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भारतीय जीव विज्ञानी बनीं 'चैंपियंस ऑफ द अर्थ', मिला UN का सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार

2005 से चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड प्राकृतिक संसार को बचाने वाले नायकों को दिया जाता रहा है। दुनिया के सबसे दुर्लभ सारसों में से एक ग्रेटर एडजुटेंट को बचाने के लिए असम से जमीनी स्तर पर आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए पूर्णिमा देवी बर्मन को यह सम्मान दिया गया है।

संरक्षणवादी भारतीय जीव विज्ञानी पूर्णिमा देवी बर्मन को संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार चैंपियंस ऑफ द अर्थ से सम्मानित किया गया है। दुनिया के सबसे दुर्लभ सारसों में से एक ग्रेटर एडजुटेंट को बचाने के लिए असम से जमीनी स्तर पर आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए बर्मन को यह सम्मान दिया गया है। उनके आंदोलन की एक खास बात यह है कि इसमें केवल महिलाएं शामिल हैं।

2005 से चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड प्राकृतिक संसार को बचाने वाले नायकों को दिया जाता है।

बर्मन को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की ओर से इस साल का चैंपियंस ऑफ द अर्थ पुरस्कार उद्यमिता दृष्टिकोण श्रेणी में दिया गया है। वन्य जीव विज्ञानी बर्मन 'हरगिला आर्मी' का नेतृत्व करती हैं। यह 'सेना' सारस को विलुप्त होने से बचाने के लिए समर्पित है। 'हरगिला आर्मी' से जुड़ी महिलाएं वस्त्रों पर सारस की आकृतियां उकेरती हैं और उन वस्त्रों को बेचती हैं ताकि आर्थिक स्वावलंबन के साथ ही पक्षी के बारे में जागरूकता पैदा हो सके।

वर्ष 2005 से चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड प्राकृतिक संसार को बचाने वाले नायकों को दिया जाता रहा है। अब तक इस सम्मान से 111 लोगों को नवाजा जा चुका है। इनमें 26 वैश्विक नेता, 16 संगठनों के अलावा 69 लोगों को व्यक्तिगत रूप से यह सम्मान दिया गया है। बताया जाता है कि इस साल दुनियाभर से इस पुरस्कार के लिए 2200 नामांकन मिले थे।

सम्मान की घोषणा के बाद यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा कि स्वस्थ और सक्रिय पारिस्थितिक तंत्र जलवायु आपातकाल और जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं। जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान से हमारे ग्रह को अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है।

एंडरसन ने कहा कि इस साल के पुरस्कारों से यह उम्मीद पैदा होती है कि प्रकृति के साथ हमारे रिश्तों में सुधार किया जा सकता है। इस वर्ष के चैंपियंस ने दिखाया है कि पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्जीवित करना और प्रकृति की क्षमता को बनाए रखना हम सबका दायित्व है। हम सब यानी सरकार, प्राइवेट सेक्टर, विज्ञानी, समुदाय, गैर सरकारी संगठन और व्यक्तिगत स्तर पर प्रकृति को बचाने का प्रयास करने वाले।

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