भारतीय सिनेमा का इतिहास एक सदी से भी ज्यादा पुराना है। इंडस्ट्री ने एक से बढ़कर एक फिल्में बनाईं, जिन्हें देश से लेकर दुनिया भर के दर्शकों ने खूब सराहा। भारत की फिल्म इंडस्ट्री ने एक्शन से लेकर आर्ट तक की धमाकेदार फिल्में बनाईं, बावजूद आज तक किसी भी भारतीय सिनेमा को ऑस्कर नहीं मिल पाया है। कुछ ही भारतीय कलाकारों को अकैडमी या ऑस्कर पुरस्कार मिल पाए हैं।
95वें अकादमी पुरस्कारों का ऐलान 13 मार्च को लॉस ऐंजिलिस में किया जाना है। इस बार तीन भारतीय फिल्में ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई हैं। एसएस राजामौली की फिल्म RRR का नाटू नाटू गाना बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग कैटिगरी में नामित किया गया है। वहीं ऑल दैथ ब्रीथ को बेस्ट डॉक्युमेंट्री और द एलिफेंट विस्पर्स को बेस्ट शॉर्ट फिल्म के लिए नामांकित किया गया है।
आइए, यहां हम कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में बताते हैं जिन्हें ऑस्कर के लिए नामिनेट तो किया गया, पर अवॉर्ड मिलने से चूक गईं। इन शानदार फिल्मों को अकैडमी ने अनदेखी कर दिया:
पाथेर पांचाली : 1955 में बांग्ला भाषा में बनी इस फिल्म का निर्देशन सत्यजीत रे ने किया था। फिल्म में एक युवा लड़के की कहानी है, जिसका परिवार गांवों में रहता है जो जीने के लिए संघर्ष कर रहा है। इससे 28वें अकैडमी पुरस्कार के लिए सर्वेश्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्मों में शामिल किया गया था, पर कोई पुरस्कार नहीं मिल पाया।
मदर इंडिया : महबूब खान निर्देशित 1957 में बनी इस फिल्म की गिनती भारत की सर्वेश्रेष्ठ फिल्मों में होती है। एक भारतीय मां की कहानी है जो पति के घर छोड़ देने के बाद अपने बच्चों को पालने के लिए संघर्ष करती है। 30वीं अकैडमी अवॉर्ड के लिए सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्म के तौर पर इसे नामित किया गया था। लेकिन नाइट्स ऑफ कैबिरिया के सामने यह फिल्म पिछड़ गई।
सलाम बॉम्बे : मीरा नायर के निर्देशन में 1988 में यह फिल्म बनी थी। यह एक युवा लड़के की कहानी है जो घर छोड़कर बॉम्बे भाग जाता है और अपना जीवन वहां की गलियों में बिताता है। 61वें अकैडमी अवॉर्ड के लिए सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्मों में इसे शामिल किया गया था, लेकिन पेले द कॉन्कर से यह मात खा गई।
लगान : क्रिकेट पर आधारित आशुतोष गोवारिकर के निर्देशन और आमिर खान के अभिनय से सजी ये फिल्म 2001 में बनी थी। इसमें भारत की आजादी के पूर्व की कहानी है। क्रिकेट जीतकर तीन साल का लगान माफ कराने के लिए संघर्ष की कहानी है। इसे 74वें अकैडमी अवॉर्ड के लिए विदेशी भाषा की फिल्मों में नामित किया गया था, लेकिन नो मैन्स लैंड के सामने यह चूक गई।
देवदास : भारतीय उपन्यास देवदास पर आधारित यह फिल्म 2002 में संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बनी। इस फिल्म को काफी सराहा गया। इसको दर्शकों ने काफी पसंद किया, पर इसे ऑस्कर के लिए नामित तक नहीं किया गया।
ब्लैक : संजय लीला भंसाली के निर्देशन में 2005 में यह फिल्म बनी थी। यह एक गूंगी-अंधी लड़की की कहानी है जिसका अपने शिक्षक से ही संबंध हो जाता है। कहानी और इस फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया। खासकर मुख्य अभिनेत्री रानी मुखर्जी ने गजब की भूमिका निभाई। लेकिन इसे ऑस्कर के लिए नामित नहीं किया गया।
इसके अलावा 2010 में अंशु रिजवी के निर्देशन और आमिर खान के प्रॉडक्शन में बनी पीपली लाइव, 2014 में बनी मराठी भाषा की फिल्म कोर्ट, 2017 में रीमा दास की फिल्म विलेज रॉकस्टार, 2019 में मलयालम भाषा में बनी जलीकट्टु को खूब सराहा गया। लेकिन ये ऑस्कर तक नहीं पहुंच पाईं।