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भारतीय-अमेरिकी प्रोफेसर भूमि पुरोहित को इसलिए मिला यह पुरस्कार

भूमि का शोध महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में व्यवहारिक और संस्थागत बाधाओं के साथ-साथ सार्वजनिक सेवा वितरण में संस्थागत बाधाओं की पड़ताल करता है। दूसरा शोध सार्वजनिक सेवा वितरण की व्यवहारिक और संस्थागत चुनौतियों पर केंद्रित है।

माना गया है कि भूमि का काम न केवल अलग बल्कि अपनी तरह का पहला काम भी है। Image: social media

भारतीय-अमेरिकी शोधकर्ता भूमि पुरोहित को इस वर्ष का विलियम एंडरसन पुरस्कार दिया गया है। यह पुरस्कार संघवाद या अंतर-सरकारी संबंधों, राज्य और स्थानीय राजनीति के सामान्य क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ शोध प्रबंध का सम्मान करने के लिए अमेरिकन पॉलिटिकल साइंस एसोसिएशन (APSA) द्वारा प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।

भूमि इस समय जॉर्जटाउन के मैककोर्ट स्कूल में सार्वजनिक नीति की सहायक प्रोफेसर है। वह मनोविज्ञान विभाग में संयुक्त नियुक्ति के साथ प्रिंसटन स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स में पोस्टडॉक्टरल रिसर्च एसोसिएट रह चुकी हैं। भूमि के जॉर्जटाउन प्रोफाइल के अनुसार उनका शोध महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में व्यवहारिक और संस्थागत बाधाओं के साथ-साथ सार्वजनिक सेवा वितरण में संस्थागत बाधाओं की पड़ताल करता है। वह कहती हैं कि मेरे शोध का प्राथमिक उद्देश्य महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में व्यवहारिक और संस्थागत बाधाओं को समझना है।

उनकी पहली पुस्तक परियोजना का शीर्षक है- लैमेंट्स ऑफ गेटिंग थिंग्स डन: ब्यूरोक्रेटिक रेसिस्टेंस अगेंस्ट फीमेल पॉलिटिशियन्स इन इंडिया। उनका यह शोध पड़ताल करता है कि कैसे नौकरशाहों के स्पष्ट और अंतर्निहित लिंग पूर्वाग्रह उनके कैरियर प्रोत्साहन के साथ मिलकर नौकरशाही प्रतिरोध को प्रेरित करते हैं। एसोसिएशन APSA ने भारत में स्थानीय रूप से निर्वाचित महिला राजनेताओं के लिए नौकरशाही प्रतिरोध का खुलासा करने वाली तस्वीर की प्रस्तुति पर पुस्तक की प्रशंसा की है।

एसोसिएशन का मानना है कि यह पहली पुस्तक है जो लिंग के आधार पर नौकरशाही के प्रतिरोध का परीक्षण करती है। APSA ने इसे भारत में स्थानीय राजनीति और सत्ता की समझ में एक अच्छा योगदान बताया है, जो इस बात की ठोस व्याख्या प्रदान करता है कि स्थानीय स्तर पर निर्णय कैसे लिये जाते हैं।

भूमि का दूसरा शोध सार्वजनिक सेवा वितरण की व्यवहारिक और संस्थागत चुनौतियों पर केंद्रित है। इस शोध में यह पड़ताल की गई है कि भारत में एक खराब तरीके से तैयार की गई सार्वजनिक व्यय प्रणाली किस तरह से राजनेताओं और नौकरशाहों के व्यवहार को निर्देशित करती है और अंतत: सार्वजनिक सेवा वितरण को नुकसान पहुंचाती है।

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