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'Tree of Life' से बनी भारत की खास शराब जिस पर कभी अंग्रेजों ने बैन लगा दिया था

प्राचीन काल से लेकर साल 1800 के अंत तक भारत की कई जनजातियों को महुआ बनाने, इसका सेवन करने और बेचने की अनुमति थी। लेकिन ब्रिटिश काल में सरकार ने इसे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक मानकर बैन कर दिया था। अब धीरे-धीरे महुआ को लेकर राज्य सरकारें नरम रुख अपना रही हैं।

भारत के पश्चिमी, मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में महुआ के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं। पिछले करीब 3000 साल से इन इलाकों में रह रहीं संथाल, गोंड, मुंडा और ओरांव जैसी जनजातियां इसे 'जीवन का पेड़' (Tree of Life) मानती हैं। पारंपरिक रूप से ये जनजातियां इसके फूलों, फलों, टहनियों और पत्तियों का उपयोग भोजन, पशुओं के चारे, ईंधन, कला और दवाओं के लिए करते रहे हैं।

इस पेड़ से एक शराब भी बनाई जाती है जिसे महुआ कहते हैं।

इसका इस्तेमाल अनाज के लिए करेंसी की तरह भी किया जाता था। उन्होंने इसे जीवंत लोक उत्सवों, गीतों और छंदों के माध्यम से भी प्रतिष्ठित किया है। इस पेड़ से एक शराब भी बनाई जाती है जिसे महुआ कहते हैं। यह शराब बेहतरीन खुशबू वाली होती है। इसे बनाने की प्रक्रिया आठ दिन की होती है।

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