क्या पीढ़ी का अंतर आज घर के बड़े लोगों के लिए तनाव का सबसे बड़ा कारण है? उनकी शिकायत है कि आज के बच्चे उनकी सुनते नहीं हैं। वे अपनी मनमानी करते हैं। आज के बच्चे परंपराओं को तोड़कर आगे बढ़ रहे हैं। और इस स्थिति को आज का लगभग हर परिवार महसूस कर रहा है। दूसरी समस्या रिटायर हो चुके लोगों की है। रिटायर होने और तमाम जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बावजूद इस उम्र के लोग तनाव से भरा जीवन जी रहे होते हैं। इस उम्र में भी वे एक दिशा की तलाश कर रहे होते हैं। सवाल है कि बुजुर्ग हमारे समाज जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। उनका इस तरह से बेचैन रहना सही नहीं है। लेकिन रास्ता क्या है?
दरअसल, माता-पिता अपने बच्चों पर अपनी आकांक्षाओं को थोपते हैं, बजाय उन्हें जीवन में अपने स्वयं के मार्ग का पालन करने की अनुमति देने के। उदाहरण के लिए, एक मां अपने बच्चे को डॉक्टर बनाना चाहती है, तो पिता चाहता है कि बच्चा इंजीनियर बने। लेकिन ज्यादातर माता-पिता बच्चों से कभी नहीं पूछते हैं कि बच्चा क्या बनना चाहता है? परिवार के बड़े-बूढ़ों को इस सोच से बाहर निकलना होगा।
कहने का यह मतलब कतई नहीं है कि बच्चों को उनकी मनमानी करने की पूरी छूट दे दी जाए। लेकिन उनके जीवन के अहम मसलों में उनकी सोच भी अहम है, ये हमें समझना होगा।
आधुनिक समाज में ऐसे कई अवसर हैं जिनके बारे में लोग बड़े होने पर जागरूक हो जाते हैं। अगर युवा पीढ़ी को ये लगने लगा कि उनके माता-पिता ने उन्हें यह चुनने की स्वतंत्रता नहीं दी है कि वे क्या बनना चाहते हैं। तो मानकर चलिए बच्चा विद्रोह करेगा, जो एक अर्थ में बच्चों को अपने माता-पिता से दूर कर सकता है।
इस परिस्थिति में हम दोष बच्चों पर और बाहरी चीजों पर डालते हैं। लेकिन माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन या प्रोत्साहन का सही रूप प्रदान नहीं करने में अपने स्वयं के अपराध का सामना करने में असमर्थ हैं। यह उस प्रमुख कारणों में से एक है जिसे हम पीढ़ी का अंतर कहते हैं। माता-पिता एक तरह से सोचते हैं, बच्चे दूसरे तरीके से सोचते हैं। वही बच्चे जो अब विद्रोह कर चुके हैं, उन्हें अपने बच्चों के साथ समस्याएं होंगी। फिर वे अपने बच्चों को वो नहीं करने देना चाहेंगे जो वह करना चाहते हैं। पारिवारिक तनाव का यह सबसे बड़ा कारण है।
इसलिए अपनी चिंता या असुरक्षा या मानसिक संकट को दूर करने के लिए माता-पिता को अपने बच्चों को अलग तरह से मार्गदर्शन करना होगा। उन्हें न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद होने के बजाय अपने बच्चों का दोस्त बनना होगा।
दूसरी समस्या रिटायरमेंट के बाद तनावपूर्ण जीवन जीने की है। रिटायर होने के बाद कोई भी उन्हें महत्व नहीं देता है। तनाव का यह रूप अधिक विनाशकारी है क्योंकि यह बुजुर्गां के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है। और आत्म छवि का नुकसान व्यक्तित्वों को नष्ट कर देता है।
इसका उत्तर प्राचीन भारतीय परंपरा की प्रणाली में दिया गया है। रिटायरमेंट के बाद आपको समाज में एक निष्क्रिय भूमिका निभानी चाहिए। रिटायर होने तक आपके पास समाज में एक गतिशील भूमिका थी। आप काम कर रहे थे और कमा रहे थे। लेकिन रिटायरमेंट के बाद आपको चिंतन, ध्यान के माध्यम से अपने आध्यात्मिक और मानसिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आपको विचारक की भूमिका को अपनाना चाहिए जिससे अनुभव के माध्यम से आपने जीवन में जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाए जिनके पास वह अनुभव नहीं है। परिवार के छोटे-मोटे पचड़े से दूर रहें। इससे आप तनाव से बचे रहेंगे।
इसके साथ ही आप किसी परोपकारी गतिविधि में भाग ले सकते हैं। आप समाज का हिस्सा बने रह सकते हैं, लेकिन एक निष्क्रिय खिलाड़ी के रूप में। ताकि आप दूसरों को अपना ज्ञान और अनुभव प्रदान कर सकें। आसन, प्राणायाम, विश्राम, ध्यान के साथ आप तनावमुक्त होकर आनंद का जीवन जी सकते हैं।