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दिलचस्प: ऐसे प्रधानमंत्री, जो लाल किला पर फहरा नहीं पाए राष्ट्रध्वज

आजाद भारत के इतिहास में गुलजारी लाल नंदा और चंद्रशेखर ऐसे नेता रहे जो विभिन्न कारणों से प्रधानमंत्री तो बने लेकिन उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किला की प्राचीर से तिरंगा फहराने अवसर नहीं मिल पाया। नंदा तो दो बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन एक बार भी राष्ट्रध्वज को नहीं फहरा पाए।

भारत की आजादी के दिन स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) पर लाल किला पर उत्सव और प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रध्वज फहराना एक राष्ट्रीय पर्व माना जाता है। वर्ष 1947 से दिल्ली के लालकिला के प्राचीर से प्रधानमंत्रियों द्वारा लगातार तिरंगा फहराया जा रहा है। आज हम आपको एक दिलचस्प जानकारी देंगे कि आजादी के दिन से लेकर आज किन-किन प्रधानमंत्रियों ने लालकिला पर ध्वज फहराया। दिलचस्प बात यह है कि भारत के दो प्रधानमंत्री ऐसे हुए हैं जिन्हें लाल किला पर राष्ट्रध्वज फहराना नसीब नहीं हुआ। ऐसे भी प्रधानमंत्री हुए हैं, जिन्हें लालकिला पर एक बार ही तिरंगा फहराकर ‘संतोष’ करना पड़ा।

पुरानी दिल्ली स्थित लाल किला पर आजादी के दिन राष्ट्रीय ध्वज फहराना भारत देश के लिए राष्ट्रीय उत्सव रहा है। देश के हर प्रधानमंत्री का हक रहा है कि वह 15 अगस्त के दिन इस किले की प्राचीर से तिरंगा लहराए, लेकिन कुछ ऐसे भी कारण रहे हैं कि किसी प्रधानमंत्री ने अनेकों बार किले से राष्ट्रीय ध्वज लहराया। लेकिन किसी प्रधानमंत्री की किस्मत इतनी खराब रही कि वे पीएम बनने के बावजूद देश के ध्वज को फहरा नहीं पाए। देश जब आजाद हुआ था, उस वक्त देश की बागडोर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संभाली थी। भाग्य की बात यह रही कि उन्होंने ही सबसे अधिक राष्ट्रीय ध्वज को लालकिला से फहराया। नेहरू ने आजादी के बाद सबसे पहले 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर तिरंगा फहराया। वह 27 मई 1964 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने लालकिला की प्राचीर से 17 बार तिरंगे को फहराया। विशेष बात यह है कि सबसे अधिक तिरंगा फहराने का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम है।

आपको बताएंगे कि किन प्रधानमंत्रियों को यह अवसर मिला, लेकिन सबसे पहले आपको यह जानकारी देते हैं कि किन प्रधानमंत्रियों को लाल किला से राष्ट्रीय ध्वज फहराने का मौका नहीं मिला। आजाद भारत के इतिहास में गुलजारी लाल नंदा और चंद्रशेखर ऐसे नेता रहे जो विभिन्न कारणों से प्रधानमंत्री तो बने लेकिन उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किला की प्राचीर से तिरंगा फहराने अवसर नहीं मिल पाया। नंदा तो दो बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन एक बार भी राष्ट्रध्वज को नहीं फहरा पाए। गौरतलब है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद 27 मई 1964 को गुलजारी लाल नंदा भारत के प्रधानमंत्री बने लेकिन उस वर्ष 15 अगस्त आने से पहले ही नौ जून 1964 को वह पद से हट गए और उनकी जगह लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने। विशेष बात यह रही कि प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद गुलजारी लाल नंदा एक बार फिर  11 से 24 जनवरी 1966 के बीच भी प्रधानमंत्री पद पर रहे। इसके बाद नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी पीएम बन गई, जिसके चलते वह ध्वज नहीं फहरा पाए। भारत के एक ओर ‘युवा तुर्क’ नेता चंद्रशेखर को भी ध्वज फहराने का अवसर नहीं मिला। देश के प्रधामंत्री वीपी सिंह के इस्तीफा देने के बाद उनकी सरकार के सहयोगी चंद्रशेखर कांग्रेस के समर्थन से 10 नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री बने, लेकिन कांग्रेस से अनबन के चलते उन्होंने 21 जून, 1991 को इस्तीफा दे दिया था।

नेहरू के बाद लालकिला से सबसे अधिक ध्वजारोहण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। उन्होंने 16 बार राष्ट्रीय ध्वज को लाल किला से फहराया। वह 24 जनवरी 1966 से लेकर 24 मार्च 1977 तक और फिर 14 जनवरी 1980 से लेकर 31 अक्तूबर 1984 तक प्रधानमंत्री पद पर रहीं। बतौर प्रधानमंत्री अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने 11 बार और दूसरे कार्यकाल में पांच बार लाल किले पर तिरंगा फहराया। इसके बाद नंबर आता है कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता मनमोहन सिंह का। उन्होंने वर्ष 2004 से 2014 तक 10 बार लालकिला से राष्ट्रीय ध्वज को फहराया। अब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस वर्ष 10वीं बार लालकिला से ध्वजारोहण करेंगे। स्वतंत्रता दिवस लाल किला से पांच या उससे अधिक बार तिरंगा फहराने का मौका प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पीवी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी को मिला है। राजीव 31 अक्तूबर 1984 से लेकर एक दिसंबर 1989 तक और नरसिंह राव 21 जून 1991 से 10 मई 1996 तक प्रधानमंत्री रहे। दोनों को पांच-पांच बार ध्वज फहराने का अवसर प्राप्त हुआ। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर चुके अटल बिहारी वाजपेयी जब 19 मार्च 1998 से लेकर 22 मई 2004 के बीच प्रधानमंत्री रहे तो उन्होंने कुल छह बार लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया।

इससे पहले वह एक जून 1996 को भी प्रधानमंत्री बने लेकिन 21 अप्रैल 1997 को ही उन्हें पद से हटना पड़ा था।

देश के दक्षिणभाषी प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने लाल किला से पांच बार ध्वजारोहण किया था। वह 21 जून 1991 से 16 मई 1996 को भारत के प्रधानमंत्री रहे। उल्लेखनीय है कि लालकिला की प्राचीर से तीन या चार बार ध्वजारोहण का अवसर किसी भी प्रधानमंत्री को नहीं मिला है। हां, सिर्फ एक प्रधानमंत्री ने दो बार ध्वजारोहण जरूर किया है, इनमें लाल बहादुर शास्त्री ही एकमात्र प्रधानमंत्री हैं। भारत में ऐसे भी चार प्रधानमंत्री हुए हैं, जिन्हें विभिन्न कारणों से राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मात्र एक बार मिला है, इनमें प्रधानमंत्री चौधरी चरण, विश्वनाथ प्रताप सिंह, एचडी देवेगौड़ा व इंद्र कुमार गुजराल शामिल हैं।

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