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पंजाब चुनाव में NRI वोट का सूखा, आप जानने चाहेंगे वजह?

पंजाब में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुका है और मतदाताओं के वोट तय करेंगे कि कौन सी पार्टी भारत के इस सीमावर्ती राज्य की सत्ता पर काबिज होगी। चुनाव में 70 फीसदी से कम वोट पड़े जिसमें एनआरआई की भागीदारी नदारद रही।

भारत के राज्य पंजाब की संपन्नता में विदेश गए पंजाबियों की अहम भूमिका है। वे अपने पिंड को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में अपना योगदान देते आ रहे हैं लेकिन जब बात चुनाव की हो तो वैसा उत्साह देखने को नहीं मिल रहा। हाल ही में संपन्न पंजाब विधानसभा चुनाव में  उनकी उपस्थिति नदारद रही। एनआरआई बतौर मतदाता पंजीयण कराने से भी कतरा रहे हैं। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव के वक्त दर्ज आंकड़े को देखें तो उस समय तक केवल 393 पंजाबी एनआरआई का नाम वोटर लिस्ट में शामिल था।  आखिर ये खुद को भारत के लोकतंत्रिक पर्व से क्यों दूर रख रहे हैं ? यहां समझने की कोशिश करते हैं।

चुनाव प्रचार से भी गायब रहे NRI

पंजाब के एनआरआई मतदाताओं की संख्या भले ही 400 के अंदर ही सिमट गई हो, पर उनकी भागीदारी चुनाव प्रचार में देखने को खूब मिलती रही है। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में उन्होंने इससे दूरी बरती। अपनी मौजूदगी का अहसास उन्होंने सबसे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में दिखाया और फिर 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में भी  बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। 2012 के चुनाव में प्रवासियों ने  पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया के समर्थन में प्रचार किया था, हालांकि यह पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। 2014 लोकसभा चुनाव में एनआरआई आम आदमी पार्टी (आप) के समर्थन में उतरे थे। 2017 विधानसभा में भी बड़ी संख्या प्रवासी भारत लौटे और एक बार फिर आप के प्रति ही उनका अनुराग देखने को मिला।

जानकार बताते हैं कि पहले एनआरआई कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के प्रचार के लिए दो महीने पहले ही अपने पिंड पहुंच जाते थे, लेकिन इस बार उन्होंने रुचि नहीं दिखाई। शायद इसकी वजह यह है कि उन्हें यह अहसास हो गया है कि उनके प्रयास सिस्टम में बदलाव के रूप में परिवर्तित नहीं हो रहे हैं।

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