विज्ञान के क्षेत्र में अमेरिका के सर्वोच्च सम्मान नेशनल मेडल फॉर टेक्नोलोजी एंड इनोवेशन से सम्मानित अशोक गाडगिल को बचपन से ही पढ़ने का शौक लग गया था। 1950 के दशक में भारत के मुंबई में जन्मे अशोक के पिता कई लाइब्रेरियों के सदस्य थे। वह दर्जनों किताबें घर ले आया करते थे। इसी से अशोक को पढ़ाई का ऐसा चस्का लगा कि आज उन्होंने ने पूरे अमेरिका में भारत का नाम रोशन कर दिया है।
विज्ञान के क्षेत्र में आपको चीज ने आकर्षित किया?
गाडगिल: मुझे विज्ञान अच्छा लगता है क्योंकि यह वास्तविकता पर आधारित होता है। मुझे लगता था कि कुछ वस्तुनिष्ठ सार्वभौमिक बातें हैं, जिन्हें मैं सीख सकता हूं। बस इसी चीज ने मुझे लुभाया। मुझे भौतिकी विषय था। मैं बहुत पहले ही जान गया था कि मुझे वैज्ञानिक बनना है। उस समय मेरी जानकारी में कोई ऐसा नहीं था, जिसने पीएचडी कर रखी हो। मुझे ये भी नहीं पता था कि शोध करने के लिए पीएचडी की जरूरत होती है। लेकिन एक चीज थी, जो मेरे अंदर थी- उत्सुकता, अंदर से तीव्र इच्छा। बस इसी ने मुझे आगे बढ़ाया।
आपने अपने काम की शुरुआत कैसे की?
गाडगिल: मैं 1973 में पीएचडी करने यूसी बर्कले आया था। अमेरिका आने पर मुझे एहसास हुआ कि भारत की तुलना में अमेरिका कितना शानदार है। पूरे भारत की तुलना में जितना खाद किसान अपने खेतों में नहीं डालते थे, उससे ज्यादा अमेरिकी अपने घर के लॉन में डालते थे। यह अचंभित करने वाला था। मुझे ओपेरा में दिलचस्पी नहीं थी, मुझे घर में एक टेलीफोन चाहिए था क्योंकि हमारे घर में वह नहीं था। तब मुझे लगा कि केवल भौतिकी से मेरा गुजारा नहीं चलेगा। मुझे कुछ ऐसा करना होगा जो कमजोर तबके की मदद कर सके, गरीब देशों में लोगों की जिंदगी संवार सके और उन्हें बेहतर बना सके।
किस्मत से इसी दौरान मैं आर्ट रोसेनफेल्ड से मिला, जो भौतिकी के प्रोफेसर थे और ऊर्जा संकट के समाधान पर काम कर रहे थे। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। आर्ट और मैंने एक जैसी समस्याओं पर काम नहीं किया, लेकिन हम बेहद करीब रहे। मैं हमेशा उनका कर्जदार रहूंगा। हम ऐसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं जिनका समाधान व्यक्तिगत श्रेय से कहीं अधिक मायने रखते हैं।
आपको इस काम के लिए प्रेरणा कहां से मिलती है?
गाडगिल: मैं विज्ञान, इंजीनियरिंग और अपनी रचनात्मकता से ऐसे लोगों की मदद करने का प्रयास करता हूं, जो मुश्किलों से जूझ रहे हैं। अगर मैं उनकी थोड़ी सी भी मदद कर पाता हूं, तो मुझे लगता है कि यह शानदार है।
आप जब कोई समस्या देखते हैं और आपके पास वो ज्ञान, रचनात्मकता और कल्पनाशीलता भी है जिससे उस समस्या को प्रभावी ढंग से और बिना ज्यादा खर्च किए हल करना संभव है लेकिन कोई ऐसा नहीं कर रहा है। जब मैं उस स्थिति में होता हूं तो जी जान से उसमें जुट जाता हूं क्योंकि यह मेरी प्रेरणाशक्ति बन जाता है।
बर्कले लैब में रहते हुए मैंने जो कुछ तैयार किया, खासकर यूवी वाटरवर्क्स, बर्कले-दारफुर स्टोव, या आर्सेनिक रीमिडिएशन वर्क, उसके लिए मुझे कभी सीधे तौर पर नहीं कहा गया था और न ही भुगतान किया गया था। लैब ने मुझे अपने तरीके से काम करने की छूट दी। आसपास इतना टैलंट और रिसोर्स थे, उन्हें इस्तेमाल करने की आजादी दी।
आपको क्या लगता है, किस चीज का आपको सबसे ज्यादा फायदा हुआ?
