भारत में दो साल के बाद होली पर्व का रंग चढ़ा है। वरना दो साल कोरोना महामारी के चलते लगे लॉकडाउन ने होली क्या सभी त्योहारों का रंग फीका कर दिया था। लेकिन इस बार भारत के लोग कोरोना के ओमिक्रोन वेरिएंट को हराकर ‘होली खेलेंगे और मौज करेंगे’ वाले मूड में आ चुके हैं। राजधानी दिल्ली में तो आजकल होली की मस्ती दिखाई दे रही है। फिजां में हुड़दंग सा पसरा हुआ है। बच्चों का शोरशराबा भी पानी के गुब्बारे जैसा फूट रहा है तो बड़ों की चुहलबाजी चटकीले रंगों के समान बिखर रही है। गुंजिया की महक भी आसपास से आ रही है तो नशा-पत्ती का इंतजाम भी अपने पूरे शबाब पर है। सब कुछ दिख रहा है, जो होली पर दिखना चाहिए। इसके बावजूद बदली-बदली सी नजर आ रही है होली। राजधानी के महानगरीय चरित्र ने उमंग और उल्लास के इस पर्व में खासा बदलाव कर दिया है और औपचारिकता का रंग होली पर चढ़ता दिख रहा है।

प्रवासी भारतीयों को याद आ रही होगी 'वतन' की होली
भारतीय प्रवासी, जो विदेशों में बैठकर होली को याद कर रहे हैं, उन्हें हम बता रहे हैं कि भारत के महानगरीय चरित्र में होली पर क्या बदलाव हुए हैं। हमारा प्रयास है कि जब वे इस लेख को पढ़ें तो उन्हें अपने ‘वतन’ की होली याद आ जाए। अब भारत की होली में सब कुछ भी है लेकिन बदलाव भी हो गया है। एक दूसरे पर रंग डालने या गालों को लाल करने की ललक पहले की तरह ही है। होली पर हाल के सालों तक केमिकल के रंग, कीचड़ गोबर आदि प्रयोग किए जाते थे लेकिन अब जमाना बदल गया है। अब लोग हर्बल कलर को तवज्जो दे रहे हैं। लोग रंगों से खेलना तो चाह रहे हैं लेकिन इस बात का ध्यान रख रहे हैं कि वह उसी दिन उतर जाए। होली के खास व्यंजन गुंजिया, मट्ठी आदि अब भी घरों में पहुंच चुके हैं लेकिन मामला थोड़ा बदल गया है। पहले होलिका दहन की रात घर की सभी महिलाएं इन्हें मिलकर बनाती थी और पूरी रात चुहलबाजी में बीत जाती थी। लेकिन अब तो बीकानेरी या अग्रवाल स्वीट्स से ये व्यंजन रेडीमेड आ रहे हैं और ड्रॉइंग रूम की टेबल पर शोभा बढ़ा रहे हैं।