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अमेरिकी सैनिकों के सामने ऐतिहासिक भारतीय युद्ध और सिख संस्कृति की झांकी

सार्जेंट तलविंदर ने बताया कि उन्हें युद्ध पर प्रस्तुति देने का विचार सारागढ़ी फाउंडेशन के संस्थापक डॉ. गुंदरफाल साइन जोसन द्वारा दिए गए एक व्याख्यान में भाग लेने के बाद आया। सारागढ़ी फाउंडेशन युद्ध-स्मृति पर काम करता है।

प्रशिक्षण के दौरान सैनिका ने चखा भारतीय भोजन का स्वाद। सार्जेंट तलविंदर सिंह (बीच में) Photo : Spc. Joseph Liggio

न्यूयॉर्क आर्मी नेशनल गार्ड की 1156वीं इंजीनियर कंपनी के सैनिकों को पीकस्किल के पास कैंप स्मिथ ट्रेनिंग साइट पर ड्रिल प्रशिक्षण के दौरान भारतीय सैन्य इतिहास का पाठ और पारंपरिक भारतीय भोजन का स्वाद चखने को मिला। ड्रिल प्रशिक्षण 14 अक्तूबर को किया गया था।

सिख सैनिकों की बहादुरी की दास्तान सुनते अमेरिकी सैनिक। Photo : Spc. Joseph Liggio

ड्रिल प्रशिक्षण का उद्देश्य कंपनी के सदस्यों को विविध पृष्ठभूमि से परिचित कराना था। सदस्यों को भोजन और इतिहास के पाठ का सुझाव देने वाला सैनिक था क्वींस में रहने वाला सिख सार्जेंट तलविंदर सिंह जो कंपनी में प्लंबर है।

सिख भारतीय धर्म (सिख धर्म) का पालन करते हैं और दुनिया भर में इसके ढाई करोड़ अनुयायी हैं। 80 प्रतिशत सिख भारत में रहते हैं और प्यू रिसर्च सेंटर का अनुमान है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 280,000 सिख हैं। इनमें से 11 प्रतिशत न्यूयॉर्क में रहते हैं।

सिखों में सैन्य सेवा की एक लंबी परंपरा रही है। 19वीं शताब्दी के दौरान तत्कालीन ब्रिटिश भारत की रक्षा करने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य ने उन्हें महत्व दिया गया था। 1897 में 21 सिख सैनिकों के एक समूह ने ब्रिटिश साम्राज्य की सीमा पर एक प्रमुख किलेबंदी पर हमला करने वाले 10,000 अफगानों के खिलाफ मौत से लड़ाई लड़ी थी। तब सिख सैनिकों ने अपनी बहादुरी दिखाते हुए अफगानों को रोक दिया था क्षेत्र के अन्य किलों को ध्वस्त होने से बचा लिया था।

सार्जेंट तलविंदर ने बताया कि उन्हें युद्ध पर प्रस्तुति देने का विचार सारागढ़ी फाउंडेशन के संस्थापक डॉ. गुंदरफाल साइन जोसन द्वारा दिए गए एक व्याख्यान में भाग लेने के बाद आया। सारागढ़ी फाउंडेशन युद्ध-स्मृति पर काम करता है।

दोपहर में भोजन के व्याख्यान के दौरान सैनिकों ने साइन जोसन से लड़ाई के बारे में सुना कि किस तरह महज 21 सिख सैनिकों ने अपनी कुर्बानी देकर कम से कम 180 अफगान लड़ाकों को मार गिराया था। अपने किले को बचाने के लिए सिख सैनिक ढाल बनकर खड़े रहे और एक-एक कर जान की बाजी लगाते रहे। सभी सिखों को मरणोपरांत इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट प्रदान किया गया। यह उस समय का सर्वोच्च भारतीय सेना पुरस्कार था।

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