किसी भी देश का ध्वज उसके सम्मान और अस्मिता का प्रतीक माना गया है। ध्वज को देखना और फहराना एक अलग ही आनंद और गर्व का बोध पैदा करता है। देशवासियों के मन में अपने ध्वज को देखकर आस्था, निष्ठा तथा बलिदान की भावना पैदा होती है। यह ध्वज राष्ट्रीय एकता और शक्ति का भी प्रतीक माना जाता है। तभी प्रमुख स्थलों, प्रतिष्ठानों में ध्वज को लगाने की रवायत है। फहराता ध्वज यह घोषित करता है कि देश आजाद है और नागरिकों के मन में कोई भय नहीं है। भारत का ध्वज को तिरंगा कहा जाता है। यह तीन रंग का केसरिया, सफेद व हरा रंग विभिन्न प्रतीकों का प्रतीक है। भारत के ध्वज का अपना एक रोचक इतिहास है।
भारतीय तिरंगे के रंगों के भी विशेष अर्थ हैं। केसरिया रंग त्याग व बलिदान का प्रतीक हैं। सफेद रंग सत्य व शांति का प्रतीक माना गया है। जबकि नीचे का हरा रंग विश्वास व वीरता का प्रतीक हैं। आप हैरान होंगे कि वर्ष 2002 से पहले तक आम भारतीय को विशेष अवसरों को छोड़कर तिरंगे को फहराने या उसे प्रयोग करने की अनुमति नहीं थी। लेकिन उस साल देश की संसद ने नया कानून बनाकर तिरंगे को सबके लिए अनुकूल कर दिया। बस शर्त यह है कि उसे पूरा सम्मान मिलना चाहिए, वरना सजा व जुर्माना दोनों को हो सकते हैं। नए कानून में तिरंगे का अनुपात, रंग की गहराई तथा पट्टियों की लम्बाई चौड़ाई सब निश्चित की गई। उसकी लम्बाई चौड़ाई का अनुपात क्रमश: 3:2 रखा गया, अर्थात तिरंगे की लम्बाई उसकी चौड़ाई से डेढ़ गुना होनी चाहिए। अशोक चक्र गहरे नीले रंग का होना चाहिए तथा इसमें बनी तीलियों की संख्या 24 होनी चाहिए। अब भारत वासी 365 दिन तिरंगा फहरा सकते हैं।
अंग्रेजों के गुलामी के दौर में उनसे लड़ने वाले रजवाड़ों आम जन का ध्वज केसरिया होता था। जिसमें हिंदुत्व भी झलकता था। लेकिन जब पूरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया, तब नेताओं, जनप्रतिनिधियों ने देश के ध्वज को लेकर चिंतन-मनन शुरू कर दिया, जिससे तिरंगा रंग उभरने लगा। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि वर्ष 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता, जिनका वास्तविक नाम मार्गरट एलिजाबेथ नोबुल था द्वारा एक ध्वज बनाया गया था। वे एक अंग्रेज आइरिश सामाजिक कार्यकर्ता थी ने सबसे पहले झण्डे का चित्र बनाया था। इसके पश्चात वर्ष 1906 में सनिन्द्र प्रकाश बोस ने एक ध्वज का निर्माण किया इस ध्वज में तीन पट्टियां बनी हुई थी सबसे ऊपर लाल, बीच मे पीली तथा सबसे नीचे हरी। लाल पट्टी में आठ अर्ध खिले कमल के फूल सफेद रंग में छपे थे तथा हरे रंग की पट्टी में दायीं ओर चांद व बायीं ओर सूरज का निशान सफेद रंग में अंकित था व पीली पट्टी में देवनागरी लिपि में वन्देमातरम काले अक्षरों में लिखा गया कोलकाता ध्वज से मिलता जुलता ध्वज क्रांतिकारी महिला भीकाजी काम ने जर्मनी में हो रही अंतराष्ट्रीय सोशल कॉन्फ्रेंस में भी फहराया था जो कि अंतरष्ट्रीय स्तर पर फहराया गया भारत का प्रथम ध्वज था।
वर्ष 1917 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक व भारतीय राष्ट्रवादी महिला एनी बेसेन्ट के होम रूल आंदोलन ने एक नए ध्वज को जन्म दिया, जिसमें पांच लाल एवं चार हरी तिरछी पट्टिया थी। बीच में लाल तारे बने हुए थे। दाएं कोने में यूनियन जैक का चित्र ओर बाएं कोने में तारे के साथ चांद का चित्र था। यूनियन जैक के चित्र के कारण कुछ राष्ट्रीय नेताओ ने आपत्ति उठाई तब महात्मा गांधी जी द्वारा इस ध्वज को भी बदल दिया गया। तिरंगे को जन्म देने में भारतीय ब्रिटिश सैनिक पिंगली वेंकय्या का योगदान भी विशेष माना जाता है। वह सेना छोड़ गांधी के अनुयायी बन गए थे। पिंगली वेंकय्या ने कांग्रेस के लिए जिस ध्वज का निर्माण किया था उसी का भविष्य रूप आज का भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के रूप में देखते हैं जिसमें कुछ परिवर्तन किए गए हैं। नए ध्वज में लाल और हरे रंग की दो पत्तिया रखी गई थी। ध्वज में एक चरखे का चित्र भी लगाया गया। ध्वज में लाल रंग हिन्दुओ का प्रतीक था एवं हरा रंग मुसलमानों का। लेकिन भारत में हिन्दू मुसलमानों के साथ साथ अन्य धर्मावलम्बी भी रहते थे। इसलिए उन धर्मविलम्बियों के लिए सफेद रंग को स्थान दिया गया। वर्ष 1921 में महात्मा गांधी ने भी तिरंगे के साम्प्रदायिक महत्वों को बदलते हुए धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा दिया व लाल रंग को बलिदान, सफेद को पवित्रता तथा हरे रंग को आशा का प्रतीक बनाया।
आजादी से कुछ दिन पहले 23 जून 1947 को भारत का आधिकारिक राष्ट्रीय ध्वज क्या हो, इस विषय में विचार विमर्श के लिए कमेटी बनाई गई। इस कमेटी ने कांग्रेस के चरखा झंडे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में पहचान देने के बारे में विचार किया। निर्णय लिया गया कि तिरंगे को ही भारतीय ध्वज बनाया जाएगा लेकिन इसमें राजनीतिक दृष्टि से कुछ बदलाव किए जाने चाहिए, ताकि यह ध्वज सभी समुदायों व सभी रानीतिक दलों द्वारा समान रूप से स्वीकार किया जा सके। इसी बदलाव के विचार को ध्यान में रहते हुए चरखे का निशान बदलकर अशोक चक्र को तिरंगे में शामिल किया गया। अशोक चक्र को इसलिए लिया गया क्योंकि चरखे की तरह समान भाव से प्रगति को तो दर्शाता था लेकिन राजनीतिक रूप से निष्पक्ष था। इस प्रकार भारत के आजाद होने से कुछ दिन पहले 22 जुलाई को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया।