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'कलंक' को बनाया ताकतः भारत में 'पीरियड' क्रांति की अगुआ मेघा देसाई

देसाई फाउंडेशन की अध्यक्ष मेघा देसाई पिछले 15 वर्षों से मासिक धर्म को लेकर भारत के ग्रामीण इलाकों में फैली वर्जनाओं को तोड़ने, नया दृष्टिकोण देने, पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती देने और युवा लड़कियों को बिना शर्म या डर के बिना अपने शरीर का मालिक बनने के लिए सशक्त बना रही हैं।

मानवी पंत

वर्ष 2019 का एक अध्ययन बताता है कि भारत में हर साल 2.3 करोड़ लड़कियां मासिक धर्म संबंधी चुनौतियों की वजह से स्कूल छोड़ देती हैं। आने वाले चार वर्षों में यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। यह महज एक आंकड़ा नहीं है, यह सामाजिक बहिष्कार, मासिक धर्म को लेकर जागरूकता की कमी और कलंक जैसे मुद्दों के समाधान का एक स्पष्ट आह्वान है। भारत के कई ग्रामीण समुदायों में मासिक धर्म को एक जैविक प्रक्रिया से कहीं अधिक माना जाता है।

यह एक गुप्त घटना है जो गहरी सांस्कृतिक चुप्पी के पर्दे के नीचे दफन है। आइए आपको मिलवाते हैं देसाई फाउंडेशन की अध्यक्ष मेघा देसाई से जो पिछले 15 वर्षों से मासिक धर्म को लेकर भारत के ग्रामीण इलाकों में फैली वर्जनाओं को तोड़ने, नया दृष्टिकोण देने, पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती देने और युवा लड़कियों को बिना शर्म या डर के बिना अपने शरीर का मालिक बनने के लिए सशक्त बना रही हैं।

मेघा के अभियान की हिलेरी क्लिंटन जैसी हस्तियां भी तारीफ कर चुकी हैं।

मैसाचुसेट्स के एक उपनगर में पली-बढ़ी देसाई का कहना है कि मासिक धर्म समानता के क्षेत्र में उनकी एंट्री अप्रत्याशित रूप से हुई। भारत में एक बार स्वास्थ्य एवं आजीविका अभियान के दौरान वह और उनकी टीम गांव में कुछ लोगों से बातचीत कर रही थीं। स्कूल जाने वाली लड़कियों को घर में देखकर उन्होंने लोगों से पूछा कि ये स्कूल क्यों नहीं जा रही हैं? जवाब मिला- ...क्योंकि वहां कोई वॉशरूम नहीं है। देसाई को पता था कि यह असामान्य बात नहीं है।

उस समय उन्हें एहसास हुआ कि स्थिति कितनी गंभीर है। उसके बाद उन्होंने एक आंकड़ा पढ़ा जिसमें कहा गया था कि भारत में 71% लड़कियों को पीरियड आने से पहले यह पता ही नहीं होता कि ये क्या होता है। भारतीय-अमेरिकी देसाई ने कहा कि शुरू में तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन कुछ लोगों से पुष्टि करने के बाद यह सच निकला।

महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयासों में हिलेरी क्लिंटन का भी सहयोग रहा है।

देसाई के लिए यह चौंकाने वाला था क्योंकि एक प्रगतिशील परिवार में परवरिश होने के बावजूद, वह भी मासिक धर्म के कलंक से जूझ रही थीं। उन्होंने कहा कि मुझे याद है कि जब मुझे पीरियड आते थे, तब मुझे मंदिर जाने या पूजा करने की अनुमति नहीं होती थी। मुझे यह समझने में मुश्किल हुई कि ऐसा क्यों है।

इसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर मेरे जैसी सशक्त और आधुनिक लड़की को इस तरह की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है तो भारत के आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं व युवा लड़कियों के साथ कैसा होता होगा जो चुप्पी, शर्म, भेदभाव और जागरूकता की कमी की शिकार हैं? इस विचार ने देसाई को मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाओं को दूर करने और इसका समाधान तैयार करने के लिए प्रेरित किया। वह समझ गईं कि इन चुनौतियों का हल करने से कई युवा लड़कियों का जीवन बदला जा सकता है।

मेघा देसाई की संस्था महिलाओं को सैनेटरी पैड बनाना भी सिखाती हैं।

वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद देसाई फाउंडेशन आज भारत में सबसे व्यापक मासिक धर्म समानता कार्यक्रमों में से एक को चला रहा है। यह कार्यक्रम चार-आयामी स्तंभों पर आधारित है- पहला मासिक धर्म स्वास्थ्य पर शिक्षा, दूसरा कलंक से आजादी, तीसरा स्वीकार्यता व पहुंच और चौथा आसनी नाम के सैनिटरी नैपकिन पैड का उत्पादन। मेघा देसाई के नेतृत्व में संगठन ने 50 लाख से अधिक जिंदगियों को प्रभावित किया है। उनका अभियान गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु और कर्नाटक तक फैला है।

मासिक धर्म समानता से परे देसाई फाउंडेशन स्वास्थ्य एवं आजीविका पर भी ध्यान केंद्रित करता है। वह नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच शिविर आयोजित करता है। सिलाई, ब्यूटीशियन, अंग्रेजी भाषा व कंप्यूटर कौशल में व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। उद्यमिता सिखाता है। देसाई कहती हैं कि हम महिलाओं को आय बढ़ाने के लिए उनके कौशल का इस्तेमाल करने के लिए सशक्त बनाते हैं।

देसाई फाउंडेशन के सफर का एक विशिष्ट पहलू इसकी तरक्की का तरीका है। वह पहले से तय पारंपरिक विस्तार नीति को नहीं अपनाता। देसाई फाउंडेशन को जब पहली बार स्थापित किया गया था तब इसका प्राथमिक उद्देश्य स्वास्थ्य, आजीविका व दक्षिण एशियाई संस्कृति को बढ़ावा देना था। 2010 में मेघा देसाई फाउंडेशन में शामिल हुईं।

उनके नेतृत्व में फाउंडेशन के मिशन, दृष्टिकोण, संचालन और पहुंच में बदलाव आए। उसने स्वास्थ्य, आजीविका व मासिक धर्म समानता पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक गतिशील सार्वजनिक संगठन का रूप लिया। आज फाउंडेशन अपने मुख्य कार्यक्षेत्र को लेकर प्रतिबद्ध है, साथ ही मानसिक स्वास्थ्य व पर्यावरणीय तैयारी जैसे क्षेत्रों में भी प्रयास कर रहा है।

उल्लेखनीय बदलाव लाने के बावजूद देसाई खुद को एक पारंपरिक परोपकारी के रूप में नहीं देखती हैं। वह खुद को गैर-लाभकारी क्षेत्र में काम करने वाला इंसान मानती हैं। वह कार्यक्रमों को लागू करने के लिए अमेरिका और भारत में कई दानदाताओं और परोपकारियों से सहयोग लेना पसंद करती हैं।

उद्यमिता और परोपकार को संतुलित करने के बारे में वह कहती हैं कि यह सच है कि मैंने एक बार एक कंपनी चलाई थी लेकिन देसाई फाउंडेशन पर अपनी सारी ऊर्जा केंद्रित करने के लिए मैंने उसे छोड़ दिया। मैं समस्या की पहचान करके उसके संभावित समाधान के जरिए परोपकार और उद्यमिता को संतुलित करती हूं। यही कारण है कि देसाई फाउंडेशन में हम बहुत से प्रयोग करते हैं और अलग अलग पृष्ठभूमि के लोगों को काम पर रखते हैं।

देसाई ने विज्ञापन उद्योग में भी लगभग 13 साल बिताए हैं। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में बीए किया है। प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड बिजनेस स्कूल से सामाजिक उद्यमिता में एक्जिक्यूटिव प्रोग्राम किया है। वह गायन भी करती हैं। उन्होंने संगीत उद्योग की कई चर्चित हस्तियों के साथ परफॉरमेंस दी है। बचपन से संगीत ने देसाई के जीवन में अहम भूमिका निभाई है। इसने उन्हें सांस्कृतिक अंतर को पाटने और अपनी पैतृक जड़ों से जुड़े रहने में मदद की है।

बड़े होने पर उन्होंने महसूस किया कि दक्षिण एशियाई प्रवासी खासकर युवा पीढ़ी के लिए, सांस्कृतिक समझ और प्रशंसा के बीच दूरी लगातार बढ़ रही है। उससे उन्हें संगीत के प्रति अपने प्यार को गहराई तक ले जाने के लिए प्रेरित किया। देसाई फाउंडेशन हर साल ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करता है जो दक्षिण एशियाई समुदाय को उनकी संस्कृतियों से जोड़ता है।

हडसन पर दिवाली न्यूयॉर्क शहर का सबसे लंबे समय तक चलने वाला भव्य दिवाली त्योहार है। संगीत, नृत्य और स्वादिष्ट भोजन के साथ से यह उत्सव दक्षिण एशियाई और अन्य समुदायों को भारतीय संस्कृति का अनुभव कराता है। देसाई गर्व से कहती हैं कि इसमें हिस्सा लेने वाले लगभग 40 प्रतिशत लोग गैर-दक्षिण एशियाई होते हैं जो न्यूयॉर्क में भारत को महसूस करना चाहते हैं।

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