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रंग और उमंग के त्योहार से जुड़ी हैं कई कहानियां, आइए सुनते हैं

महान कवि कालिदास ने पुराणों और दसकुमार चरित में वसंत का जो वर्णन किया है, उससे लगता है कि होली का यह त्योहार प्रकृति से जुड़ा हुआ होगा। होली अलग-अलग पौराणिक कथाओं से भी जुड़ी है। आइए कुछ कथाओं को जानते हैं।

रंग और उमंग का त्योहार होली (साभार सोशल मीडिया)

वसंत जब चरम पर होता है और सर्दियों की विदाई हो जाती है, तब होली का त्योहार आता है। आज के समय में कृत्रिम रंगों, पानी भरे गुब्बारों और पिचकारियों ने रंग और उमंग को बनावटी बना दिया है। लेकिन महान कवि कालिदास ने पुराणों और दसकुमार चरित में वसंत का जो वर्णन किया है, उससे लगता है कि होली का यह त्योहार प्रकृति से जुड़ा हुआ होगा। होली अलग-अलग पौराणिक कथाओं से भी जुड़ी है। आइए कुछ कथाओं को जानते हैं।

रंग के नाम छिप जाते हैं, पर रंग का अस्तित्व रह जाता है। इसी का नाम होली है (साभार सोशल मीडिया)

होलिका दहन : दैत्य राजा हिरण्यकशिपु को भगवान शिव ने जादुई शक्तियां दी थीं। उसे अहंकार हो गया और उसने सबसे अपनी पूजा करवानी शुरू की। उसके पुत्र प्रह्लाद ने इनकार किया और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। हिरण्यकशिपु क्रोधित हो गया और अपनी बहन होलिका जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था, उसे प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। प्रह्लाद को गोद में बैठाकर वह आग में बैठ गई। लेकिन वही जलकर राख हो गई और प्रह्लाद आग से बच गया।

राधा-कृष्ण का शाश्वत प्रेम : यह कहानी राधा कृष्ण के शाश्वत प्रेम पर है। कृष्ण अपने गहरे नीले रंग को लेकर चिंतित थे। मां से कहते, राधा गोरी है और मैं काला हूं। यशोदा ने कहा तुम भी जिस रंग से चाहो राधा को रंग दो। चंचलता से कृष्ण ने राधा को अपना रंग लगा दिया। तभी से राधा कृष्ण के प्रेम की यह घटना होली के रूप में मनाई जाने लगी।

धुंधी को भगाना : राक्षसी धुंधी को भगवान शिव से वरदान प्राप्त था कि उसे कोई नहीं मार सकेगा लेकिन बच्चों से बचकर रहना। वह भोले-भाले बच्चों को परेशान करती थी। एक दिन एक पुजारी ने बच्चों को लकड़ी लाकर आग जलाने के लिए कहा। बच्चों के डर से धुंधी भागने लगी। यह देख लड़कों ने ढोल पीटकर, मजाक करते हुए उसके पीछे भागना शुरू कर दिया। तभी से होली में ढोल बजाकर फाग गाने का रिवाज शुरू हुआ।

कामदेव का बलिदान : सती की मृत्यु के बाद, शिव दुखी होकर ध्यान मग्न हो गए। दुनिया को बहुत नुकसान हुआ। सती का पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ। जब माता पार्वती शिव को प्रसन्न नहीं कर सकीं, तब उन्होंने प्रेम के देवता कामदेव से मदद मांगी। कामदेव ने शिव के हृदय में अपना प्रेम-बाण चलाया। गुस्से में शिव ने अपनी तीसरी आंखें खोली और कामदेव को तुरंत भस्म कर दिया। शिव जागृत हुए और उन्हें पार्वती से प्रेम हो गया। माना जाता है कि कामदेव को भगवान शिव ने होली के दिन जलाया था।

पूतना राक्षसी का वध : मथुरा के राजा कंस ने पूतना को जहरीला दूध पिलाकर शिशु कृष्ण को मारने का आदेश दिया था। लेकिन कृष्ण ने उसके प्राण ही चूस लिए। पूतना को सर्दी के रूप में भी दर्शाया गया था। राक्षसी पूतना होली से एक रात पहले मारी गई थी। उसकी मृत्यु ठंड, अंधेरी सर्दी के अंत और वसंत के आगमन का प्रतीक है।

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