गाडगिल: मुझे लगता है कि अनुसंधान और आविष्कार का आनंद सबसे अद्भुत है। बर्कले की खास बात ये है कि यहां पर अनुसंधान के क्षेत्र में कुछ सबसे प्रतिभाशाली लोगों के साथ काम करने का अवसर मिलता है। यह बड़ी खुशी देता है। यहां के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं, जो एक अद्भुत परंपरा है। असल दुनिया में काम करने का अलग आनंद है। मैंने यूवी वॉटरवर्क्स का आविष्कार किया और भारत के दूरदराज के गांवों में इसका उपयोग करने वाले लोगों से मिला। वहां जाकर जो खुशी मिली, वह अभूतपूर्व है।
काम में आपके लिए कौन से मूल्य सबसे महत्वपूर्ण हैं?
गाडगिल: मैं अपने छात्रों से हमेशा कहता हूं कि छोटी समस्या पर बड़ी प्रगति करने की तुलना में बड़ी समस्या पर छोटी प्रगति करना अधिक महत्वपूर्ण है। इसके अलावा यह अपने काम का समुदाय पर परीक्षण करते समय विज्ञान के प्रति सच्चा होना और कभी शॉर्टकट न लेना महत्वपूर्ण होता है। इसमें किसी तरह का समझौता नहीं होना चाहिए। उच्च लक्ष्य के नाम पर समुदाय को नुकसान नहीं पहुंचाना भी बड़ी बात है। समुदाय को कुछ ऐसा देना जो उनके लिए फायदेमंद हो और सस्ता भी हो तो इससे बढ़कर कुछ और नहीं।
देश का सर्वोच्च सम्मान नेशनल मेडल ऑफ टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन प्राप्त करके कैसा महसूस कर रहे हैं?
गाडगिल: एनएमटीआई के लिए उन प्रौद्योगिकी आविष्कारों को मान्यदा देना काफी अनोखा है जो उपेक्षित समदायों के लिए बने हैं। आम तौर पर यह ऐसे लोगों को दिया जाता है जिन्होंने रॉकेट विज्ञान में, इंटरनेट में या फिर शानदार चीजों का आविष्कार किया हो। मुझे पता है कि मैं जो काम करता हूं, वह ज्यादा कमजोर तबके के लिए बहुत काम की चीज है। लेकिन उनके लिए काम करने पर ज्यादा हो-हल्ला नहीं होता। मेरे लिए इसमें कुछ गलत नहीं है। मैं सभी मानव जीवन को मूल्यवान मानता हूं।
अब आप किस पर काम कर रहे हैं?
गाडगिल: मैं भूजल से आर्सेनिक को प्रभावी ढंग से, सस्ते तरीके से और बिना पानी बर्बाद किए हटाने पर काम कर रहा हूं। यह विचार एक एलडीआरडी (प्रयोगशाला निर्देशित अनुसंधान और विकास) कार्यक्रम से निकला था, जिसके लिए मैंने आवेदन किया था और 2005 में वित्त पोषित किया गया था। तब से काम लगातार आगे बढ़ा है। भारत में दो सामुदायिक संयंत्र काम कर रहे हैं। प्रत्येक संयंत्र से 5,000 लोगों को फायदा मिल रहा है। उन्हें बहुत सस्ते में शुद्ध पीने का पानी मिल रहा है।
अब हम उस तकनीक को अमेरिका के कैलिफोर्निया की सेंट्रल वैली में ला रहे हैं क्योंकि वहां आर्सेनिक की काफी समस्या है। कई कम आय वाले ग्रामीण समुदायों के पास भूजल के अलावा पीने के लिए कोई पानी नहीं है। कुछ लोगों को 10-20 मील दूर शहर में जाकर नगरपालिका की सप्लाई वाला पानी लाना पड़ता है। पानी खरीदकर पीना पड़ता है। बर्कले लैब में नेशनल एलायंस फॉर वाटर इनोवेशन इस पायलट परियोजना पर हमारे साथ काम कर रहा है।
हम सभी के लिए एक स्थायी भविष्य पर कैसे काम कर सकते हैं?
गाडगिल: यूसी बर्कले के पूर्व शोधकर्ता केंतारो टोयामा, जो कि अब मिशिगन विश्वविद्यालय में हैं, अक्सर कहते हैं कि प्रौद्योगिकी मानव इरादों का एक एम्पलीफायर है। मैं इससे पूरी तरह सहमत हूं। यदि आपको दुनिया को एक निष्पक्ष स्थान बनाने में रुचि नहीं है तो प्रौद्योगिकी इसे निष्पक्ष बनाने वाली नहीं है। यदि आपके पास असमानता या ऊर्जा सेवाओं या शैक्षिक अवसर तक असमान पहुंच को कम करने का इरादा नहीं है तो प्रौद्योगिकी से वह समस्या ठीक नहीं होगी। इसलिए एक न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य ही मुख्य लक्ष्य होना चाहिए। हमारे पास इतना एसटीईएम ज्ञान है और इतनी क्षमताएं हैं कि दुनिया को एक बेहतर जगह बनाया जा सकता है। बस इरादा मजबूत रखना होगा।