल यह होता था कि दर्शक उस दृश्य को देखने के लिए ही बार-बार सिनेमा का रुख करते थे।

श्री 420, सत्यम शिवम सुंदरम, राम तेरी गंगा मैली, बॉबी जैसी फिल्मों में इरॉटिक प्रेम साफ दिखाई देता है।

राजकपूर की फिल्मों में प्रेम का भी यही हाल था। देखने में वह प्रेम बेहद ही आदर्शवादी नजर आता था और ऐसा लगता था कि उनकी फिल्मों में हीरो-हीरोइन का प्रेम सच्चा और देह-विहीन है। लेकिन असल में ऐसा नहीं था। यह प्रेम इरॉटिक था, बेहद कामुकता से भरा हुआ। श्री 420, सत्यम शिवम सुंदरम, राम तेरी गंगा मैली, बॉबी जैसी फिल्मों में यह इरॉटिक प्रेम साफ दिखाई देता है। इसी प्रेम का परिणाम था कि राजकपूर की यह फिल्में जबर्दस्त हिट रहीं। इन फिल्मों की वजह से राजकपूर कई देशों में बेहद चर्चा में रहे। जब इन फिल्मों में प्रेम के क्षण आते तो वह गूंगे को गुड़ की तरह बताने जैसे नहीं बल्कि महसूस करने लायक होते थे। एक्ट्रेस का इरॉटिक चेहरा और हीरो का सेंसुअल भाव, वह सब कुछ जाहिर कर देता था जो ऐसे पलों में महिला-पुरुष के बीच में दिखता और महसूस किया जाता है।

राजकपूर ने जैसी संवेदनशील तस्वीरें दिखाईं, वैसी इन्हीं हीरोइनों की अन्य फिल्मों में नजर नहीं आई।

महत्वपूर्ण और गजब बात थी राजकपूर की हीरोइनों की सेंसुअल इमेज। मेरा नाम जोकर की सिमी ग्रेवाल और पद्मिनी हों या ऊपर बताई गई फिल्मों में जीनत अमान, डिंपल कपाडिया, मंदाकिनी या फिर इनसे पहले राजकपूर की फिल्मों में आईं नरगिस, वैजयंती माला आदि, राजकपूर ने इनकी जैसी Sensual Image दिखाई, वैसी इन्हीं हीरोइनों की अन्य फिल्मों में नजर नहीं आई। विशेष बात यह रही कि ‘कारीगर’ राजकपूर ने इनकी ऐसी छवि को दिखाने के लिए भारतीय संस्कृति, धर्म और अगाध प्रेम का सहारा लिया। लेकिन बहुत ध्यान से देखें तो साफ जाहिर हो जाएगा कि असल में राजकपूर एक खास एंगल और मूड से इन हीरोइनों की अलग ही छवि दिखाना चाहते थे। इस काम में सिनेमाटोग्राफर राधू करमाकर ने उनकी काफी मदद की। राधू की आंखें और राजकपूर का विजन हीरोइनों की छवि को अलग ही बिंदास, कमनीय रूप प्रदान कर देता था।

स्पष्ट है कि कामुक प्रेम और ऐसी छवि के पीछे राजकपूर की सोच उन्हें भुनाने की ही रही। राजकपूर की दिल से बनाई गई फिल्म मेरा नाम जोकर जब फ्लॉप हो गई तो उन्होंने इस घाटे को पूरा करने के लिए बॉबी फिल्म बनाई। इस फिल्म में किशोर लड़का और लड़की के प्रेम की आड़ में उन्होंने कामुक प्रेम और हीरोइन की इरॉटिक छवि पेश की। इस फिल्म ने पूरे भारत में तहलका मचा दिया था। इससे पहले उन्होंने धर्म की आड़ में फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम में भी हीरोइन की कामुक छवि पेश की थी और यह फिल्म भी खूब चली। इस तरह की कामयाबी ने राजकपूर को देश-विदेश में प्रसिद्धि दिलाई। उन्हें तीन राष्ट्रीय पुरस्कार, 11 फिल्मफेयर पुरस्कारों के अलावा पद्म भूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिले। इन्हीं फिल्मों के चलते राजकपूर को हिंदी सिनेमा का सबसे बड़ा शो-मैन कहा जाता है।

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